राजमाता अहिल्याबाई होल्कर मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मालवा राज्य की राजमाता अहिल्यादेवी होलकर का नाम भी बहुत गर्व के साथ लिया जाता है। आपने मालवा राज्य पर 28 वर्षों (1767 से 1795) तक शासन किया। यह काल आज भी सुशासन और उत्कृष्ट व्यवस्था की दृष्टि से याद किया जाता है। आप एक बेहद संवेदनशील शासक और धर्मपरायण व्यवस्थापक थीं। अपने पूरे जीवनकाल में आप जनता के बीच बेहद सम्माननीय एवं लोकप्रिय शासक रहीं। महारानी अहिल्यादेवी होलकर को मध्यप्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में आज भी सम्मान से “राजमाता” एवं “देवी” कहकर ही सम्बोधित किया जाता है।

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड में चोंडी गांव में एक धनगर जाति के परिवार में हुआ था। उस समय सामान्य परिवारों में लड़कियों की पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, परंतु उनके पिता श्री मनकोजीराव शिंदे ने अहिल्याबाई को बचपन में पढ़ने लिखने के लिए प्रोत्साहित किया एवं अपने घर पर ही शिक्षा प्रदान करवाई। जब अहिल्याबाई की उम्र मात्र 8 वर्ष की थी उस समय उनके गांव के पास से एक बार मालवा राज्य के शासक श्री मल्हारराव जी होलकर पुणे जाते हुए कुछ समय के लिए चोंडी ग्राम में रुके।

उस समय उनकी नजर अहिल्याबाई पर पड़ी जो भूखे गरीब लोगों को भोजन खिलाने की सेवा में तल्लीन थीं। मात्र 8 वर्ष की छोटी बच्ची में दया और मानवता का भाव देखकर श्री होलकर साहब ने अहिल्याबाई का रिश्ता अपने बेटे से करने की बात श्री मनकोजीराव से कही। एक राज घराने में अपनी बेटी की शादी के प्रस्ताव पर अहिल्याबाई के पिता ने तुरंत अपनी सहमति प्रदान कर दी। इस प्रकार श्री मल्हारराव होलकर के बेटे श्री खांडेराव और अहिल्याबाई का विवाह हो गया।

इस विवाह के बाद अहिल्याबाई मालवा राज्य में अपने ससुराल आ गईं। वहां आप शीघ्र ही अपने धर्मपरायण, सरल, दयालु एवं गरीबों के प्रति हमदर्दी रखने वाले स्वभाव के चलते न केवल ससुराल में परिवार के सदस्यों के बीच बल्कि राज्य की जनता की बीच भी लोकप्रिय हो गईं। परंतु, वर्ष 1754 में आपके पति श्री खांडेराव जी एक युद्ध में लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार अहिल्याबाई मात्र 29 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो गईं। हालांकि आप अपने पति की मृत्यु के बाद सती होना चाहती थीं परंतु आपके पिता समान ससुर ने उन्हें सती बनने से रोका और उन्हें राज्य के कार्यों में रुचि उत्पन्न करने की ओर प्रोत्साहित करने लगे एवं इस प्रकार आप राज्य के कार्यों को पूरी तल्लीनता के साथ सीखने लगीं।

कुछ समय बाद वर्ष 1766 में आपके ससुर श्री मल्हारराव होलकर जी भी इस दुनिया को अलविदा कह कर दिवंगत हो गए। श्री मल्हारराव जी की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई के बेटे श्री मालेराव होलकर जी ने शासन की बागडोर को संभाला लेकिन इस शासन के कुछ ही दिन बाद वर्ष 1767 में श्री मालेराव जी भी दिवंगत हो गए और इस प्रकार अहिल्याबाई पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। कल्पना की जा सकती है कि  एक महिला जब अपने पति, पिता समान ससुर एवं पुत्र को कुछ ही वर्षों के अंतर पर खो देती है तो उस पर क्या बीत सकती है। परंतु संकट की इस घड़ी में अहिल्याबाई ने बहुत ही धैर्य से काम लिया और अपने राज्य की जनता के हित में राज्य की बागडोर को अपने हाथों में लेने का फैसला किया।

यह वह काल था जब अंग्रेज भारत में लगातार अपने पैर पसारते जा रहे थे। आपने तुरंत ही पेशवा के समक्ष अर्जी भिजवाई कि अब शासन की बागडोर वो स्वयं संभालना चाहती हैं। पेशवा ने भी उनकी यह अर्जी तुरंत स्वीकार कर ली और अहिल्याबाई को दिनांक 11 दिसम्बर 1767 को मालवा की शासक बना दिया गया। श्री मल्हारराव जी होलकर के दत्तक पुत्र श्री तुकोजीराव होलकर को उन्होंने अपना सेनापति बनाया। इसके बाद मालवा राज्य के लोगों ने देखा कि कैसे एक महिला राज्य का शासन चलाती है। राजमाता अहिल्यादेवी के शासन को इंदौर में लोग आज भी गर्व के साथ याद करते हैं क्योंकि आपने इंदौर को एक छोटे से गांव से समृद्ध और सजीव शहर बनाने में अहम भूमिका निभाई।

मालवा के किले से लेकर सड़कों सहित अन्य बड़े निर्माण कार्य उन्होंने ही करवाए थे। राजमाता अहिल्यादेवी हर दिन लोगों की समस्याएं दूर करने के लिए सार्वजनिक सभाएं रखतीं थीं। इतिहासकारों के मुताबिक उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया। राजमाता अहिल्यादेवी के राज में सड़कें दोनों तरफ से वृक्षों से घिरी रहती थीं। राहगीरों के लिए कुएं और विश्रामगृह बनवाये गए थे एवं गरीब, बेघर लोगों की जरूरतें हमेशा पूरी की जाती थीं। इसी वजह से राजमाता अहिल्यादेवी समाज के सभी वर्गों में सम्माननीय थीं।

