आज ही राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला और रोशन सिंह को हुई थी फांसी
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
भारत के आजादी के संघर्ष में क्रांतिकारियों (Revolutionaries) की किसी घटना का सबसे ज्यादा महत्व रहा है तो वह शायद काकोरी कांड (Kakori case) का ही रहा है. इस घटना ने अंग्रेजी को हिला दिया था और पूरे देश में सनसनी फैल गई थी. वैसे तो इस षड़यंत्र में केवल 10 क्रांतिकारी शामिल थे, लेकिन 40 लोग गिरफ्तार हुए थे. इसके बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला कर रामप्रसाद बिस्मिल, (Ram Prasad Bismil) अशफाक उल्ला, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई. इनमें से बिस्मिल, अशफाकऔर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई लेकिन वह भी अलग अलग जगहों पर. 19 दिसंबर को देश में शहादत दिवस मनाया जाता है. इस दिन का ऐतिहासिक और देशप्रेम के लिहाज से बहुत महत्व है.
अलग अलग जगहों पर हुई थी शहदात
इस बात पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है कि अंग्रेज इन क्रांतिकारियों को फांसी देने से डर रहे थे. उन्हें यह आशंका थी कि बड़ी संख्या में लोग इन क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए जेलों पर हमला कर सकते है. इसीलिये सभी चारों को अलग अलग जगहों पर रखा गया. रामप्रसादबिस्मिल को गोरखपुर, अशफाकउल्ला को फैजाबाद और रोशनसिंह को इलाहबाद में एक ही दिन फांसी दी गई थी.
अंग्रेजों की बेकरारी
इतना ही नहीं तीनों के साथी राजेंद्र लाहिड़ी को तो गोंडा जेल में दो दिन पहले ही फांसी दे दी गई थी क्योंकि अंग्रेजों के खुफिया विभाग को पता चला था कि वे लाहिड़ी को छुड़ाने की योजना बना चुके हैं. वहीं ठाकुर रोशन सिंह का काकोरी कांड से कोई संबंध नहीं था. लेकिन एक अन्य मामले का सहारा लेकर अंग्रेजों ने बिस्मिल के दोस्त रोशन सिंह की फांसी सजा दिलवा दी. इस मामले में अंग्रेजों ने क्रांतिकारियो को सजा दिलवाने के लिए बहुत जोर लगा दिया.
काकोरी में लूट की भूमिका
क्रांतिकारी गतिविधियां चलाने के लिए क्रांतिकारियों को पैसे की जरूरत थी. विचार किया गया कि क्यों अंग्रेजों से ही पैसा लूट लिया जाए, आखिर वह पैसा तो भारतीयों का है. बिस्मिल और उनके साथियों को पता चला कि खजाना ट्रेन से जाता है तो उन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूटने की योजना बना डाली और तय किया गया कि 9 अगस्त 1925 को ट्रेन को लूटा जाएगा.
बखूबी दिया अंजाम
काकोरी में लूट की इस योजना को बखूबी अंजाम दिया गया. कुछ लोग ट्रेन में सफर कर रहे थे तो कुछ काकोरी स्टेशन पर उसका इंतजार. राजेंद्र लाहिड़ी ने चेन खींच कर ट्रेन को रोका था. इसके बाद ट्रेन में मौजूद क्रांतिकारियों ने लोगों को केवल कुछ करने से रोकने के लिए बंदूक दिखाई. और फिर सभी खजाने का संदूक लेकर फरार हो गए.
कौन कौन थे शामिल
इस योजना में सवर्ण सिंह (भगत सिंह के चाचा), राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भाभी, सचिंद्र बक्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण दबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, सचिंद्रनाथ सान्याल, और मन्मथनाथ गुप्ता ने भाग लिया था. लेकिन पुलिस ने 40 लोगों को इस साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया. इनमें से सवर्ण सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा दिलवाई गई.
अंग्रेजों की साजिश
अंग्रेजों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को आंतकी घोषित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. काकोरी में लूट के दौरान एक वकील अहमद अली भी यात्री था और ट्रेन रुकने पर वे महिलाओं के डिब्बे में अपने पत्नी को देखे गए तो मनमथनाथ गुप्ता से गलती से चली गोली से वे मारे गए. अंग्रेजों ने इस हादसे का फायदा उठाया और सभी क्रांतिकारियों को हत्या का आरोपी बना दिया.
तमाम कोशिशों के बाद अंग्रेज क्रांतिकारियों को आतंकी ठहराते रहे. लेकिन क्रांतिकारियों ने अपने बर्ताव से इसे कभी सही साबित होने नहीं दिया. रामप्रसाद बिस्मिल ने सरफरोशी गीत गाकर अपना देश प्रेम दिखाया, उनकी कविताएं उनके व्यक्तित्व को अलग ही ऊंचाई पर ले जाती हैं. वहीं अश्फाक उल्ला और रोशन सिंह ने भी गर्व के साथ फांसी को गले लगाकर अपना देश प्रेम अमर कर दिया.
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