जंग समाधान नहीं सिर्फ बरबादी का आधार!
रूस यूक्रेन युद्ध में सिर्फ तबाह हो रहे इंसान
बौद्धिक संपदा और अंतराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक पहुंची जंग की लपटें
पोलैंड सीमा के पास बमबारी से नाटो से रूस के टकराव की आशंका बढ़ी
समाधान तो सिर्फ संवाद और संयम की लोकतांत्रिक तरीके से ही संभव
✍️गणेश दत्त पाठक, स्वतंत्र टिप्पणीकार :
श्रीनारद मीडिया :
रूस यूक्रेन के बीच जंग जारी है। संवाद की कोई कोशिश दिखाई नहीं दे रही है। बस दुनियाभर में इंसान इससे प्रभावित हो रहे हैं। रूस यूक्रेन ही नहीं पूरा संसार इससे प्रभावित हो रहा है। जंग की लपटें अब बौद्धिक संपदा के अधिकार तथा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक पहुंचती देखी जा रही है। नाटो से टकराव की परिस्थितियां भी उत्पन्न हो रही हैं। संघर्ष के समाधान के लिए कोई भी ईमानदार प्रयास नहीं होता दिख रहा है। बयान की चिंगारी जंग को और बढ़ाने का संकेत दे रही है।
दिन प्रति दिन तबाह हो रहा यूक्रेन
जंग का प्रभाव सिर्फ यूक्रेन पर ही नहीं पड़ रहा हैं। यूक्रेन में तो निर्दोष लोग मारे ही जा रहे हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक, यूक्रेन के करीब 25 लाख शरणार्थी विभिन्न देशों में शरण ले चुके हैं। इन शरणार्थी शिविरों में उनका जीवन कितना सुखमय व्यतीत हो रहा होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। महिलाओं की खरीद फरोख्त के मामले सामने आ रहे हैं। शहर खंडहर बनते जा रहे हैं। कुल मिलाकर यूक्रेन तबाह होता जा रहा है। फिर भी संवाद के लिए कोई गंभीर प्रयास यूक्रेन के संदर्भ में भी दिखाई नहीं पड़ रहा है।
रूस की माली हालत भी हो रही खराब
इसी तरह रूस को जहां प्रतिदिन जंग की व्यवस्थाओं में काफी खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं उसके सैनिक शहीद हो रहे हैं और सैन्य हथियार भी तबाह हो रहे हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के तले रूसी अर्थव्यवस्था पर दवाब प्रतिदिन के स्तर पर बढ़ता जा रहा है। रूसी मुद्रा रूबल की हालत खस्ता होती जा रही है तो रुसी कंपनियों की हालत भी खराब होती जा रही है। यदि जंग लंबा खींच गया तो रूस की हालत और भी खराब हो सकती हैं जो उसके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल भी बेहतर नहीं रहेगा, जिस राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वो लड़ाई लड़ रहा है। फिर भी उसके स्तर पर भी संवाद का कोई प्रयास नहीं दिख रहा है।
कई यूरोपीय देशों में दहशत का आलम
पोलैंड के बॉर्डर पर बमबारी, रूस द्वारा पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन के सहायता मार्ग को तोड़ने की धमकी के चलते नाटो से रूस के टकराव की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं। यूरोपीय देशों फिनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, बेल्जियम, पोलैंड में जनता दहशत के तले जी रही है। परमाणु युद्ध को लेकर आशंकाएं बलवती होती जा रही हैं। इन देशों में लोग सुरक्षा के लिए बनकर बनवाते देखे जा रहे हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था भी सिसक रही
अंतराष्ट्रीय व्यापार जो कोरोना काल के दौर में लुढ़क गया था वो अभी उठ ही रहा था कि रूस यूक्रेन युद्ध ने फिर उसे जबरदस्त धक्का दे दिया। विश्व की अर्थव्यवस्था फिर एक बड़ी चुनौती का सामना करती दिख रही है। पूरे विश्व में आयात निर्यात पर भी इस युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद संबंधी खामियों के उजागर होने के बाद उसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। फिर भी जंग को रोकने के कोई सार्थक प्रयास अंतराष्ट्रीय राजनय के स्तर पर होते नहीं देखे जा रहे हैं।
भारत पर भी गंभीर असर
