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भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक संत शिरोमणि रविदास। - श्रीनारद मीडिया

भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक संत शिरोमणि रविदास।

भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक संत शिरोमणि रविदास।

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जन्मदिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


इहु तनु ऐसा जैसे घास की टाटी
जली गईयो घासु रलि गईयो माटी।

यानी यह शरीर तो जाना है हमें इस पर अभिमान न करके इसके माध्यम से अंतस को निखारना चाहिए।जी हां यह विचार हैं संत शिरोमणि रविदास के। काशी के गोवर्धनपुर गांव में जन्म लिए रविदास समाज में व्याप्त असमानता, धार्मिक कट्टरता, अस्पृश्यता, जातिवाद को समाप्त करने पर बल दिये। तत्कालीन समय में व्यक्ति अपने आप में टूट गया था, ऐसे में गुरु रामानंद द्वारा आप शिक्षित होकर पूरे संसार को समरसता का संदेश दिए।

कर्म की प्रधानता…..

संत रविदास सदैव कर्म को प्रधानता देकर प्रभु को प्राप्त करने की बात करते रहे। आपका मानना था कि एक स्वालंबन, स्वाभिमान व्यक्ति ही समाज की उन्नति कर सकता है। समाज में व्याप्त आडंबर, कर्मकांड में उसे नहीं पड़ना चाहिए। प्रभु की कृपा उसी पर बनी रहती है जो कर्म को सदैव आगे रखते हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ अर्थात आप आडंबर में नहीं पड़े, गंगा स्नान से ही केवल आपका पाप नहीं धुलेगा, आप कष्ट से मुक्त नहीं होंगे, वरन कर्म को प्रधानता देने से आप ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।

गुरु ग्रंथ साहिब में पद व दोहे संकलित……

संत रविदास अपने भक्ति साधना में विनम्रता और प्रेम की प्रधानता पर बल दिए। आपने निर्गुण ब्रह्म की उपासना को आधार बनाया। यह ब्रम्ह समाज के गरीब पिछड़े के लिए अपने भक्तों के उद्धार के लिए साकार रूप धारण करता है। इस भक्ति में काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार को त्याजय माना गया है। इनके पद व दोहे इतने लोकप्रिय रहे कि तत्कालीन गुरु नानक जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में चालीस पदों व दोहा का संकलन किया। यही कारण है कि भारी संख्या में सिख समुदाय का जनमानस संत रविदास को अपना ईश्वर व गुरु मानता है। आपके जन्मदिवस माघ पूर्णिमा को प्रत्येक वर्ष वाराणसी के पवित्र गंगा नदी तट पर भक्तों श्रद्धालुओं द्वारा स्नान ध्यान करके आप की आराधना की जाती हैं।

शिष्य मीराबाई……

अपने मानसिक कष्टों की निवृती के लिए मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा–

” स्वस्ती श्री तुलसी कुल भूषण दूषण हरन गोसाई
बारहिं बार प्रणाम करउॅ, अब हरहू सोक समुदाई।”

इस पत्र के जवाब में तुलसीदास जी ने कहा-

“जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर् तजिए कोटि
बैरी सम जधपि परम स्नेहा”।

माना जाता है कि तुलसीदास जी से वार्तालाप के बाद मीराबाई ने रैदास जी को अपना गुरु माना था और आजीवन उनके विचारों से फलित पुष्पित होती रही। एक राजपूत घराने की कन्या और वधू होने के बावजूद भी उन्होंने रैदास जी को अपना गुरु माना ,यह इतिहास में जातिवाद और छुआछूत के कलंक को मिटाने के लिए एक बहुत बड़ी सीख है। संत रविदास कबीर के गुरु भाई थे, रैदास ने समाज में फैली छुआछूत, ऊंच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

समरस समाज बनाना में महत्वपूर्ण भूमिका….

संत शिरोमणि रविदास समाज में व्याप्त आडंबर के प्रबल विरोधी थे। वह छुआछूत,जातिवाद को मनुष्य की उन्नति में बाधक मानते थे, वह मन की मालिनता पर जोर देते थे। समरस समाज के निर्माण हेतु उन्होंने अपने विचार प्रतिपादित किए। समाज ज्ञाती में विभाजित था ना की जाति में ।यह जाति भेद आगे चलकर समाज का नासूर बन गया और पूरे भारतवर्ष को अपने चपेट में लेकर सनातन जीवन पद्धति पर चोट किया।

सभी ईश्वर की संतान हैं,सभी में एक ही तरह की काया है, जिसमे परमात्मा का अंश आत्मा विराजमान है, फिर समाज अपने तुच्छ भेदभाव से अपने ओछे लाभ के लिए समुदाय में दरार पैदा कर दी और खाई खोद दी थी, इसलिए मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद उत्पन्न हो गया और समाज में कई तरह की विसंगतियां समय-समय पर पैदा होती रही. लेकिन रविदास जी के विचार समाज को एकत्रित करने में समाज को एक नया रूप देने में अवश्य ही भूमिका निभाई।.

वर्तमान समय संत रैदास के भजन दोहे और पद को अगर व्यक्ति आत्मसात करता है तो वह स्वाभिमान स्वाधीन और स्वावलंबी समाज का निर्माण कर सकता है।

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