क्षेत्रीय पत्रकारिता को अलग पहचान देनेवाले रामोजी राव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मीडिया लीजेंड और क्षेत्रीय पत्रकारिता को अलग पहचान देनेवाले, आदरणीय रामोजी राव गारु के निधन की दुखद खबर मिली. हम जैसे हजारों, मीडियाकर्मियों, पत्रकारों ने उनसे बहुत कुछ सीखा. आज वह इस नश्वर संसार से विदा हुए, तो पुरानी स्मृतियां उभर आयीं.
पत्रकारिता में हो रहे बदलावों पर रिपोर्ट, पुस्तकें, लेख, शोध आदि पढ़ने में रुचि थी. सिर्फ अपने देश के संदर्भ में ही नहीं, दुनिया के संदर्भ में भी. उन्हीं दिनों मीडिया अध्येता रॉबिन जेफ्री के लेखों पर नजर गयी. ‘इपीडब्ल्यू’ (इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली) में सिलसिलेवार, भारत की क्षेत्रीय पत्रकारिता पर लिख रहे थे. तब, मुंबई में टाइम्स ग्रुप (धर्मयुग) की पत्रकारिता छोड़ हैदराबाद आ गया था.
बैंक की नौकरी में. पर, पत्रकारिता और लेखन से रिश्ता बना हुआ था. फिर आनंद बाजार पत्रिका समूह (रविवार) से जुड़ा. हैदराबाद में रहते हुए ‘इनाडु’ अखबार, उसकी नयी यात्रा, जोखिम और फिर एक आंधी—तूफान की तरह क्षेत्रीय पत्रकारिता का स्वर बनकर उभरना, पढ़ा. देखा. जेफ्री ने विस्तार से, सहज—सरल और रोचक शैली में, सूचना संपन्न आलेख लिखे. कुछ सालों बाद देश के दो महानगरों, मुंबई और कोलकाता में पत्रकारिता करने, फिर हैदराबाद में नौकरी के बाद, बिहार में पत्रकारिता का अवसर चुना. बिहार में भी दक्षिण बिहार (जो अब झारखंड है) के रांची से निकलनेवाले एक बंदप्राय अखबार में. चुनौतियों को जान-समझकर.
उस समाचारपत्र में ज्वाइन करने के बाद, अंदरूनी तथ्यों को जाना-समझा. आम निष्कर्ष था कि इसका चलना असंभव चुनौती है. प्रबंधन के विशेषज्ञों, जानकारों ने भी अध्ययन कर यही कहा कि पूंजीविहीन व पुराने इनफ्रास्ट्रक्चर पर चल रहे अखबार का भविष्य नहीं है. आज वही अखबार 40वां स्थापना दिवस मनाने की यात्रा पर है, तो इसमें रामोजी राव जैसे लोगों की प्रेरणा भी रही है.
इस अखबार से जुड़ा. कुछेक महीने काम कर, इसकी चुनौतियां समझकर, प्रमुख क्षेत्रीय अखबारों को खुद देखने-अध्ययन की योजना बनायी. उस यात्रा में दक्षिण के कई अखबारों को देखा. उनके मुख्यालय गया. उनमें से एक ‘इनाडु’ भी था. पहली बार रामोजी राव से मिलना हुआ. हमारी कोई पहचान नहीं थी. सिवाय कि ‘धर्मयुग’ (मुंबई) और ‘रविवार’ (कोलकता) में काम किया था. तब दक्षिण बिहार (अब झारखंड) में एक बंदप्राय अखबार की चुनौतियों की तलाश में हम भटक रहे थे. पर, रामोजी राव गारु आत्मीयता से मिले. उनसे अखबार के फैलाव, भविष्य के परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा हुई.
