एक अद्भुत मानसिक सुकून देता है रुद्राभिषेक अनुष्ठान

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वैदिक ग्रंथों के मुताबिक, तकरीबन 1500 ईसा पूर्व से चलता आ रहा सनातनी परंपरा का यह महत्वपूर्ण अनुष्ठान

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान। सनातन संस्कृति में सावन के महीने को बेहद पवित्र माना जाता रहा है। यह त्याग और सेवा भावना के प्रतीक भगवान शिव को समर्पित मास माना जाता हैं। इस महीने में भगवान शिव के पूजन अर्चन और आराधना के विशेष जतन किए जाते हैं। सावन महीने के विशेष अनुष्ठानों में रुद्राभिषेक को विशेष माना जाता है। इस अनुष्ठान में भागीदारी के उपरांत एक अद्भुत मानसिक सुकून का आनंद मिलता है। मंगलवार को भगवान आशुतोष की कृपा से घर पर इस अनुष्ठान के आयोजन में भागीदारी का सौभाग्य मिला और आचार्य सुग्रीव पांडेय जी से इस अनुष्ठान के वैज्ञानिक महत्व को जानने का सुअवसर भी। गौरतलब है कि सिवान में रुद्राभिषेक अनुष्ठान सावन में जगह जगह हो रहा है।

आचार्य सुग्रीव पांडेय ने बताया कि रुद्राभिषेक एक बेहद प्राचीन सनातनी अनुष्ठान है। जिसका उल्लेख प्राचीन वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार, रुद्राभिषेक के अनुष्ठान का प्रथम उल्लेख तकरीबन 1500 ईसा पूर्व मिलता है, जब वेद और पुराणों की रचना हुई थी। यजुर्वेद, शिव पुराण, रामायण, महाभारत, वेदांग ज्योतिष आदि ग्रंथ भी रुद्राभिषेक की महिमा का गुणगान करते दिखते हैं। इस सनातनी अनुष्ठान में भगवान शिव की पूजा श्रद्धा भाव से की जाती हैं। भगवान शिव का जल, दुग्ध, दही, घी, शहद, गन्ने के रस, शर्करा रस से अभिषेक कर षोडश उपचार से पूजन अर्चन किया जाता है।

आचार्य सुग्रीव पांडेय ने बताया कि सनातनी मान्यता के अनुसार भगवान शिव के प्रिय सावन के पवित्र महीने में रुद्राभिषेक अनुष्ठान का विशेष महत्व होता है। भगवान शंकर को सनातनी परंपरा में सर्वोच्च देवता, विश्व का संरक्षक, ज्ञान, विज्ञान, योग और ध्यान का देवता माना जाता रहा है। ऐसी पौराणिक मान्यता रही है कि रुद्राभिषेक अनुष्ठान से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पापों का नाश, मोक्ष की प्राप्ति, सुख समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार, वास्तु दोष निवारण, कर्ज मुक्ति , आत्म शुद्धि होती है।

आचार्य सुग्रीव पांडेय ने बताया कि रुद्राभिषेक अनुष्ठान का विशेष वैज्ञानिक महत्व भी होता है। उन्होंने बताया कि रुद्राभिषेक में जल, दुग्ध, घी, दही, शहद, विल्व पत्र, शमी पत्र, धुर्वा आदि प्राकृतिक तत्वों का उपयोग होता है। इससे वायुमंडल शुद्ध होता है। रुद्राभिषेक अनुष्ठान के दौरान किए जानेवाले मंत्रों का उच्चारण तनाव को कम करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। मंत्रों की ध्वनि से निकलने वाले तरंगें वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। स्वास्थ्य और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में रुद्राभिषेक अनुष्ठान विशेष तौर पर महत्वपूर्ण होता है।

आचार्य सुग्रीव पांडेय ने बताया कि कई आधुनिक शोध शिवलिंग को न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह मानते हैं। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है। क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता है। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।

रुद्राभिषेक में श्रृंगी से जलाभिषेक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आचार्य सुग्रीव पांडेय बताते हैं कि शिवलिंग पर धीरे धीरे जल अर्पित करना चाहिए क्योंकि शिवजी को धरांजली पसंद है। एक छोटी धारा के रूप में जल चढ़ाया जाना चाहिए। श्रृंगी में पहले कुछ बूंद गंगाजल डालने के बाद मात्र शुद्ध और पवित्र जल से अभिषेक करने पर शारीरिक एवं मानसिक ताप मिटते हैं।

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