आपकी सरलता, सहजता और संवेदनशीलता की याद रुला जाती है सत्येंद्र भैया !

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देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में शहीद सीवान के लाल सत्येंद्र दुबे जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क 

दिल्ली का जिया सराय मुहल्ला। 27 नवंबर, 2003 की वह शाम बेहद उदास थी। हमलोगों को दुबे भैया यानी सत्येंद्र दुबे जी की हत्या की सूचना मिली। आंखों में आंसू छलके जा रहे थे परंतु मन हकीकत को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहा था। बार- बार उनका चेहरा सामने आ रहा था। उनका संवेदनापूर्ण व्यवहार, उनकी सादगी, उनकी सरलता की याद मन को व्याकुल किए जा रही थी।

अब भी तकरीबन 19 साल पुरानी उनकी यादें 27 नवंबर को विशेष तौर पर मन को व्यथित कर जाती हैं। हम बात कर रहे हैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग में अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के परियोजना निदेशक रहे, आईआईटी इंजीनियर स्वर्गीय सत्येन्द्र दुबे जी की। जिनकी गया में 27 नवंबर, 2003 को हत्या कर दी गई थी।

पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट में हत्या की सूचना के बाद भी कुछ दिन तक मौन रही थी मीडिया

हत्या की सूचना मिलने के बाद जिया सराय में उनके साथ रहनेवाले सभी लोग बेहद व्यथित थे। पर तकलीफ इस बात को लेकर ज्यादा हो रही थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में कार्यरत एक वरिष्ठ अधिकारी की मौत पर भी मीडिया कुछ दिनों तक मौन साधे रही थी। वो तो इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र द्वारा प्रथम पेज पर बड़ी स्टोरी के प्रकाशन के साथ बाकी मीडिया का ध्यान उधर गया। फिर ऐसा दवाब बना कि मामला सीबीआई जांच के लिए दे दिया गया।

पर रहस्य, रहस्य ही बना रहा

आशंका माफिया की हरकतों को लेकर थी। लेकिन जांच से भी कुछ विशेष और स्पष्ट तथ्य सामने नहीं आ पाए। मामले को छीना झपटी में हत्या तक सीमित माना गया। जबकि यह तथ्य भी सामने आया था कि स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में भ्रष्टाचार को लेकर सत्येन्द्र दुबे जी द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय तक सूचना प्रदान की गई थी। मामले की जांच के दौरान कई गवाहों की मौत ने भी गंभीर सवाल उठाए।

साधारण स्वरूप में असाधारण व्यक्तित्व

मेरी उनसे पहली मुलाकात दिल्ली के जिया सराय में ही हुई थी। उनका साधारण स्वरूप देखकर मैं नहीं समझ पाया था कि सिवान के शाहपुर के मूल निवासी दुबे भैया 10वीं और 12वीं के स्टेट टॉपर थे तथा आईआईटी कानपुर से बीटेक और आईटी बीएचयू से एमटेक थे। वे भारतीय इजीनियरिंग सेवा के लिए चयनित होकर भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक रहे। उनकी असाधारण प्रतिभा से साक्षात्कार आने वाले दिनों में उनके सान्निध्य में ही हुआ। इतने प्रतिभा संपन्न होने के बावजूद उनकी सरलता, सहजता, संवेदनशीलता और साफगोइ मन को लुभा जाती थी।

नहीं तो होते वे आईएएस टॉपर भी

भारतीय इंजीनियरिंग सेवा में सफलता के बाद वे सिविल सर्विस परीक्षा की भी तैयारी कर रहे थे। परंतु आश्चर्य होता हैं कि उनके जैसे समर्पित, संवेदनशील, धैर्यवान और कठोर परिश्रमी अभ्यर्थी को साक्षात्कार में बेहद कम अंक मिले। अब चूक आयोग के सदस्यों से हुई हो या स्वयं दुबे भैया अपनी योग्यता का परिचय नहीं करा पाए हों। उनके सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के शानदार अंक और साक्षात्कार में बेहद कम अंक, सिस्टम पर सवाल तो उठा ही जाते हैं? परंतु तथ्य यह भी रहा कि अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी की सेवा से वंचित जरूर रह गई।

