बिहार के बृज बिहारी मर्डर केस में गोपालगंज के सतीश पांडेय मृत घोषित,कैसे?

बिहार के बृज बिहारी मर्डर केस में गोपालगंज के सतीश पांडेय मृत घोषित,कैसे?

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बृज बिहारी की कमांडो सुरक्षा में हत्या से हिल गया था अंडरवर्ल्ड

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को मिली उम्रकैद की सजा को बहाल कर दिया है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ये टाइपिंग की गलती है या क्या, ये नहीं पता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड के एक आरोपी और गोपालगंज के डॉन सतीश पांडेय को जिंदा रहते मार डाला है। सर्वोच्च न्यायालय के 40 पन्ने का जो आदेश अदालत की वेबसाइट पर डाला गया है उसमें सतीश पांडेय को मृत के तौर पर दिखाया गया है। जबकि सतीश पांडेय जिंदा है। पूर्व मंत्री और माफिया बृज बिहारी प्रसाद की हत्या 13 जून 1998 को हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को बृज बिहारी मर्डर केस में पटना हाईकोर्ट से बरी नौ आरोपियों में छह की रिहाई को ठीक माना था जबकि दो आरोपियों को निचली अदालत से मिली आजीवन कारावास की सजा को सही बताया था।

बृज बिहारी मर्डर केस में 15 लोग आरोपी बनाए गए थे। बताया गया है कि सतीश पांडेय, मोकामा के नागा सिंह समेत कुछ अन्य आरोपियों के खिलाफ अलग से ट्रायल चल रहा है। ट्रायल कोर्ट में जब पहला आरोप पत्र दाखिल हुआ, तब ये फरार चल रहे थे। इन पर आरोप गठन नहीं हो पाया था इसलिए इनका केस अलग से चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला, भूपेंद्र नाथ दुबे, कैप्टन सुनील सिंह, शशि कुमार राय के साथ ही सतीश पांडेय को मृत बताया गया है। इनमें बाकी की तो मौत हो चुकी है लेकिन सतीश पांडेय जिंदा है।

सतीश पांडेय पर दर्जनों मुकदमे दर्ज थे लेकिन कई केस में अब वो बरी हो चुके है। सतीश पांडेय के छोटे भाई अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय जेडीयू के विधायक हैं। पप्पू पांडेय कुचायकोट सीट से लगातार तीसरी बार जीते हैं। सतीश की पत्नी उर्मिला पांडेय और बेटा मुकेश पांडेय गोपालगंज के जिला परिषद अध्यक्ष भी रहे हैं।
ट्रायल कोर्ट ने 12 अगस्त 2009 को सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी समेत 8 आरोपियों को उमक्रैद की सजा दी थी। एक आरोपी शशि कुमार राय को दो साल की सजा दी गई थी। सारे आरोपियों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पांच साल बाद 24 जुलाई 2014 को ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए सबको बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जांच एजेंसी सीबीआई और बृज बिहारी की पत्नी व पूर्व सांसद रमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते अपने फैसले में मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को ट्रायल कोर्ट से मिली उम्रकैद की सजा को सही ठहराया था। जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सूरजभान सिंह, राजन तिवारी समेत 6 आरोपियों को बरी करने के उच्च न्यायालय के फैसले को सही बताया था।

बृज बिहारी की कमांडो सुरक्षा में हत्या से हिल गया था अंडरवर्ल्ड

एडमिशन घोटाले में जेल में बंद बृज बिहारी प्रसाद इलाज का इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में जबर्दस्त सुरक्षा घेरे में इलाज चल रहा था। सरकारी कमांडो और प्राइवेट आर्मी के कवर को तोड़ने वाले हमलावरों ने बृज बिहारी की सुरक्षा में एक बॉडीकार्ड को भी मार डाला था। उत्तर प्रदेश का चर्चित शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला हत्या में शामिल था जिसे उस समय सूरजभान सिंह का शूटर माना जाता था।

