Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं और दर्शकों पर सत्यजित राय ने छोड़ा अमिट प्रभाव. - श्रीनारद मीडिया

दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं और दर्शकों पर सत्यजित राय ने छोड़ा अमिट प्रभाव.

दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं और दर्शकों पर सत्यजित राय ने छोड़ा अमिट प्रभाव.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सत्यजीत रे की 100 वीं जयंती

सत्यजित राय का इस स्थान पर गौरवपूर्ण जगह पाना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि उनकी फिल्मों ने वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के मूलभूत मूल्यों, सार्वभौमिक मानवाधिकार, सभी लोगों के लिए न्याय और गरिमा और न्याय संगतता को ही प्रतिबिंबित किया। और ऐसा उन्होंने इंसानी कहानियों को बताकर, और रिश्तों और भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करके किया। जैसा कि अपूर संसार (द वर्ल्ड ऑफ अपू, 1959) की नायिका शर्मिला टैगोर ने इसे सहज ढंग से कहा: “टैगोर और राय के लिए, लोग और उनकी कठिन परिस्थितियां सबसे पहले आते थे।” निश्चित रूप से वह बंगाल के सबसे ज्वलंत सांस्कृतिक प्रतीक, नोबेल पुरस्कार विजेता बहुश्रुत रवींद्रनाथ टैगोर का उल्लेख कर रही थीं, जिनका सत्यजित राय पर गहरा प्रभाव था।

राय ने कहा था, “मुझे टैगोर से यह काम स्थानांतरित हुआ है… बेशक, हमारी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, हमारा सांस्कृतिक श्रृंगार, पूर्व और पश्चिम का एक संलयन है… हमने पाश्चात्य शिक्षा, पाश्चात्य संगीत, पाश्चात्य कला, पाश्चात्य साहित्य को ग्रहण किया है।” राय की रचनात्मक संवेदनशीलता प्रकृति और पोषण का एक संयोजन थी। उनके दादा उपेंद्रकिशोर राय प्रसिद्ध बंगाली लेखक, चित्रकार, दार्शनिक और ब्रह्म समाज के प्रमुख व्यक्ति थे (हिंदू धर्म की एक ऐसी शाखा जो मूर्तिपूजा से बचती थी और मनुष्य की समानता पर जोर देती थी), और उनके पिता सुकुमार राय भी अग्रणी बंगाली लेखक थे, जो कविता और बच्चों का साहित्य रचने के साथ ही एक चित्रकार और आलोचक थे। उन्हें रबींद्रनाथ टैगोर से लेकर अपने शिक्षकों नंदलाल बोस और शांति निकेतन में बिनोद बिहारी मुखर्जी तक, रेनीटोर और डी सिका की (साइकिल चोर), चैप्लिन और फोर्ड की (फोर्ट अपाचे) जैसी फिल्मों से लेकर कार्टियर ब्रेसन की फोटोग्राफी और बीथोवेन के संगीत तक से प्रेरणा मिली।

इसलिए जब उनके जीवनी लेखक एंड्रयू रॉबिन्सन ने उनसे पूछा कि क्या वह खुद को “50 प्रतिशत पश्चिमी” मानते हैं, तो राय ने जवाब दिया: “हां, मुझे ऐसा लगता है – जो मुझे पश्चिमी दर्शकों के लिए अधिक सुलभ बनाता है, जो किसी हद तक पाश्चात्य मॉडल से प्रभावित नहीं है। और फिर भी, राय अपनी जड़ों के प्रति वफादार रहे और दक्षिण कोलकाता के घर का उनका अव्यवस्थित अध्ययनकक्ष हमेशा ही उनका रचनात्मक मुख्यालय रहा, जहां से उन्होंने न केवल सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों की खोज की बल्कि उन्हें अपनी फिल्मों के माध्यम से चित्रित भी किया। वह वास्तव में एक गौरवशाली नागरिक थे- अपने कार्य माध्यम में चिरंतन स्थानीय लेकिन अपनी सहज अपील में वैश्विक।

