आरक्षण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का रामबाण इलाज नहीं है,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने (SC) ने सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% कोटा प्रदान करने के लिये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) की पहचान करने हेतु वार्षिक आय सीमा के रूप में 8 लाख रुपए तय करने में सरकार द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है।
प्रमुख बिंदु
- EWS के बारे में:
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- इससे संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया गया।
- यह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) हेतु शिक्षा संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक आरक्षण के लिये है।
- यह अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिये 50% आरक्षण नीति द्वारा कवर नहीं किये गए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने हेतु अधिनियमित किया गया था।
- यह केंद्र और राज्यों दोनों को समाज के EWS को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- महत्त्व:
- असमानता को संबोधित करता है:
- 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
- पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
- जाति आधारित भेदभाव में कमी:
- इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और अक्सर उच्च जाति उन लोगों को देखती है जो आरक्षण के माध्यम से आते हैं।
- असमानता को संबोधित करता है:
- चिंताएँ:
- डेटा की अनुपलब्धता:
- EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
- आरक्षण की सीमा का उल्लंघन:
- वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आरक्षण की 50% की सीमा तय की थी।
- EWS कोटा इस मुद्दे को ध्यान में रखे बिना इस सीमा का उल्लंघन करता है।
- मनमाना मानदंड:
- इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
- यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
- आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है – जैसे सबसे अधिक गोवा की प्रति व्यक्ति आय 4 लाख है तो वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।
- डेटा की अनुपलब्धता:
आगे की राह
- आरक्षण EWS को छोड़कर सभी श्रेणियों को उनके लिये उपलब्ध प्रतिस्पर्द्धी पूल को कम करके प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। आनुभविक रूप से यह उचित नहीं लगता क्योंकि EWS के उम्मीदवारों का पहले से ही उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है।
- अब समय आ गया है कि भारतीय राजनीतिक वर्ग द्वारा चुनावी लाभ के लिये आरक्षण के दायरे का लगातार विस्तार किये जाने की प्रवृत्ति को रोका जाए और यह महसूस किया जाने लगा है कि आरक्षण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का रामबाण इलाज नहीं है।
- विभिन्न मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने के बजाय सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य प्रभावी सामाजिक उत्थान के उपायों पर ध्यान देना चाहिये। इससे उद्यमिता की भावना पैदा होगी जो उन्हें नौकरी तलाशने के बजाय नौकरी देने वाले की स्थिति प्रदान करेगा।
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