आपके जीवनकाल में ही मालवा राज्य की जनता आपको “देवी” के रूप में मानने और सम्बोधित करने लगी थी। इसके पहिले राजमाता अहिल्यादेवी जैसा इतना बड़ा व्यक्तित्व यहां की जनता ने अपनी आंखो से कभी देखा ही नहीं था। जब चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई हो, अंग्रेज अपने शासन को पूरे भारत में ही फैलाने हेतु लालायित हो, और प्रजाजन, साधारण गृहस्थ, किसान, मजदूर, अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे हों, ऐसी विकट परिस्थितियों में राजमाता ने जिस प्रकार सफलतापूर्वक शासन को चलाया वह चिरस्मरणीय है।

राजमाता अहिल्यादेवी में बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्तित्व विकसित हो गया था एवं आप सनातनी हिंदुत्वनिष्ठ महारानी के रूप में विख्यात हुईं। विदेशी आक्रांताओं ने भारत के कई तीर्थस्थलों को नष्ट कर दिया था एवं मुगलों ने मंदिरों को तोड़ दिया था। अपनी तीर्थयात्राओं के दौरान मंदिरों की यह स्थिति उनसे देखी नहीं गई और आप उनके जीर्णोद्धार में जुट गईं।

आपने न केवल इंदौर नगर बल्कि मालवा राज्य की सीमाओं के बाहर पूरे भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों (अयोध्या, हरिद्वार, कांची, द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ, सोमनाथ, जगन्नाथपुरी, काशी, गया, मथुरा  सहित) पर  मंदिर, घाट, कुओं, बावड़ियों, धर्मशालाओं, विश्रामगृहों आदि का निर्माण एवं जीर्णोद्धार करवाया। जिनकी शिल्पकला आज भी उल्लेखनीय मानी जाती है। कई स्थानों पर तो नए नए मार्गों का निर्माण भी करवाया, गरीबों के लिए अन्न क्षेत्र प्रारम्भ करवाए एवं प्यासों के लिए प्याऊ स्थापित करवाए। कई मंदिरों में शास्त्रों के मनन चिंतन और प्रवचनों के उद्देश्य से विद्वानों की नियुक्तियां कीं। आपके राज्य में कला का विस्तार हुआ। आपके 28 वर्षों के शासनकाल  में मालवा राज्य की राजधानी महेश्वर, साहित्य, संगीत, कला और उद्योग का केंद्र बिंदु बन गई थी।

राजमाता ने अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर कई बार युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व खुद किया था। आपने गोहाड का क़िला जीतकर युद्ध में अपनी प्रथम जीत दर्ज की। उनकी धार्मिकता के बाद जनता ने उनकी वीरता भी देखी। वे एक साहसी योद्धा और बेहतरीन तीरंदाज थीं। आप हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी। हमेशा आक्रमण करने को तत्पर भील और गोंड्स से उन्होंने कई बरसों तक अपने राज्य को सुरक्षित रखा।

राजमाता की शासन व्यवस्था का सबसे बड़ा बदलाव था सेना को राज्य से अलग करना। आपने अपने विश्वासपात्र सूबेदार तुकोजीराव होलकर को अपना सेनापति बनाया था, जिनके पास सेना कि पूरी कमान थी वहीं राजमाता ने शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी खुद के पास रखी थी। आपने राज्य और अपने स्वयं के खर्चे को भी अलग किया यानि जो खर्चा वो खुद पर करती वो उनका अपना संचित धन रहता था और राज्य के बेहतरी के लिए खर्चा राजकोष से आता था। यानि शासन व्यवस्था में उस समय उन्होंने एक अलग स्तर की पारदर्शिता को स्थापित किया।

आप न्याय के प्रति बहुत सजग रहीं एवं अपने राज्य में नियमबद्ध न्यायालय बनवाए। गावों में पंचायतों को न्यायदान के व्यापक अधिकार दिए। आपने महिला सशक्तिकरण के लिए विधवा महिलाओं को उनके हक दिलवाने के लिए कानून में कई बदलाव किए एवं विधवा महिलाओं को उनके पति की सम्पत्ति को हासिल करने का अधिकार दिलवाया। आपने विधवाओं को पुत्र गोद लेने का हकदार बनाया। इससे पहिले विधवाओं के पति की सम्पत्तियां राजकोष के जमा कर ली जाती थीं और पुत्र गोद लेने का विधान भी नहीं था। आपने अपने शासनकाल में राज्य के सिक्कों पर शिवलिंग और नंदी अंकित करवाया, आप परम शिवभक्त थीं।

राजमाता अहिल्यादेवी का जीवन सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणाप्रद है। आपकी महानता और सम्मान में भारत सरकार ने 25 अगस्त 1996 को आपकी याद में एक डाक टिकट जारी किया। वहीं इंदौर के नागरिकों ने वर्ष 1996 में आपके नाम पर एक पुरस्कार स्थापित किया। यह पुरस्कार असाधारण कृतित्व के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले पहिले महापुरुष श्री नानाजी देशमुख थे। राजमाता अहिल्या बाई पर 20 मिनट का एक वृत्तचित्र भी तैयार किया गया है। इसे एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर ने तैयार किया है।

इंदौर में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव मनाया जाता है। स्वतंत्र भारत में राजमाता अहिल्याबाई होल्कर का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। आपके बारे में अलग अलग राज्यों की पाठ्य पुस्तकों में अध्याय भी मौजूद हैं। चूंकि राजमाता अहिल्याबाई होल्कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंनें भारत के अलग अलग राज्यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्याणकारी योजनायें भी चलाई जा रही है।

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