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पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और हमारा समाज - श्रीनारद मीडिया

पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और हमारा समाज

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कुछ वर्षों में भारत में सभी विधानमंडल सदस्यों या विधि-निर्माताओं (सांसद, विधायक) में कम से कम 33% महिलाएँ होंगी। संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम 2023 को हाल ही में राष्ट्रपति की मंज़ूरी प्राप्त हो गई है। यह अधिनियम लोकसभा, प्रत्येक राज्य की विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में कुल सीटों में से एक तिहाई सीटों को 15 वर्षों के लिये महिलाओं के लिये आरक्षित करने का प्रावधान करता है। इस संशोधन का उद्देश्य नीतिनिर्माण में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना है। हालाँकि विधानमंडल सदस्यों की संख्या और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की शक्ति के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, लेकिन इनमें महिलाओं की संख्या इस बात का उपयुक्त अनुमान प्रदान करती है कि ये संस्थाएँ जिस समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं, उसके लिये कितनी प्रतिनिधिक हैं।

  • विधि निर्माण में महिलाओं को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते हुए, हमें कानून प्रवर्तन में भी उनके महत्त्व को कम नहीं आँकना चाहिये। महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 नीति-निर्माताओं और प्राधिकारों के लिये इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिये एक प्रेरणा के रूप में कार्य कर सकता है।

पुलिस बल में महिला प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति: 

  • फरवरी 2023 में राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व (1 जनवरी, 2022 तक की स्थिति के अनुसार) कुल राज्य पुलिस बल का 11.7% था।
    • जबकि कई राज्यों ने पुलिस बल में महिलाओं के लिये 10% से 33% आरक्षण को अनिवार्य कर रखा है, इनमें से कोई भी राज्य इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर रहा था।
    • उच्च पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी इससे भी निम्न स्तर पर थी (8.7%)।

पुलिस बल में महिलाओं का महत्त्व और आवश्यकता: 

  • विधिक अधिदेश और विशिष्ट भूमिकाएँ: पुलिस बल में महिलाओं की उपस्थिति ऐसे विधिक अधिदेशों (Legal Mandates) के कारण आवश्यक है जो कुछ निर्धारित प्रक्रियाओं की आवश्यकता रखते हैं, जैसे कि महिलाओं से जुड़े मामलों में महिला अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट दर्ज करना और गिरफ्तारियाँ करना।
    • इसके अलावा, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम जैसे विशेष विधान में महिला अधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि संवेदनशील मामलों को आवश्यक सहानुभूति और व्यावसायिकता के साथ संभाला जाए।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को संबोधित करना: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े बताते हैं कि भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत परिभाषित अपराधों का एक महत्त्वपूर्ण भाग महिलाओं के विरुद्ध अंजाम दिया जाता है। इन अपराधों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने, पीड़ितों को सहायता प्रदान करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिये महिला पुलिस अधिकारियों का होना महत्त्वपूर्ण है। उनकी उपस्थिति से ऐसे अपराधों की रिपोर्टिंग में वृद्धि हो सकती है और उत्तरजीवी/सर्वाइवर के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया प्राप्त हो सकती है।
  • अपर्याप्त महिला पुलिस बल: NCRB का आँकड़ा यह भी उजागर करता है कि मौजूदा महिला पुलिस बल महिलाओं से संबंधित मामलों तक के प्रबंधन लिये भी अपर्याप्त है। इस अंतराल को दूर करने और दिन-प्रतिदिन की कानून प्रवर्तन गतिविधियों सहित सभी प्रकार की घटनाओं के लिये पर्याप्त कवरेज प्रदान करने हेतु महिला अधिकारियों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है।
  • महिलाओं की सिद्ध क्षमता: पुलिस बल में कार्यरत महिलाओं ने विभिन्न भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों में अपनी सबल क्षमता का प्रदर्शन किया है। वे पुलिस संस्थान के भीतर किसी भी कार्यभार को संभालने में पूरी तरह से सक्षम हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि लैंगिक आधार पर कानून प्रवर्तन में उनकी भागीदारी को अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिये।
  • प्रतिनिधित्व और विश्वास: भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, पुलिस बल सहित प्रत्येक संस्थान के लिये उस जनता का प्रतिनिधि होना आवश्यक है जिसकी वे सेवा करते हैं। पुलिस बल में महिलाओं की संख्या की वृद्धि करना समुदाय में विश्वास और भरोसा पैदा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। इससे संदेश प्राप्त होगा कि पुलिस सभी नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति सुलभ और उत्तरदायी है।

