भारत में 36 वर्ष बाद सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ बिकेगी
सलमान रुश्दी के पुस्तक को 1988 में राजीव गांधी सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
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खुमैनी ने जारी किया था फतवा
ईरानी नेता रूहुल्लाह खुमैनी ने मुसलमानों से रुश्दी और उनके प्रकाशकों को मारने के लिए फतवा जारी किया था। रुश्दी ने लगभग 10 साल ब्रिटेन और अमेरिका में छिपकर बिताए। जुलाई 1991 में उपन्यासकार के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की उनके कार्यालय में हत्या कर दी गई थी। 12 अगस्त 2022 को लेबनानी-अमेरिकी हादी मतार ने एक व्याख्यान के दौरान मंच पर रुश्दी को चाकू मार दिया था, जिससे उनकी एक आंख की रोशनी चली गई।
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया के तरफ से भी इस किताब के भारत में उपलब्ध होने को लेकर एक पोस्ट साझा किया गया है. इस पोस्ट में सलमान रुश्दी को टैग करते हुए लिखा गया है कि आखिरकार 36 साल बाद ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को भारत में बेचने की इजाजत मिल गई है.
‘मान लेना चाहिए कि ये मौजूद ही नहीं है’
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस किताब के इमपोर्ट पर लगाए गए बैन को चुनैती देने वाली याचिका पर नवंबर 2022 में कार्यवाही को बंद कर दिया था. कोर्ट ने उस दौरान अपने आदेश में कहा था कि अधिकारी अधिसूचना प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं. इसलिए यह मान लिया जाना चाहिए कि यह मौजूद ही नहीं है.
किताब का इस वजह से हुआ था विरोध
आपको बता दें मुस्लिम संगठनों ने इस किताब की सामग्री पर कड़ा ऐतराज जताया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने किताब के आयात पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई बंद कर दी थी. इस किताब की साम्रगी को लेकर जमकर बवाल हुआ था.
बहरीसंस बुकसेलर्स की मालिक रजनी मल्होत्रा ने मीडिया को बताया हमें किताब मिले कुछ दिन हो गए हैं और अब तक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही है। बिक्री अच्छी रही है। 1,999 रुपये की कीमत वाली यह किताब केवल दिल्ली-एनसीआर में बहरीसंस बुकसेलर्स स्टोर्स पर उपलब्ध है। सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज अब बहरीसंस बुकसेलर्स के स्टॉक में है! इस अभूतपूर्व और उत्तेजक उपन्यास ने अपनी कल्पनाशील कहानी और साहसिक विषयों से दशकों से पाठकों को मोहित किया है। पुस्तक विक्रेता ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि अपनी रिलीज के बाद से यह तीव्र वैश्विक विवाद के केंद्र में भी रहा है, जिससे स्वतंत्र अभिव्यक्ति, आस्था और कला पर बहस छिड़ गई है।
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया की प्रधान संपादक मानसी सुब्रमण्यम ने भी रुश्दी के हवाले से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किया। भाषा साहस है: किसी विचार को समझने, उसे बोलने और ऐसा करके उसे सच करने की क्षमता। उन्होंने लिखा कि सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज को 36 साल के प्रतिबंध के बाद भारत में बेचने की अनुमति दी गई है। यहां यह नई दिल्ली में बहरिसंस बुकस्टोर पर है।