राष्ट्र निर्माण में पत्रकारिता की भूमिका।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हिंदी पत्रकारिता 200 वर्षों के इतिहास को समेटे है। स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम हिंदी पत्रकारिता ने ही किया था। स्वावलंबी भारत, स्वाभिमानी भारत, स्वदेशी भारत, अस्पृश्यता का विरोध करने वाला भारत और स्वभाषा के विकास के लिए प्रयत्नशील भारत का निर्माण इसी हिंदी पत्रकारिता के ही माध्यम से हो रहा है। तिलक हों, मालवीय हों, भारतेंदु हों सब हिंदी की पुनर्जागरण कालीन पत्रकारिता के गवाह हैं।
पत्रकारिता से साहित्य प्रभावित होता है। समर्थ साहित्य के पीछे राजनीति चलती है। हिंदी पत्रकारिता यात्रा वृतांत को भी अपने में समेटे हुए है। भारत की पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन की लौ के साथ-साथ सब प्रकार की सामाजिक कुरीतियों के निराकरण की भी पत्रकारिता है। जब तिलक जी केसरी के द्वारा कर्मयोग का जागरण कर रहे थे, काशी प्रसाद जायसवाल पटना से ‘पाटलिपुत्र’ निकालकर अखंड भारत की लौ जगा रहे थे।
माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि हिंदी पत्रकारिता के लिए विषय प्रवर्तन कर रहे थे, तब से लेकर आज तक पत्रकारिता ने साहित्य के निर्माण में मूर्त अमूर्त सब प्रकार का योगदान दिया है। उक्त बातें हिंदुस्तानी एकेडमी सभागार में ‘हिंदी पत्रकारिता और साहित्य निर्माण’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय से पधारे प्रो. नंद किशोर पांडेय जी ने कहीं। कालीकट विश्वविद्यालय केरल के प्रो. प्रमोद कोपव्रत ने कहा कि दक्षिण में भी हिंदी और हिंदी पत्रकारिता की जड़ें मौजूद हैं। 1918 से लेकर आज तक दक्षिण में हिंदी पत्रकारिता उत्तरोत्तर समृद्ध हुई है।
1927 में हिंदी प्रचार सभा द्वारा निकाली गई ‘दक्षिण भारत’ पत्रिका हो या फिर बाद की ‘भारत वाणी’ और ‘केरल भारती’ जैसी पत्रिकाएं हो ये सब अखंड और समर्थ भारत के निर्माण के लिए प्रयत्नशील पत्रकारिता का हिस्सा रहीं हैं।1921 में तमिलनाडु से निकलने वाली ‘स्वयंसेवक’ पत्रिका गांधी की प्रेरणा से हिंदी पत्रकारिता को आयाम दे रही थी। कर्नाटक, केरल हो या तमिलनाडु अथवा आंध्र प्रदेश हो हिंदी पत्रकारिता सब जगह व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माण और समाज निर्माण के काम में अनवरत लगी हुई थी।
विश्वसनीयता, ग्राह्यता, पठनीयता पत्रकारिता की बड़ी विशेषताएं हैं। पत्रकारिता जिस अंडर लाइन करंट से चलती है वह करेंट समाज बोध और राष्ट्रबोध के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। हमारे मन और चरित्र का निर्माण समर्थ पत्रकारिता से ही संभव है। पत्रकारिता केवल समाज निर्माण ही नहीं करती, साहित्य निर्माण ही नहीं करती बल्कि राष्ट्रबोध और अखंडता की भी संवाहक होती है। मर्यादा, माधुरी, हंस, कल्पना, सरस्वती, प्रदीप, बाला बोधिनी, हरिश्चंद्र मैगजीन जैसी पत्रिकाओं ने इस देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
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