पुलिस में महिलाओं की भर्ती से जुड़े मुद्दे:

भर्ती के स्तर पर: महिलाओं द्वारा प्रायः प्रवेश स्तर से ही विभिन्न चुनौतियों का सामना करना शुरू हो जाता है।

  • केवल अंतराल भरने के लिये भर्ती: अधिकांश राज्यों में क्षैतिज आरक्षण के माध्यम से अपने पुलिस बलों में प्रत्यक्ष भर्ती के माध्यम से 30% या 33% रिक्त पदों को महिलाओं से भरने की नीति कार्यान्वित है। इसका अर्थ यह है कि यदि न्यूनतम आरक्षित रिक्त पद SC, ST, OBCऔर गैर-आरक्षित की प्रत्येक श्रेणी में योग्यता के आधार पर महिलाओं के साथ नहीं भरते हैं तो इस अंतराल को भरने के लिये महिला उम्मीदवारों को सूची में आगे बढ़ा दिया जाता है।
    • आमतौर पर महिलाओं को अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध भर्ती किया जाता है, जब सरकार रिक्तियों को भरने के लिये अनुमति प्रदान करती है।
  • स्थायी बोर्ड का अभाव: केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, कई राज्यों में स्थायी पुलिस भर्ती बोर्ड मौजूद नहीं है और उनके पास नियमित अंतराल पर भर्ती करने की स्वतंत्रता नहीं है।
  • अनियमित आरक्षण नीतियाँ: पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPR&D) द्वारा प्रकाशित विवरण (1 जनवरी 2021 तक) के अनुसार केरल, मिजोरम और गोवा जैसे कुछ राज्यों में पुलिस बल में महिलाओं के लिये आरक्षण की नीति लागू नहीं है और इन राज्यों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज 6% से 11% के बीच है।
    • कुछ राज्यों में राज्य सशस्त्र पुलिस बलों में महिलाओं के लिये आरक्षण 10% तक सीमित है।
  • आरक्षण का अकुशल कार्यान्वयन: हालाँकि कई राज्यों ने महिलाओं के लिये पर्याप्त संख्या में सीटें आरक्षित की हैं, लेकिन वे इस नीति को अक्षरश: लागू करने में बुरी तरह विफल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, बिहार में महिलाओं के लिये 35% और पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिये 3% आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन पुलिस बल में महिलाओं की वास्तविक संख्या लगभग 17.4% ही है।
  • रिक्तियों को भरने की निम्न दर: औसतन, हर साल कुल पुलिस पदों में से केवल 4% से 5% ही भर्ती के माध्यम से भरे जाते हैं, जबकि पुलिस बल छोड़ने की दर लगभग 2.5% से 3% है।
    • इस प्रकार, यदि हम पुलिस बल में महिलाओं की संख्या 10% से बढ़ाकर 30% करना चाहते हैं तो इसमें कम से कम 20 वर्ष लगेंगे।

भर्ती के बाद: महिलाओं को न केवल सेवा में आने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है बल्कि सेवा में आने के बाद भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ महिलाओं को पुलिस सेवाओं में शामिल होने से हतोत्साहित करती हैं।

  • कमज़ोर समर्थन: पुलिस बल में शामिल कई महिलाओं द्वारा कमज़ोर अवसंरचना (जैसे अलग शौचालयों की अनुपलब्धता और कार्यस्थल उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिये अवसर की कमी) के कारण असंतोष व्यक्त किया जाता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक धारणाएँ: लोगों के मन में अभी भी यह रूढ़ि है कि पुलिस का कार्य एक मर्दाना पेशा है जिसके लिये शारीरिक शक्ति, आक्रामकता और अधिकार-प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। यह एक तरह के ‘माचो कल्चर’ (Macho Culture) की पुष्टि करता है। यह महिलाओं को पुलिस सेवा में करियर बनाने से हतोत्साहित करता है या उन्हें अपने पुरुष सहकर्मियों, पर्यवेक्षकों और आम लोगों की ओर से भेदभाव एवं उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
  • परिवार और बच्चों की देखभाल का प्रभाव: व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों, विशेष रूप से बच्चों की देखभाल संबंधी भूमिकाओं, को संतुलित करना पुलिस सेवा में महिलाओं के करियर की प्रगति में एक बड़ी बाधा बनी हुई है। महिलाओं को कार्य एवं जीवन के बीच संतुलन बनाते समय एक तरह के ‘चाइल्ड-टैक्स’ का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि वरिष्ठ पद तक उनकी पहुँच पारंपरिक व्यवहार और दीर्घ कार्य-घंटे की संस्कृति में संलग्न रहने पर निर्भर होती है।

