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सर्व पितृ अमावस्या - पितृ विसर्जन का पुण्यफल कारी श्राद्ध 02 अक्टूबर बुधवार को होगा सम्पन्न   - श्रीनारद मीडिया

सर्व पितृ अमावस्या – पितृ विसर्जन का पुण्यफल कारी श्राद्ध 02 अक्टूबर बुधवार को होगा सम्पन्न  

सर्व पितृ अमावस्या – पितृ विसर्जन का पुण्यफल कारी श्राद्ध 02 अक्टूबर बुधवार को होगा सम्पन्न

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श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सीवान (बिहार):

जिन लोगों को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि जानकारी नहीं हैं वे लोंग 02 अक्टूबर पितृ पक्ष की अमावस्या को पितरों को जलदान (तर्पण), पिंडदान तथा दान पुण्य कर सकते हैं।

हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय होता हैं, जो पूर्वजों को सम्मान और तर्पण अर्पित करने के लिए समर्पित होता हैं।

यह आमतौर पर भाद्रपद महीने की पूर्णिमा के बाद प्रारंभ होता हैं और आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता हैं।

पुराणों और धर्मग्रंथों में, पितृ पक्ष में तर्पण का विषेश महत्त्व बताया गया हैं।

पितृ पक्ष में नदी, घाटों के अलावा लोंग अपने घरों पर पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं। जल देने की विधि को तर्पण या (पार्वण श्राद्ध) कहते हैं। पार्वण श्राद्ध अपराह्न में करना चाहिए।

आइए तर्पण कैसे करें जाने –
तर्पण सामग्री:-
सफेद चन्दन, जौ, तील, त्रिकुश, तुलसी, सफेद फूल जल इत्यादि।
तर्पण हेतु पात्र:-
सोना, चांदी, तांबा अथवा कांस्य का पात्र होना चाहिए।
आसनी, सफेद गमछा।

तर्पण विधि:-
सबसे पहले आसनी पर पूरब मुँह करके बैठे और लोटा में गंगादितीर्थों का आवाहन कर आचमन करें, कुशा का पवित्री धारण करें, शिखा बांध, तिलक करें ।
उसके बाद हाथ में-
कुश,तील, पुष्प,चंदन और जल लेकर संकल्प करें :-

तत्पश्चात् –
पितर का ध्यान करें:-
ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहणन्तु जलांजलिम।।

जल देते समय मंत्र बोले :-
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

1.देव तर्पण:- पूर्वाभिमुख बैठकर कर जनेऊ को सव्य रखे और कुशा के अग्र भाग से देवताओं को एक – एक अंजलि तील जल दे।

2. ऋषि तर्पण:- पूर्वाभिमुख ही एक एक अंजलि जल दे।

3. मनुष्य तर्पण:-
उत्तर की तरफ मुख करके बैठे। जनेऊ को गला में माला की तरह करले और गमछे गला में लपेट ले।
हाथ में जल, जौ और कुशा के मध्य भाग से दो- दो अंजलि जल दे।

4.पितृ तर्पण:- दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे। जनेऊ को दाएं कंधे पर करले और बाया घुटना टेक कर बैठे।
हाथ में तील, जल और कुश लेकर पितृतीर्थ से पितृगणों को तीन- तीन अंजलि जल दे।

पिता को तीन अंजलि।
दादा को तीन अंजलि ।
परदादा को तीन अंजलि।
माता को तीन अंजलि।
दादी को तीन अंजलि।
परदादी को तीन अंजलि।
नाना को तीन अंजलि दे।
परनाना को तीन अंजलि दे।
वृद्ध परनाना को तीन अंजलि दे।
नानी को तीन अंजलि दे।
परनानी को तीन अंजलि दे।
वृद्ध परनानी को तीन अंजलि दे।
इसके बाद बाकी पितरों को एक एक अंजलि जल दे ।

इस समय के दौरान किए गए पितृ यज्ञ (तर्पण) से, पितरों को तृप्ति मिलती हैं और परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।

विष्णु पुराण में वर्णित हैं कि पितृपक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करने से, पितरों की आत्मा की तृप्ति होती हैं और उनका आशीर्वाद संतान को प्राप्त होता हैं।

पितरों को प्रसन्न करने के लिए जल, तर्पण, मंत्रों का उच्चारण और दान की महत्ता भी इस पुराण में वर्णित हैं।
श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धापूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से हैं ।

सनातन मान्यता के अनुसार पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं।
पितृ पक्ष में पितृ अपनी संतानों के बीच आकर रहते हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते है।

पितृपक्ष में हिंदू लोंग पितरों को श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिए पिण्ड दान करते हैं।

पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति अपने पितरों के विधिपूर्वक श्राद्ध करता हैं, तथा जो उनके निमित ब्राह्मणों को भोजन कराता हैं, उस भोज्य वस्तु को ब्राह्मणों से सूर्य अपने प्रकाश द्वारा ग्रहण करते है और चंद्रमा उनके पितरों को पहुंचाते हैं।

ब्राह्मणों को श्रीमहाविष्णु का रूप मानते हुए उनको भोजन कराना श्रद्धा पूर्वक दान करने से परिवार में सुख- शांति बनी रहती हैं तथा वंश वृद्धि होती हैं।
हर सनातन धर्मी को इस पुनीत कार्य को अवश्य ही करना चाहिए।

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