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1971 की कहानी को लेकर सीवान के रिटायर्ड सूबेदार शिवजी पांडेय की ने यादें हुई ताजा. - श्रीनारद मीडिया
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1971 की कहानी को लेकर सीवान के रिटायर्ड सूबेदार शिवजी पांडेय की ने यादें हुई ताजा.

1971 की कहानी को लेकर सीवान के रिटायर्ड सूबेदार शिवजी पांडेय की ने यादें हुई ताजा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

1971 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में पाकिस्तानी फौज को परास्त कर भारतीय सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का गठन कराया था। इस लड़ाई में बिहार रेजीमेंट ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। रेजीमेंट के 110 जवानों ने अपनी जान गंवाई थी। इसमें भाग लेने वाले तत्कालीन बिहार रेजिमेंट के जवान शिवजी पांडेय आज भी जीवित हैं। वो सीवान के मैरवा थाना इलाके के लंगड़पुरा में रहते हैं और सूबेदार पद से रिटायर्ड हैं। उन्होंने आज भास्कर से लड़ाई की आंखों देखी कहानी बताई।

2 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश में घुसे थे शिवजी पांडेय
शिवजी पांडेय (74 साल) ने लड़ाई के दिनों की यादें ताजा करते हुए बताया कि 12 जुलाई 1971 को उनकी बटालियन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के समीप अगरतला के लीची बागान कैंप में आ गई थी। वहां से 4 किलोमीटर पर पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) का बॉर्डर है। 2 दिसंबर 1970 को हम अपनी बटालियन के साथ बांग्लादेश में घुस गए।

2 दिसंबर को ही भारतीय सेना ने अटैक कर दिया था। लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा 3 दिसंबर 1971 को हुई। हमारी बटालियन ने ही 2 दिसंबर 1971 की रात अखौरा (जहां से भारत आने-जाने के लिए रेलवे मार्ग का रास्ता था) पर अटैक कर हथियार, जगह आदि सब कुछ पर कब्जा कर लिया। लड़ाई लगातार चलती रही। जवान शहीद होते रहे।

इस तरह लड़ाई में बिहार रेजिमेंट से 6 ऑफिसर सहित 110 साथी जवान शहीद हो गए। अखौरा इतना महत्वपूर्ण था कि उसके कब्जे में आते ही पाकिस्तानी फौज के पैरों तले जमीन खिसक गई। इसके साथ ही अब वह चारों ओर से घिर चुका था। आज भी 3 दिसंबर को बिहार रेजिमेंट की ओर से अखौरा डे मनाया जाता है।

शिवजी पांडेय की पुरानी तस्वीर।
शिवजी पांडेय की पुरानी तस्वीर।

15 दिसंबर 1971 को ढाका पहुंच जमा लिया था कब्जा
हमारी लड़ाई आमने-सामने होती थी। हम आगे बढ़ते जा रहे थे, दुश्मन पीछे हटते जा रहे थे। हम लड़ते -लड़ते आगे बढ़ते हुए नर्सिन्दी पहुंचे। वहां एक नदी है जिसे पार करना था। दुश्मन किसी तरह से उस पार निकल गए, लेकिन हम नहीं जा पाए। फिर हेलिकॉप्टर आया तो हम लोग वहां से चले। 10 किलोमीटर तक हेलिकॉप्टर से आगे जाकर उतरकर लड़ाई शुरू हुई। वे पीछे हटते गए। जिससे हम लोगों ने 15 दिसंबर 1971 को ढाका पहुंच कब्जा जमा लिया।

यह विश्व रिकॉर्ड है, जहां 98 हजार जवानों ने हथियार रहते हुए भी सरेंडर कर दिया था। आज के ही दिन 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 98 हजार जवानों ने हथियार डाल दिया था। जनरल ने कहा कि हम आपसे नहीं लड़ेंगे। इसके पीछे वजह थी कि, पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के बीच का रास्ता भारत से होकर जाता था। इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) अन्य देशों से घिरा हुआ है। हम लोगों ने ऐसी प्लानिंग बनाई थी कि निकलने का कोई रास्ता नहीं था। अगर समुद्री मार्ग से जाते तो श्रीलंका से होकर जाते, जहां हमारा सातवां बेड़ा लग गया था।

हाल में IMA देहरादून से पास हुए अपने पोते लेफ्टिनेंट अभिषेक पांडेय के साथ शिवजी पांडेय।
हाल में IMA देहरादून से पास हुए अपने पोते लेफ्टिनेंट अभिषेक पांडेय के साथ शिवजी पांडेय।

सुबह से मिल रही बधाईयां, मैं सौभाग्यशाली हूं, लड़ने गया था
शिवजी पांडेय ने कहा कि हमलोग फौजी हैं। एक तरफ लाशें जलती हैं, दूसरी तरफ बैंड बजता है। लड़ाई में हम लोगों के मां-बाप हमारे ही साथी जवान होते हैं, कुछ भी होने पर वही मदद करते हैं। खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने इस लड़ाई में भाग लिया।

आज तो विजय दिवस है। सुबह से बधाईयां और शुभकामनाएं मिल रही हैं। लड़ाई में साथ रहे जवान एक-दूसरे के साथ यादें ताजा कर रहे हैं। अगल-बगल के लोग भी बधाईयां दे रहे हैं। आज भी अखौरा डे पर कार्यक्रम में हमें बुलाया जाता है।

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