पुलिस बल में महिलाओं की संख्या में सुधार के लिये कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

  • अनुकूल माहौल का निर्माण करना: एक ऐसे कार्य वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है जो समर्थनकारी और समावेशी हो। इसमें ऐसी नीतियाँ और अभ्यास शामिल हैं जो यौन उत्पीड़न, समान वेतन और करियर में उन्नति के अवसरों जैसे मुद्दों को संबोधित करते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लिंग संवेदीकरण (gender sensitization) पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुरुष और महिला अधिकारी एक साथ सम्मानपूर्वक एवं प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें।
  • यौन उत्पीड़न पर रोक: पुलिस विभाग को महिलाओं के लिये सुरक्षित कार्य स्थान सुनिश्चित करना चाहिये और भेदभाव एवं उत्पीड़न के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति अपनानी चाहिये ताकि महिलाओं के लिये पुलिस सेवा को एक व्यवहार्य कैरियर विकल्प बनाया जा सके। विभिन्न विभाग कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये आंतरिक शिकायत समितियाँ स्थापित करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य हैं।
    • विभागों को ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण ) अधिनियम 2013’ को क्रियान्वित करना चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचा प्रदान करना: पुलिस बल में महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा आवश्यक है। इसमें सुरक्षित एवं पृथक रहने की जगह, कपड़े आदि बदलने की सुविधाएँ और बाल देखभाल सुविधाएँ (उन महिला अधिकारियो के लिये जो माता हैं) शामिल हैं। देर की पाली में कार्य करने वाली महिला अधिकारियों के लिये सुलभ और सुरक्षित परिवहन विकल्प भी उपलब्ध होने चाहिये।
  • समान पुलिस अधिनियम: पूरे देश के लिये समान पुलिस अधिनियम (Uniform Police Act) पुलिस अधिकारियों (महिलाओं सहित) की भर्ती, प्रशिक्षण और कार्य दशाओं से संबंधित नीतियों एवं विनियमों को मानकीकृत कर सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि महिला अधिकारियों को समान व्यवहार और अवसर प्राप्त हों, चाहे वे किसी भी राज्य में कार्यरत हों।
  • भर्ती बोर्ड: राज्य-स्तरीय भर्ती बोर्ड भर्ती प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर इसे अधिक कुशल और पारदर्शी बना सकते हैं। इन बोर्डों को सक्रिय रूप से महिलाओं की भर्ती को प्रोत्साहित करना चाहिये, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि चयन प्रक्रिया उचित और निष्पक्ष हो।
  • विशेष भर्ती अभियान: पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उद्देश्य से विशेष भर्ती अभियान शुरू करना एक उत्कृष्ट विचार है। इसमें अधिकाधिक महिला उम्मीदवारों को आकर्षित करने और उनके प्रतिधारण के लिये लक्षित आउटरीच अभियान, जागरूकता कार्यक्रम एवं मेंटरशिप पहल शामिल हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

उन सामाजिक धारणाओं और रूढ़ियों को संबोधित करना आवश्यक है जो महिलाओं को कानून प्रवर्तन के क्षेत्र में करियर बनाने पर विचार करने से हतोत्साहित कर सकती हैं। इन रूढ़ियों को चुनौती देने और पुलिस बल के भीतर उपलब्ध विविध भूमिकाओं एवं अवसरों को प्रदर्शित करने के लिये शिक्षा और जागरूकता अभियान शुरू किये जाने चाहिये।

विधायिका में महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने जैसे कदम पुलिस बल सहित विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिये एक मिसाल कायम कर सकते हैं। यह नीति-निर्माताओं और प्राधिकारों के लिये इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिये प्रेरणा का कार्य कर सकता है।

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