गौरवशाली अतीत को याद करते हुए भविष्य की चुनौतियों के लिए स्वयं को तैयार करना होगा -प्रो.संजीव कुमार शर्मा
श्रीनारद मीडिया, प्रतीक कु. सिंह / मोतीहारी पु.च.
भारत विद्या केंद्र एवं संस्कृत विभाग, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के तत्वावधान में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम श्रृंखला के अंतर्गत ‘स्वजागरण से राष्ट्रजागरण’ विषयक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने की। प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी का सान्निध्य सभी को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि वक्ता विशिष्ट समाजसेवी,बिहार देवव्रत प्रसाद थे।
संगोष्ठी का प्रारंभ चंदन मिश्रा(विद्यार्थी,संस्कृत) द्वारा प्रस्तुत वैदिक मंगलाचरण से हुआ। स्वागत-वक्तव्य देते हुए प्रो.प्रसूनदत्त सिंह ने कहा कि, हम राष्ट्र जागरण के पुरोहित हैं। भौतिकता के मार्ग पर सजगता से चलते हुए भविष्य निर्माण का कार्य हमें ही करना है। आज ‘आत्मकेन्दित’ चिंतन को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
नई शिक्षा नीति-2021 के सफल क्रियान्वयन से ‘नैतिक विकास’ का मार्ग प्रशस्त होगा, ऐसी मैं आशा करता हूँ।
‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम श्रृंखला के अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि, आज का दिन विश्व पटल पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे ‘शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन’ के नायक स्वामी विवेकानंद को याद करने का दिन है। कोविड-19 के चुनौतीपूर्ण समय में विश्वविद्यालय निरंतर कार्यक्रमों का आयोजन कर विद्यार्थियों को सीखने की प्रक्रिया से जोड़ रहा है।
कार्यक्रम के अतिथि वक्ता देवव्रत प्रसाद(समाजसेवी,बिहार) ने कहा कि , ‘स्व’ का जागरण चेतना का जागरण है। अपरिवर्तित स्वरूप को विस्तार देते हुए राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने का कार्य हम सभी का है। भारतवर्ष की प्रकृति करुणा है। आज भारतवर्ष की आत्मा के जागरण की आवश्यकता है। ऋषि-मुनियों की समृद्ध परंपरा को याद करते हुए ‘स्व’ से जुड़ने की ओर अग्रसर होना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। राष्ट्र महज एक शब्द नहीं बल्कि भावना है। ‘स्वजागरण’ से ‘राष्ट्रजागरण’ की इस यात्रा में सामाजिक प्रगति को भी साथ लेकर चलना होगा।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो.संजीव कुमार शर्मा, कुलपति, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, ने कहा कि, हमारे सामने प्रश्न भी हैं और चुनौतियाँ भी। गौरवशाली अतीत भी है और भविष्य की कठिनाईयां भी। आर्थिक समृद्धि का आकर्षण भी है और वैश्विक पटल पर स्वयं को स्थापित करने की अकुलाहट भी। इन सभी के मध्य हमें संतुलन बनाने की आवश्यकता है। संतुलन ही उत्तम मार्ग है।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ. श्याम कुमार झा(सह-आचार्य, संस्कृत विभाग) एवं कार्यक्रम का सफल संचालन विश्वजीत बर्मन(सहायक आचार्य,संस्कृत विभाग) ने किया।