सत्यजित राय की मेरी पसंदीदा फिल्म दृश्यों में से एक को लें, तो जो आकर्षक स्मृति मेरे दिमाग में चुहल करती है, वह अरण्येर दिन रात्रि (डेज एंड नाइट्स इन द फॉरेस्ट, 1970) की है, जिसमें केंद्रीय पात्रों ने प्रसिद्ध हस्तियों के नाम की धज्जियां उड़ा दीं। वैश्विक विविधता वाले पात्रों की गौरवशाली श्रृंखला मुझे कभी विस्मित नहीं करती, क्योंकि मेरी यादों में अठखेलियां करते हैं – “रवींद्रनाथ, कार्ल मार्क्स, क्लियोपेट्रा, अतुल्य घोष, हेलेन ऑफ ट्रॉय, शेक्सपियर, माओ त्से तुंग, डॉन ब्रैडमैन, रानी रश्मोनी, बॉबी कैनेडी, टेकचंद ठाकुर, नेपोलियन, मुमताज़ महल!” यह महत्वपूर्ण था कि यादों की यह अठखेलियां केवल लोगों पर केंद्रित थी। जैसा कि राय का कहना था: “मैं मानवतावादी होने के प्रति सचेत नहीं हूं। यह बस इतना है कि मुझे इंसानों में दिलचस्पी है।” और जिस तरह से उन्होंने इंसानों, उनकी क्रूरताओं और उनके संघर्षों, उनके व्यक्तिगत विद्रोह और सरल विजय को दर्शाया, उसने दूर-दूर तक उनके प्रशंसकों को आकर्षित किया।

कोई आश्चर्य नहीं कि जब सत्यजित राय ने रिचर्ड एटनबरो से शतरंज के खिलाड़ी (द चेस प्लेयर्स, 1977) में एक छोटी सी भूमिका के लिए संकोच के साथ उनसे बात की तो इस ब्रिटिश कलाकार ने कहा: “सत्यजित, मुझे तो आपके लिए टेलिफोन डायरेक्टरी पढ़कर सुनाने में भी खुशी होगी।” राय के साथ काम करने के बाद एटनबरो ने उनकी प्रतिभा की तुलना ‘चैपलिन’ से की थी। इसलिए सत्यजित राय की सृजनात्मकता मौलिक रूप से जीवन और मानवता के लिए थीं, जैसा की अकीरा कुरोसावा ने एक बार इन शब्दों में व्यक्त किया था: “… उनकी फिल्मों को देखे बिना रहना ठीक सूरज या चंद्रमा को देखे बिना रहने जैसा है।”

यहां तक कि अपनी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली (1955)’ की शोहरत से बहुत पहले 1948 में कलकत्ता के द स्टेट्समैन अखबार में उन्होंने ‘भारतीय फिल्मों के साथ क्या गलत है?’ शीर्षक से लिखा था- ”सिनेमा के लिए कच्चा माल स्वयं जीवन है। यह अविश्वसनीय है कि एक ऐसा देश जिसने पेंटिंग और संगीत और कविता को प्रेरित किया है, वह फिल्म निर्माता को आगे बढ़ाने में विफल है। उन्हें केवल अपनी आंखें, और अपने कान खुले रखने हैं। उन्हें ऐसा करने दो।”

सत्यजित राय ने 40 वर्षों और 37 फिल्मों में ऐसा ही किया। द अपू ट्रिलॉजी में त्रासदी के बीच मानवीय गरिमा से लेकर महानगर में मानवीय भावनाओं का लचीलापन; गूपी गाइन बाघा बाइन में बच्चों के कल्पित कहानी की मार्फत मजबूत युद्ध-विरोधी संदेश, तो अपनी लोकप्रिय जासूसी फिल्मों ‘सोनार किला’ और ‘जॉय बाबा फेलुनाथ’ में अपराध पर सजा की जीत का संदेश दिया। और उनकी अंतिम फिल्म आगंतुक (1992), एक मास्टर कहानीकार के दर्शन और विश्वास प्रणाली की चरम परिणति थी। द स्ट्रेंजर की केंद्रीय भूमिका के लिए राय ने जब उत्पल दत्त को चुना, तो इस दिग्गज अभिनेता से कहा कि उन्होंने इस चरित्र के माध्यम से अपने विचार रखे हैं और इसलिए उन्हें फिल्म निर्माता की ओर से बोलना चाहिए। सभ्यता से धर्म तक, टैगोर से आदिवासियों तक, विज्ञान से नैतिकता, सामाजिक दायित्वों से मानवीय मूल्यों तक-मानवतावादी राय ने इन सभी का व्यक्तिगत रूप से अन्वेषण किया था।

किंवदंती है कि अपनी आखिरी फिल्म की शूटिंग के अंतिम दिन, राय ने अपने हाथों को हवा की तरफ उछाल दिया और कहा, “इतना ही। जो कुछ है सब यही है। मेरे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है। ” इसके बाद बहुत अधिक वक्त नहीं बीता, और कलकत्ता (अब कोलकाता) में उनका निधन हो गया। उनके निधन से बमुश्किल एक महीने पहले, जब उन्हें मानद ऑस्कर से सम्मानित किया गया, तब उनके प्रशस्ति पत्र में लिखा था: “सत्यजीत रे को, चलचित्र कला की उनकी दुर्लभ निपुणता की मान्यता में, और उस गहन मानवीय दृष्टिकोण के लिए, जिसका दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं और दर्शकों पर अमिट प्रभाव पड़ा है।”

ये भी पढ़े…

Leave a Reply

error: Content is protected !!