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महाभारतकालीन सर्पदमन तीर्थ जो दिलाता है काल सर्प दोष से मुक्ति - श्रीनारद मीडिया

महाभारतकालीन सर्पदमन तीर्थ जो दिलाता है काल सर्प दोष से मुक्ति

महाभारतकालीन सर्पदमन तीर्थ जो दिलाता है काल सर्प दोष से मुक्ति

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सर्पदमन तीर्थ में स्नान करने से मिलती है काल सर्प दोष से मुक्ति
जन्मकुंडली में स्थित काल सर्प दोष से मुक्ति का एक मात्र स्थान सर्पदमन तीर्थ

श्रीनारद मीडिया वैध पण्डित प्रमोद कौशिक, हरियाणा

महाभारतकालीन कुरुक्षेत्र के 48 कोस के तीर्थों में से एक कुरुक्षेत्र सर्पदमन तीर्थ जहां पर स्नान करने से जन्म कुंडली में काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है सर्पदमन नामक यह तीर्थ जींद से लगभग 35 कि. मी दूर सफीदों नगर में स्थित है। इस तीर्थ से सम्बन्धित कथा महाभारत के आदि पर्व में आस्तीक पर्व के अन्तर्गत संक्षेपतः इस प्रकार है कि द्वापर युग की समाप्ति पर एवं कलियुग के प्रारम्भिक काल में महाराज परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई। अपने पिता की मृत्यु का बदला तक्षक से लेने के उद्देश्य से परीक्षित के पुत्र महाराजा जनमेजय ने सम्पूर्ण नागजाति को नष्ट करने के लिए ऋषियों एवं ब्राह्मणों के परामर्श से इस स्थान पर सर्पदमन नामक यज्ञ करवया।

मन्त्रों के चमत्कारिक प्रभाव से बड़े-बड़े शक्तिशाली सर्प यज्ञकुण्ड में आकर गिरने लगे। सम्पूर्ण वातावरण विषैला हो उठा, तब अपनी मृत्यु के भय से भयभीत हुआ तक्षक इन्द्र की शरण में गया। पहले तो इन्द्र ने तक्षक को निर्भय रहने को कहा, लेकिन जब मंत्रों के प्रभाव से स्वयं इन्द्र तक्षक सहित यज्ञकुण्ड में गिरने ही वाले थे कि जरत्कारू ऋषि के पुत्र आस्तीक के कहने पर यज्ञ रोक दिया गया। सर्पदमन यज्ञ सम्पन्न होने से ही इस तीर्थ का नाम सर्पदमन पड़ा।

इस तीर्थ पर एक प्राचीन सरोवर है जिसमें नागर शैली में निर्मित शिव, कृष्ण और शक्ति के उत्तर मध्यकालीन मन्दिर हैं जिनका निर्माण महाराजा जींद द्वारा करवाया गया था। इस तीर्थ को नागक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। जनसाधारण में ऐसा विश्वास पाया जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने पर मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। सफीदों का महाभारत कालीन नागक्षेत्र मां दुर्गा शक्तिपीठ श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैऐतिहासिक नगरी सफीदों का महाभारत कालीन नागक्षेत्र मां दुर्गा शक्तिपीठ असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

इस शक्तिपीठ में मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान है और श्रद्धालुओं की इस मंदिर के साथ अटूट आस्था जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि जयंती देवी मंदिर जींद में स्थापना के लिए महाराजा मां दुर्गा की प्रतिमा ला रहे थे नाग क्षेत्र आते-आते रात गहरा गई। उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को रात में रुकने के लिए किसी उचित स्थान तलाश करने के आदेश दिए। पता लगाकर कर्मचारियों ने नागक्षेत्र सरोवर पर रुकने का सुझाव दिया और राजा ने यहीं पर पड़ाव डालने के आदेश दिए। पड़ाव डालते वक्त मां दुर्गा की मूर्ति को भी यहीं पर उतार लिया गया।

सुबह जब नित्यकर्म के पश्चात राजा ने चलने के लिए कहा और कर्मचारियों ने मूर्ति को उठाना चाहा तो मूर्ति वहां से टस से मस नहीं हुई। सभी ने काफी प्रयास किए, लेकिन सभी प्रयास शून्य रहे। जिस पर राजा सारा मामला समझ गए और उन्होंने पूरे भक्तिभाव से प्रण लिया कि वह इस प्रतिमा को नागक्षेत्र सरोवर प्रांगण में ही विराजित करवाएंगे। इस प्रण के बाद जब मूर्ति को उठाना चाहा तो मूर्ति हिल गई। राजा ने अपने प्रण के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमा को नागक्षेत्र सरोवर प्रांगण में मंदिर बनवाकर विराजमान करवाया। इसके बाद राजा जयंती मंदिर के लिए नई प्रतिमा लेकर आए।

 

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