ट्रांसफर-पोस्टिंग में अब नहीं चलेगी सिफारिश–राकेश अस्थाना,पुलिस आयुक्त.

ट्रांसफर-पोस्टिंग में अब नहीं चलेगी सिफारिश–राकेश अस्थाना,पुलिस आयुक्त.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली पुलिस अथवा किसी फोर्स में फोर्स के मुखिया को ट्रांसफर-पोस्टिंग में मंत्रियों और नेताओं आदि की सिफारिश तो माननी ही पड़ती है। दिल्ली पुलिस में भी ऐसा होता रहा है। जब मंत्रियों और नेताओं द्वारा सिफारिश की जाती थी, तब पुलिस मुख्यालय द्वारा उन मंत्रियों और नेताओं को पत्र जारी कर बताया जाता था कि उनकी सिफारिशें मान ली गई हैं। लेकिन, अब ऐसा नहीं चलेगा। नियम के तहत ही ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर अन्य काम होंगे।

सिपाही से लेकर विशेष आयुक्त भी अगर मंत्रियों, नेताओं और अन्य बाहरी लोगों से सिफारिश कराएंगे तो उनकी खैर नहीं होगी। उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी। आयुक्त राकेश अस्थाना ने स्टैंडिंग आर्डर जारी कर ऐसे आचरण पर रोक लगा दी है। इससे महकमे में खलबली मची है। इस तरह के आदेश से पुलिसकर्मी कह रहे हैं कि आयुक्त दिवंगत पूर्व आयुक्त वाईएस डडवाल की तरह फैसले ले रहे हैं।

पुलिस में बढ़ेगा अनुशासन

दिल्ली पुलिस पहले से ही पेशेवर और अनुशासित मानी जाती है। पिछले दिनों पुलिस आयुक्त द्वारा जारी नए स्टैंडिंग आर्डर से फोर्स में और ज्यादा अनुशासन बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल, पुलिस में सिपाही से लेकर आयुक्त, यानी सभी रैंक के कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) तैयार की जाती है। उसके आधार पर ही उनके कैरियर का आकलन होता है। पदोन्नति, तैनाती, वेतन वृद्धि आदि एसीआर के आधार पर किया जाता है। दिल्ली पुलिस में सिपाही से सब-इंस्पेक्टर तक का एसीआर थानाध्यक्ष, थानाध्यक्ष और एसीपी का उनके संबंधित डीसीपी तैयार करते थे।

अब नए आदेश के तहत इसमें बदलाव कर दिया गया है। सिपाही और हवलदार का एसीआर सब-इंस्पेक्टर, जबकि एएसआइ तथा सब-इंस्पेक्टर का थानाध्यक्ष और थानाध्यक्ष का एसीपी तैयार करेंगे। इससे थानों और यूनिटों में तैनात कर्मचारियों, यानी निचले स्तर पर जल्द काफी अनुशासन दिखने लगा है।

15 मिनट रुको, सामान निकाल लेता हूं

यूनियन टेरिटरी कैडर के 1988 बैच के आइपीएस मुक्तेश चंदर 31 जनवरी को दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत्त हो गए। बेहतर अधिकारी के तौर उनकी अच्छी छवि रही। वे अच्छे बांसुरी वादक भी हैं। 31 की रात मदर टेरेसा स्थित आधिकारिक मैस में आयोजित विदाई समारोह में जब उन्होंने बांसुरी पर ‘रहें न रहें हम महका करेंगे, बनके कली, बनके सबा, बाग-ए-वफा में..’ गाने की धुन छेड़ी, तो पुलिस आयुक्त समेत सभी अधिकारियों की आंखों में आंसू आ गए।

वैसे, उसी दिन सुबह में जब वह अपने कार्यालय से निजी सामान हटवा रहे थे, तो उनकी जगह ज्वाइन करने वाले 1988 बैच के आइपीएस एसबीके सिंह वहां आ गए। इस पर हंसते हुए मुक्तेश चंदर ने उनसे कहा, सर 15 मिनट रुक जाओ, सामान निकाल लेता हूं। इस पर वह हंस पड़े। बता दें कि सर्वाधिक समय तक गोवा के डीजी रहे मुक्तेश चंदर तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर (अब दिवंगत) के चहेते अधिकारी थे।

सुर्खियां बटोरने के लिए ‘आपरेशन’

दिल्ली पुलिस में बेहतर काम करने के लिए सभी 15 जिलों और यूनिटों के डीसीपी समेत समस्त आला अधिकारियों पर हमेशा से दबाव रहा है, लेकिन जब मुखिया अधिक सख्त हो, तब उनपर और बेहतर करने का दबाव अधिक होना लाजिमी है। इन दिनों अधिकारी गंभीरता से कामकाज में जुटे तो हैं, साथ ही दैनिक कामकाज को मीडिया की सुर्खियों में लाने के लिए नए तरीके भी अपना रहे हैं।

सबसे अधिक होड़ जिले के डीसीपी में लगी है। बदमाशों और किसी मामले के आरोपितों को पकड़ कर वे उसे अपने मनमाफिक ‘आपरेशन’ का नाम दे रहे हैं। बाहरी जिले के डीसीपी परविंदर सिंह ने शराब तस्करों को पकड़ने पर उसे ‘आपरेशन सतर्क’ तो उत्तरी जिले के डीसीपी सागर सिंह कलसी ने गुमशुदा बच्चों को ढूंढने के लिए ‘आपरेशन तलाश’, बदमाशों पर निगरानी रखने के लिए ‘आपरेशन रक्षक’ नाम दिया। इसी तरह अन्य जिला पुलिस भी अलग-अलग तरह के ‘आपरेशन’ चला रही है।

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