मानव का महाकाव्य है रामचरितमानस,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राम छोड़कर और की जिसने कभी न आस की,
रामचरितमानस-कमल जय हो तुलसीदास की।

मानव का महाकाव्य है रामचरितमानस। इसमें व्यक्ति का व्यक्ति के साथ ….पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सम्बंधों को पूरी आत्मीयता के साथ बताया गया है। मानस की एक-एक चौपाई ….मानव मन के कई परतों का प्रतिबिंब है। ऐसी चौपाई पढ़कर ….तरह-तरह के भिन्न विचार, अपनी-अपनी समझ के अनुरूप आने हीं चाहिए। यहीं तो …लोकतंत्र की विभिन्न विचाराधारा का महासंगम है। यहां…देवत्व-राक्षसत्व का शाश्वत संघर्ष चलता रहा है।

रावण …भी तो जान गया था। ये श्रीराम हीं हैं। इनसे जीत पाना असंभव है। तो …बेहतर है अपनी असुर प्रवृति को भगवान के हाथों हीं मिटने दिया जाए। कम से कम सद्गति तो मिलेगी। ….असुर ग्यानि बने….लेकिन प्रवृति नहीं बदली। रामचरितमानस …प्रकृति एवं प्रवृति में संक्रांति का अमृतकलश है। रामचरितमानस एक महाग्रंथ नहीं ….एक महायात्रा है जो मनुष्य अपने जीवन के कई भूभागों, कई आयामों में तय करता है। रामचरितमानस कर्तव्य की पाठशाला है।

यहां ….जीवन के हर मोड़ पर कर्तव्यबोध है। अधिकार तो बहुत पीछे रह जाता है। रामचरितमानस …..त्याग एवं आत्मत्याग की महिमा का सुंदरतम प्रसंग है। यह …मनुष्य के मानव होने का संकल्प है। रामचरितमानस को समझने के लिए ….अधिकारों की हुल्लड़बाजी, परपीड़क प्रयत्न एवं स्वयं को नकारात्मक रूप से परिभाषित करने की नियत से बाहर आना होगा। रामचरितमानस ….शिक्षा, प्रबंधन, सभ्यता एवं नेतृत्व आदि विषयों का प्रकाश स्तंभ है। रामचरितमानस हीं है….जो मानव, पशु, पक्षी… को एक समान दृष्टि से देखता है।

यहां …विभाजित, विखंडित, कलुषित भावना का विसर्जन होता है….और आमिषभोगी गिद्ध, चपलमति वानर, महातपस्विनी वनवासी माता शबरी ….और स्वयं मर्यादापुरूषेत्तम श्रीराम …एक हीं मन की भूमि पर समान भाव से ….राक्षसी प्रवृति के खिलाफ …उठ खड़े होते हैं। ….हमारे समाज में ….आज सभ्यता को हीं नष्ट करने पर तुली हुई कई ….बर्बर राक्षसी प्रवृतियां….अलग-अलग रूपों में विचरण कर रहीं है।

…लेकिन … धन्य है यह मिट्टी जिसकी धूल में… राम और कृष्ण जैसे बालक खेलें हैं। जहां धर्म के दस लक्षणों के साथ …मनुस्मृति है, कर्म, भक्ति एवं ग्यान का कोष, भगवतगीता है …एवं मानव मन में रचा-बसा लोकमंगल का मंत्रोच्चार – श्रीरामचरितमानस है।….. गर्व है।

तुलसी का रामचरितमानस एक श्रेष्ठ महाकाव्य है, उसमें कथानक, चरित्र, प्रकृति सौन्दर्य, युग-जीवन कलात्मकता और महान् उद्देश्य जैसी विशेषताएँ आसानी से मिल जाती हैं। वह परम्परागत शैली में लिखा गया है। सही अर्थों में रामचरितमानस तुलसी का काव्य प्रतिभा का निरुपण करने वाला सांस्कृतिक महाकाव्य है।

करम प्रधान बिरख करि रख्खा,
जो जस करिए सो-तस फल चाखा

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