भारत में ही क्रूड ऑयल और सोयाबीन ऑयल की कीमतों में भारी उछाल आया है। भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर के कई उपकरण यूक्रेन से ही आते हैं। इसलिए भारत में भी ऑटोमोबाइल सेक्टर को विशेष रूप से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भारत की रक्षा तैयारियों पर भी असर पड़ रहा हैं। भारत के अधिकांश रक्षा उपकरण रूस से ही आते हैं। मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस 400 को लेकर भी बाधा की आशंका जताई जा रही हैं। पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में बढ़ोतरी से सरकार पर दवाब बढ़ ही रहा है। यूक्रेन में पढ़ाई करनेवाले भारत के हजारों छात्र यूक्रेन से वापस बुला लिए गए हैं उनका भविष्य अधर में ही लटका हुआ है। फिर भी भारत द्वारा भी रूस यूक्रेन में शांति के प्रयास बेहद सतही स्तर पर ही दिखाई दे रहे हैं।
नवाचार की टूट जाएगी कमर
एक रूसी अखबार के दावे के मुताबिक रूस की सरकार बौद्धिक संपदा के संरक्षण से संबंधित कानूनों को शिथिल करने के प्रयास कर रही है। कॉपीराइट, पेटेंट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत जैसे तत्वों के मामले में शिथिलता बेहद नकारात्मक असर नवाचार और नवोन्मेष पर पड़ेगा। यह तकनीकी विकास को भी प्रभावित करेगा। वैज्ञानिकों और शोध अनुसंधान में लगे लोगों का मनोबल भी तोड़ेगा। विश्व बौद्धिक संपदा संस्था के कार्यकरण पर भी इसका बेहद नकारात्मक असर पड़ेगा।
प्रत्युतर में उठ रहे कदम भी विनाशकारी
रूस द्वारा अंतराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के संदर्भ में भी सहयोग को कम करने का संकेत दिया जा रहा है जिसका असर अंतरिक्ष संबंधी अनुसंधान पर पड़ेगा। भले ही ये कदम रूस द्वारा पश्चिमी देशों द्वारा कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के प्रत्युत्तर में उठाया जा रहा है लेकिन ये पहल बेहद विनाशकारी प्रवृति के तरफ ही बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
कई राष्ट्र सामरिक बढ़त पाने की फिराक में
रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ और यूक्रेन के राष्ट्रीय संप्रभुता के संदर्भ को लेकर विश्व स्तर पर जहां कई राष्ट्र अपने सामरिक उद्देश्यों के पूर्ति के फिराक में हैं वहीं कई स्वाधीन राष्ट्र दहशत में आ गए हैं। इस घटनाक्रम के चलते जहां चीन ताइवान और हांगकांग पर ललचाई नजर से देखने लगा है वहीं ताइवान और हांगकांग में दहशत का आलम दिख रहा है।
विवादित स्थलों पर आकांक्षा और दहशत का आलम
रूस की हरकतों को लेकर फिनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन में भी दहशत सिर चढ़कर बोल रहा है।विश्व में ऐसे कई विवादित स्थल है जहां आकांक्षा और दहशत का आलम है। यदि सभी जगह सिर्फ जंग ही होने लगे तो फिर सारी दुनिया ही तबाह हो जाएगी। ऐसे में अंतराष्ट्रीय राजनय में संवाद और संयम के सिलसिले को बढ़ावा देना होगा। लेकिन संवाद और संयम के स्तर पर अंतराष्ट्रीय राजनय के स्तर पर कोई गंभीर सार्थक प्रयास होते नजर नहीं आ रहे हैं।
जंग से तबाही के तमाम अवसर दुनियाभर में मौजूद
दक्षिण चीन महासागर की भू राजनीति हो या पाक अधिकृत कश्मीर की बात, चीन भारत का सीमा विवाद हो या फिलिस्तीन का मसला, तुर्की मालदोवा के मसले हो या यमन का विवाद, फारस की खाड़ी का विवाद हो या ईरान का मसला। जंग से तबाही के तमाम अवसर दुनिया में मौजूद है। जिस पर जंग शुरू हो जाए तो पूरी विश्व की मानवता प्रताड़ित हो सकती है। निश्चित तौर पर विवाद के समाधान के लिए सदैव लोकतांत्रिक तरीके कारगर रहे हैं।
विश्व संस्था का लोकतंत्रीकरण समय की मांग
विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के सबसे शक्तिशाली अंग सुरक्षा परिषद का लोकतंत्रीकरण की मांग भी समय कर रहा है। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ाकर उसका लोकतंत्रीकरण किया जा सकता है। अल्पकालीन ऋण देने वाली विश्व संस्था अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष, दीर्घकालीन योजनाओं के लिए ऋण देने वाली विश्व संस्था विश्व बैंक के साथ अंतराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए गठित विश्व व्यापार संगठन का भी लोकतंत्रीकरण विश्व स्तर पर आर्थिक विकास और शांति सुरक्षा के लिए जरूरी है।
जंग कभी भी मानवीय सभ्यता के लिए सुखदायक तथ्य नहीं रहा है। लोकतांत्रिक तरीकों संवाद और संयम के द्वारा कई विवादों का समाधान किया जा सकता हैं। मानवता की रक्षा की जा सकती है। काश विश्व के तमाम राष्ट्र इस तथ्य की गंभीरता को समझ पाते?
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