अभी तो कई अभ्यर्थी रास्ते में ही होंगे, .. और बार बार टलती आ रही बीपीएससी पीटी हुई भी और रद्द भी हो गई!
दूर दूर के परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा देने पहुंचनेवाले संसाधनहीन परीक्षार्थियों की व्यथा का अंदाजा क्या कभी सिस्टम लगा पाएगा?
गणेश दत्त पाठक,सीवान
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
रविवार का दिन था। 67वीं बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा होने वाली थी। कई कारणों से टलती परीक्षा को एक निश्चित दिन का मुकाम हासिल हो गया था। परंतु शाम को बीपीएससी पीटी परीक्षा के लीक होने की खबरें आने लगी और रात होते होते बीपीएससी ने अपनी विशेष समिति की अनुशंसा पर परीक्षा रद्द होने की विज्ञप्ति भी जारी कर दी। वाकया एक सामान्य था। सिस्टम की बेचारगी जाहिर हो चुकी थी। सवाल एक बड़ा यह था कि दूर दूर के परीक्षा केंद्रों पर कठिनाई उठाकर पहुंचे संसाधन हीन अभ्यर्थियों की पीड़ा क्या कभी सिस्टम समझ पायेगा?
लेकिन याद आया सुबह सुबह मिले एक अभ्यर्थी निश्चय (परिवर्तित नाम अभ्यर्थी की गरिमा को ध्यान में रखते हुए) का। वह तो अभी लखीसराय भी नहीं पहुंचा होगा। जब उसे यह खबर मिली होगी तो कितना दुखी हुआ होगा?
रविवार को सुबह मेरे पड़ोसी के सीढ़ी पर एक युवक बैठा हुआ दिखा। बार बार रास्ते से गुजर रहे थे हम! हाव भाव और हड़बड़ाहट से वो अभ्यर्थी ही लग रहा था। बीपीएससी का अभ्यर्थी। मेरे मुहल्ले में स्थित परीक्षा केंद्र पर उसकी बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा होनी थी। कभी बैठ रहा था, कभी टहल रहा था, फिर कभी कुछ पन्नों को बार बार पलट रहा था। पैर में चप्पल थी। शरीर पर एक मैली कुचली टी शर्ट थी।
शायद वह संसाधन संपन्न अभ्यर्थी नहीं था। कुछ अभ्यर्थी संसाधन से भरपूर होते हैं उनके लिए परीक्षाएं एक शैक्षणिक पर्यटन का अवसर होती है। आराम से दूसरे शहर पहुंचना। एक बढ़िया सा होटल में रुकना। परीक्षा केंद्र में जानकारी से पहले स्वाद के लिए शहर में मौजूद रेस्तरां के बारे में पूछना। कुछ अभ्यर्थी रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं तो उनके परीक्षा केंद्र पर आने के पहले से ही शानदार व्यवस्थाएं सृजित हो जाती हैं तो कुछ अभ्यर्थी ऐसे भी होते हैं, जो निजी वाहनों से ही परीक्षा केंद्र पर पहुंचते हैं । उनके लिए संसाधन के आगे दूरी भी बौनी साबित होती है। परंतु शायद निश्चय इन अभ्यर्थियों में शामिल नहीं था।
तकरीबन सुबह के आठ बज चुके थे। जब मैने पूछा कहां से आए हो भाई? तो उसका जवाब था लखीसराय से। आज बीपीएससी पीटी की परीक्षा है। मौसम में थोड़ी उमस और गरमाहट बढ़ती जा रही थी। उस अभ्यर्थी को लेकर में अपने घर के बरामदे में लेकर आया, बिजली का पंखा चलाया। मैंने पूछा क्या कुछ खाया पिया या नहीं अब तक? निश्चय का जवाब था, भैया एक कप चाय पी है। नाश्ता नहीं कर पाया क्योंकि अभी परीक्षा देकर घर भी पहुंचना है, कहीं पैसे खत्म हो जाएंगे तो फिर क्या करेंगे?
बातचीत के क्रम में पता चला कि निश्चय, लखीसराय के एक सामान्य निर्धन परिवार का सदस्य था। उसका बीपीएससी का यह तीसरा चांस था। 66वीं बीपीएससी में मुख्य परीक्षा में शामिल हुआ था लेकिन साक्षात्कार के लिए चयनित नहीं हो पाया। मैंने अपने श्रीमती जी से निश्चय के लिए चाय और नाश्ते के प्रबंध का निवेदन किया। नाश्ते की तैयारी के क्रम में निश्चय मेरे बरामदे में अपने नोट्स के पन्नों को पलट रहा था। कुछ रिवीजन में छूट न जाए, इसके लिए वह घबराया हुआ दिख रहा था। मेरे बरामदे में पंखा तेज चला रहा था परंतु निश्चय के चेहरे पर पसीने की बूंदे आ जा रही थी।
निश्चय ने बताया कि बीपीएससी ने इतना दूर सेंटर दे दिया कि दो रातों से सो ही नहीं पाए। इस तथ्य से मैं वाकिफ था क्योंकि हमारे सिवान के कुछ अभ्यर्थियों का परीक्षा का सेंटर अररिया, किशनगंज भी आया था। इतना दूर दूर परीक्षा केंद्र देने का तर्क तो बीपीएससी ही जानें। लेकिन दूर दूर के परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा देने जाना, संसाधनहीन अभ्यर्थियों के लिए एक दु स्वप्न ही होता है।
तब तक सुबह के 9 बज चुके थे। निश्चय के लिए चाय नाश्ता आ चुका था। निश्चय ने बस कुछ पलों में ही नाश्ता कर लिया। शायद वह बचे पलों को ज्यादा से ज्यादा रिवीजन को देना चाह रहा था। फिर वह पढ़ता रहा और परीक्षा देने के लिए निकल गया।
जब मैने निवेदन किया कि परीक्षा देने के बाद खाना खाकर ही जाना तो वह बेहद करुण स्वर में बोला, धन्यवाद भैया! मेरे पास रुपए बेहद कम बचे हैं इसलिए मैने सोचा की चाय से काम चला लूंगा लेकिन चलिए ईश्वर की कृपा से नाश्ता भी मिल गया और खाने की व्यवस्था भी हो गई। फिर निश्चय परीक्षा देने चला गया।
जब निश्चय परीक्षा देने के बाद आया तो खाना खाने के बजाय उसका ज्यादा ध्यान कितने प्रश्न उसके सही हुए, उस पर ज्यादा था? फिर परीक्षा के परिणाम के फिक्र के साथ वह लखी सराय के लिए निकल पड़ा।
लेकिन रात को जब बीपीएससी के परीक्षा के रद्द होने की खबर आई तो दिल में एक आह सी उठी। निश्चय को फिर परीक्षा देने आना होगा… फिर वह चाय के सहारे ही रहेगा या उसके लिए कहीं नाश्ते और भोजन का प्रबंध भी हो पायेगा? यदि परीक्षा में कभी वह सफल हो जायेगा तो सिस्टम का अंग बन जाएगा लेकिन अभी तो सिस्टम की कमी का खामियाजा वह रास्ते में ही निराश होकर भुगत रहा होगा… हाय री सिस्टम!
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