राष्ट्र निर्माण में लगे मेधावी हिंदी पत्रकारों को सादर नमन
पी के पाठक
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष आलेख
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
” उठे राष्ट्र तेरे कंधों पर
बड़े प्रगति के प्रांगण में
भूतल को रख दिया उठाकर
तूने नभ के आंगन में।”
देवर्षि नारद को आदि पत्रकार माना जाता है। लाइव टेलीकास्ट के प्रणेता महाभारत के संजय हैं। पत्रकार समाज का सजग प्रहरी होता है। राष्ट्र की सोच क्या है …और क्या होनी चाहिए एक पत्रकार बखूबी जानता है। जनमत को भीड़तंत्र से बचाने का दायित्व पत्रकारों पर हीं सबसे ज्यादा होता है।
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:(यजुर्वेद)
अर्थात हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत एवं जागृत बनाए रखेंगे।
पत्रकारिता राष्ट्र की चेतना को कभी सुसुप्तावस्था में नहीं जाने देती। पंडित युगल किशोर शुक्ल ने इसी राष्ट्रीय सोच को क्षितिज आकार देने के लिए पहला समाचारपत्र उदंत मार्तंड 30 मई 1826 को कलकत्ता में निकाला। वैसे ..सरकारी तौर पर…..राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस 16-17 नवम्बर को मानाया जाता। ध्यातव्य है कि 16 नवम्बर, 1966 को हीं भारतीय प्रेस परिषद् का गठन हुआ था। विश्व पत्रकारिता दिवस 3 मई को होता है।
1947 से पहले स्वतंत्रता का स्वर रही हिंदी पत्रकारिता … आजादी के बाद सत्ता की सोच का सौदागर बन गई। पत्रकारिता से मानों उसकी मौलिकता छीनकर उसे अभारतीय, अराष्ट्रीय माहौल बनाने का एक तरह से मालिकाना हक दे दिया गया। भारत को लोकतांत्रिक बहुलता एवं विभिन्नता के नाम पर आंतरिक रूप से बांटना एवं भारत को तोड़ने में लगे हर क्षेत्र में सक्रिय अराजक तत्वों को एकजुट करना हीं आजाद पत्रकारिता की पहचान बन गई।संवाद शाश्वत विकल्प है।
“कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल ही नहीं दिमाग में भी आग लगाने वाली।”
शिमला समझौते के समय हमारे पत्रकार बेनजीर भूटो के जींस टीशर्ट वाली छवि पर मर मिटे थे। भारत …जीता हुआ युद्ध वार्ता की मेज पर हार गया। 2001 के आगरा सम्मिट के समय पर्वेज मुशर्रफ जैसे उदंड तानाशाह की नाक जमीन पर रगड़ने के बदले हमारे पत्रकार बिस्किट काट रहे थे। भारत की तबाही का स्वप्न देखने वालों की आंखे नोच लेने के बदले हमारे पत्रकार उन दरिंदे आंखों में खयाली नूर का दीदार करते रहे। कभी जनता को भारतबोध हीं नहीं कराया। हां, भारतीयों को दीन-हीन, कटा-बंटा, टूटा दिखाने एवं आतंकी हमलों के समय लाइव टेलीकॉस्ट कर आतंकियों की हीं मदद करने में ….हमारी मीडिया सबसे आगे रही।
” स्वचछंदता से कर तुझे करने पड़े प्रस्ताव जो,
जग जाए तेरी नोक से सोए हुए हों भाव जो।
नकारात्मक विषयों पर चर्चा, शोर-गुल, जनता के सरोकार से दूर चीख-चिल्लाहट, टीवी पर रोज एक भयावह युद्ध का दर्शन हीं आज की पत्रकारिता है। आम जनता की परेशानियां पता नहीं कब पत्रकारिता का प्रमुख पाठ बनेगी?
भारतराष्ट्र के निर्माण में लगे कुछ अत्यंत मेधावी हिंदी पत्रकारों को सादर नमन! उन्हें सबल बनाना समाज एवं सरकार का मुख्य दायित्व है।
“कीरति भनिति भूलि भलि सुरसरि सम सब कर हित होई।”
(कृति कविता और संपत्ति वही उत्तम है जो गंगा की तरह सबका हित करने वाली हो।)
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