अखबार में किये अपने अनेक नये प्रयोगों के बारे में उन्होंने बताया. साथ ही हमें सुझाव दिया कि हम ‘इनाडु’ अखबार के विशाखापटनम संस्करण को देखें, जो उनके आरंभिक प्रयोगों में से एक था. वहां से विशाखापटनम गया. वहां भी ‘इनाडु’ के कंटेंट, कामकाज के तरीके, प्रशिक्षण आदि के बारे में देखा, जाना. बहुत कुछ सीखा. यह रामोजी राव से हुई पहली मुलाकात थी. बाद में उन पर समय—समय पर मीडिया में छपनेवाले कंटेंट पढ़ने को मिलते रहे. वह भी काटकर रखता, पढ़ता और सीखता था.
रामोजी राव से दूसरी मुलाकात, लंबे अंतराल बाद हुई. तब, तक हमारा अखबार (जहां हम कार्यरत थे) अपनी पहचान बना चुका था. हम सब अखबार का देवघर संस्करण शुरू करना चाहते थे. अखबार उद्योग से जुड़े लोगों का कहना था कि यह एडिशन कभी वायबल नहीं हो सकता. बात सही थी. पर, हमने निकालना तय किया. भविष्य को देखकर. उसके लिए तब सबसे सस्ती मशीन की तलाश थी. पता चला, ‘इनाडु’ अपनी दो पुरानी मशीनें बेच रहा है. आमतौर पर न्यूजपेपर इंडस्ट्री ऐसे पुराने, आउटडेटेड मशीनों को खारिज कर चुके थे.
तब हम और अखबार में प्रबंधन के वरिष्ठ सहकर्मी श्री केके गोयनका हैदराबाद गये. रामोजी राव से पुन: हमारी मुलाकात हुई. वही जीवंतता. मीडिया परिदृश्य की गंभीरता से समझ व बदलावों के विजन से संपन्न. हम वहां से पुरानी मशीन लाये. देवघर संस्करण की बुनियाद पड़ी. कुछ ही समय बाद ‘इटीवी’ का दौर शुरू हुआ. ‘इटीवी’ एक नयी पहचान के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उभरा. क्षेत्रीय पत्रकारिता को नये सिरे से, नया आयाम देने लगा.
2005 से 2010 तक हमें भी चुनावी संवाद में ‘इटीवी’ में बुलाया जाता. हैदराबाद जाता. रामोजी फिल्म सिटी में ही रूकना होता. इतना भव्य, सुंदर निर्माण. आज उस फिल्म सिटी में 25 हजार लोग काम करते हैं. लाख के करीब लोगों को उससे अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है. रामोजी का आवास उसी परिसर में एक पहाड़ी पर था.
रामोजी राव ने ‘इनाडु’ और ‘इटीवी’ से पत्रकारिता की दुनिया को कैसे बदला, पत्रकारिता का प्रभाव और असर कितना गहरा था,
यह जानना, अतीत के मीडिया के गौरवशाली इतिहास से रू—ब—रू होना है. रामोजी ने बड़ी चुनौतियों के बीच, कठिनाइयों से पार पाकर ‘इनाडु’ की नींव रखी थी. पहले वह दिल्ली में एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करने आये. नौकरी की भी. पर, उन्हें अपनी मातृभाषा से लगाव था. वह अपनी जमीन पर लौट गये. बाद में उन्होंने पत्रकारिता, मीडिया, फूड बेवरेज, होटल, फिल्म सिटी से लेकर अन्य व्यवसायों और उद्यमों में जो पहचान बनायी, वह प्रेरक मिसाल है.
उनकी मूल पहचान बनी कि भारतीय मीडिया जगत के लिए वह ‘इंडिविजुअल’ (व्यक्ति) की परिधि से निकल ‘इंस्टीट्यूशन’ (संस्थान) के रूप में स्थापित हुए. अपने समय में उन्होंने हजारों, लाखों को प्रेरणा दी. आनेवाली पीढ़ियां उनके व्यक्तित्व और काम से प्रेरणा लेती रहेंगी. रामोजी राव गारु को हमारी भावमयी श्रद्धांजलि और प्रणाम.
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