प्रेरणा के थे असीम और अनंत सागर

दिल्ली के जिया सराय में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों की भरमार थी। स्वर्गीय सत्येन्द्र दुबे जी अधिकांश अभ्यर्थियों के लिए प्रेरणा के संबल थे। सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों के लिए हर दिन एक संघर्ष की बानगी होती है। ऐसे में कोई यदि वरिष्ठ साथी मनोबल बढ़ाए, प्रेरित करे तो ये बड़ी बात होती हैं। स्वर्गीय सत्येंद्र भैया ने प्रतिभाओं को प्रेरित करने का लंबा सिलसिला कायम किया।

उनका समर्पण देखने लायक था

स्वर्गीय सत्येंद्र दुबे जी, चाहे वो सेवा के दायित्वों के निर्वहन की बात हो या परीक्षा की तैयारी की बात। हर जगह, उनका समर्पित दृष्टिकोण प्रभावित कर जाता था। शायद यहीं उनका समर्पित प्रयास, उनकी सफलता का आधार भी बना। किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ तैयार हो जाना, उनकी खासियत थी। परिस्थितियां कभी भी उनके निर्णयों पर बाधा नहीं बन पाती थी। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर असाधारण उपलब्धियां हासिल करनेवाले सत्येंद्र दुबे जी ने जहां परिवार को सहारा दिया, वहीं कई अन्य लोगों के मददगार बनकर मानवता की महान सेवा भी की। उन्हें मिलन वाले पुरस्कार भी उनके कृतित्व के सामने बौने से महसूस होते हैं। उनके अनुज श्री धनंजय दुबे, जो पेशे से इंजीनियर ही है। अपने बड़े भाई के बारे में कुछ भी बताने में अपने को असमर्थ पाते हैं क्योंकि तथ्यों पर भावनाएं हावी हो जाती है। उनकी यादें आंखें छलका जाती है।

उनकी संवेदनशीलता भी गजब की थी

सत्येंद्र दुबे भैया एक समर्पित कर्मयोगी ही नहीं थे अपितु एक संवेदनशील और भावुक इंसान भी थे। जब भी मैं परेशान होता तो उनका सहयोग और मार्गदर्शन जरूर मिलता था। ऐसा संवेदनशील सहयोग और मार्गदर्शन कई अन्य अभ्यर्थियों को भी मिला। किसी का भी सहयोग करना, उनका शायद सबसे प्रिय शगल था। अपने दोस्तों की मदद के लिए अपनी सीमाओं को भी पार कर जाते थे। उनके प्रिय दोस्तों में शुमार श्री संतोष कुमार भावुक होकर बताते है कि उनके जैसा दोस्त मिलना आज के दौर में मुश्किल है! दोस्तों की मदद के दौरान वे अपने पास उपलब्ध संसाधनों की भी परवाह नहीं करते थे। उन्होंने अपने कई दोस्तों की ज़िंदगियों को संवारने, सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गांधीवाद का व्यवहारिक अनुसरण

स्वर्गीय सत्येंद्र दुबे जी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और विचार प्रभावित करते थे। गांधी जी की आत्मकथा ‘माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ’ वे 200 से अधिक बार पढ़ चुके थे। वे केवल गांधीवाद से वैचारिक साम्यता ही नहीं रखते थे। गांधीवाद उनके व्यवहार का आधार भी था। सत्यनिष्ठता, शाकाहार, त्याग, संवेदना के उनके व्यवहार गांधीवाद के प्रति श्रद्धा और सम्मान के प्रतिफल ही थे।

आज हमारे सत्येंद्र दुबे भैया इस जहां में नहीं हैं लेकिन उनकी सरलता, सहजता, संवेदनशीलता की यादें आज भी रुला जाती है। उनकी प्रेरणा की बातें उनको सस्नेह नमन करती है। मन श्री हरि से यहीं प्रार्थना करता है कि वे जहां भी हो, उन्हें अपने श्री चरणों में स्नेहिल स्थान प्रदान करें।

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