रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साक्षी बनेंगे जनजातीय समाज के संत,क्यों?
त्रेतायुग थीम से सज रही है अयोध्या नगरी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अयोध्या में 22 जनवरी को प्रस्तावित रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में झारखंड से आदिवासी समाज के संत भी शामिल होंगे। जनजाति समुदाय के विभिन्न वर्गों से जुड़े ये संत भगवान राम के मंदिर के उद्घाटन अवसर पर अयोध्या में उपस्थित रहने का अवसर मिलने से स्वयं को सौभाग्यशाली मान रहे हैं।
विहिप के क्षेत्र मंत्री वीरेंद्र विमल ने कहा कि कई संतों को तो डाक से सीधे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण पत्र भेजा गया है तो कई को विहिप के लोगों ने जाकर निमंत्रण पत्र सौंपा है। सभी संतों को अयोध्या में रहने, यातायात और भोजन आदि की व्यवस्था ट्रस्ट की ओर से की जाएगी। व्यवस्था में विहिप के कार्यकर्ता लगे रहेंगे, ताकि किन्हीं भी संत को कोई परेशानी न हो। 21 जनवरी को दोपहर तक सभी संतों को अयोध्या पहुंच जाना है।
दुमका के आत्मानंद पुरी ने कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर पूर्ण होते देख रहे हैं। जनजाति समाज में भ्रम फैलाया जा रहा है कि हम हिंदू नहीं हैं। सभी लोगों को रामलला का दर्शन करने जाना चाहिए। देवघर के स्वामी चैतन्यानंदजी महाराज ने कहा कि मैंने तो जाने की तैयारी कर ली है। 22 जनवरी के बाद जनजाति समाज के सभी लोगों को अयोध्या जाना चाहिए। पाकुड़ के जयंत टुडू महाराज ने कहा कि निमंत्रण मिलना बहुत ही अच्छा लग रहा है।
अयोध्या में 2.7 एकड़ में राम मंदिर बन रहा है. इसकी ऊंचाई लगभग 162 फीट की होगी. इस पूरे मंदिर परिसर में भगवान राम के मंदिर के साथ ही और भी 6 मंदिर बनाए जा रहे हैं. मंदिर के मुख्य द्वार को सिंह द्वार के नाम से जाना जाएगा.
वहीं, पूरे अयोध्या को त्रेतायुग थीम से सजाया जा रहा है. सड़कों के किनारे लग रहे सूर्य स्तंभ भगवान राम के सूर्यवंशी होने के प्रतीक को दर्शाते हैं. जिला प्रशासन के मुताबिक, धर्म पथ के सड़कों के किनारों पर दीवार बन रही है जिस पर रामायण काल के प्रसंगों को दर्शाया जाएगा. दीवारें टेराकोटा फाइन क्ले म्यूरल कलाकृतियों से सजी होंगी जो त्रेतायुग की याद दिलाएगी. वहीं अयोध्या में अब रंग रोगन, साफ सफाई और कलाकृति का काम हर तरफ नजर आता है.
कैसा था त्रेतायुग?
त्रेतायुग हिंदू मान्यताओं के अनुसार चार युगों में से एक युग है. त्रेता युग मानवकाल के द्वितीय युग को कहते हैं. जब सतयुग समाप्त हो गया तब त्रेतायुग का आरंभ हुआ और यह युग सनातन धर्म का दूसरा युग था. पुराणों के अनुसार, त्रेतायुग लगभग 12 लाख 96 हजार साल का था. त्रेतायुग में मनुष्य की औसत आयु 10,000 हजार वर्ष थी. त्रेतायुग में धर्म 3 स्तंभों पर खड़ा था. कहते हैं कि त्रेता युग में लोग कर्म करके फल प्राप्त करते थे. इस युग में लोग धर्म का पालन भी करते थे.
आखिर श्रीराम का त्रेतायुग से क्या संबंध था
त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम और अंतिम में श्रीराम के रूप में जन्म लिया था. श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था. मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु जी के अवतार थे.
महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, मर्यादापुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी अयोध्या राजा दशरथ के पुत्र थे. श्री रामचंद्र जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए 14 वर्ष का वनवास भी किया था. श्रीराम का अवतार राक्षसों का नाश करने के लिए भी हुआ था इन्होंने रावण का संहार और राक्षसों का नाश कर दिया था. वहीं, श्री रामचंद्र जी जब 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटे थे तो इसी खुशी में अयोध्या वासियों ने पूरी नगरी को दीपों से भी सजाया था.
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के लिए मिलेगा सिर्फ इतने सेकंड का मुहूर्त
22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त होगा, जिसमें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने ये मुहूर्त चुना है. ये शुभ मुहूर्त का यह क्षण 84 सेकंड का मात्र होगा जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा.
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