बृज बिहारी की हत्या के अगले दिन पूर्णिया में सीपीएम के विधायक अजित सरकार की भी हत्या हो गई थी। उस हत्या में भी राजन तिवारी का नाम आया था। राजन के साथ सांसद पप्पू यादव भी आरोपी बनाए गए थे। हाईकोर्ट ने पप्पू और राजन को 2013 में बरी कर दिया जिसके खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

छोटन शुक्ला की हत्या के बदले बृज बिहारी प्रसाद का मर्डर

बृज बिहारी प्रसाद मोतिहारी से निकलकर बिहार की राजनीति में छा गए एक बहुत दबंग बनिया नेता थे और तब सवर्ण और पिछड़ों के झगड़े में बैकवर्ड नेता माने जाते थे। मोतिहारी से कई जिलों तक उनका सिक्का चलता था। बृज बिहारी का मुजफ्फरपुर के डॉन छोटन शुक्ला से झगड़ा था जो मुन्ना शुक्ला के भाई थे। वर्चस्व की लड़ाई में छोटन शुक्ला की 4 दिसंबर 1994 को चुनाव प्रचार से लौटने के दौरान हत्या हो गई। इस हत्या से बृज बिहारी प्रसाद को जोड़ा गया।

छोटन शुक्ला 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में सनसनी बनकर आई आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे। अगले दिन छोटन शुक्ला की शवयात्रा के दौरान भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया को मुजफ्फरपुर में मार दिया। आनंद मोहन और मुन्ना शुक्ला इस केस में दोषी ठहराए गए। बाद में मुन्ना बरी हो गए लेकिन आनंद मोहन ने सजा काटी और सरकार से सजा माफी के बाद जेल से निकले हैं।

देवेंद्र दुबे की हत्या के चार महीने बाद ही मारे गए बृज बिहारी

उधर, मोतिहारी में डॉन देवेंद्र दुबे और विनोद सिंह के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी। दुबे सूरजभान सिंह के साथ था जबकि विनोद सिंह ने बृज बिहारी से हाथ मिला लिया। 1995 का चुनाव देवेंद्र दुबे जेल में रहकर जीतकर विधायक बना था। नीतीश कुमार की तब की समता पार्टी ने दुबे को टिकट दिया था लेकिन बाद में क्रिमिनल को लड़ाने पर विवाद के समर्थन वापस ले लिया था। नाम वापसी वगैरह का समय बीत चुका था इसलिए नीतीश के सिंबल पर ही दुबे लड़े लेकिन बिना नीतीश के समर्थन के जीते।

बृज बिहारी तब तक आदापुर से दो बार चुनाव जीत चुके थे और लालू के बहुत करीबी बन चुके थे। राबड़ी देवी सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद के प्रभाव का फायदा उठाने के लिए लालू ने 1998 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी रमा देवी को राजद से लड़ाया। बृज बिहारी का प्रभाव और बढ़ जाने के डर से विनोद सिंह ने देवेंद्र दुबे को उकसाया और दुबे समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ गया। बीजेपी ने राधा मोहन सिंह को उतारा। चुनाव तो रमा देवी जीत गईं लेकिन वोटिंग के ही दिन 22 फरवरी को देवेंद्र दुबे की हत्या हो गई। इस हत्या में भी बृज बिहारी प्रसाद का हाथ माना गया।

छोटन शुक्ला की हत्या से मुन्ना शुक्ला, आनंद मोहन, सूरजभान सिंह वगैरह को जो जख्म मिला था वो देवेंद्र दुबे की हत्या से और गहरी हो गई। देवेंद्र दुबे की हत्या के बाद विरोधी गैंग के सरगनाओं ने बृज बिहारी प्रसाद को रास्ते से हटाने की योजना बनाई। चार महीने बाद 13 जून को बृज बिहारी की दुस्साहसिक हत्या उसकी परिणति थी।

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