द केरल स्टोरी टिकट खिड़की पर 250 के आंकड़े को पार गयी है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा फ़िल्म के बैन को हटा दिया है, लेकिन इस फ़िल्म के निर्माता विपुल शाह कहते हैं कि इन दोनों राज्यों में इललीगल बैन अब तक जारी है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने फ़िल्म की रिलीज को तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में बहाल कर दिया है, उसके बाद क्या रिस्पांस फ़िल्म को मिल रहे है?
सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बावजूद तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में थिएटर मालिकों को डराया जा रहा है. धमकाया जा रहा है कि आपके लाइसेंस रिन्यू नहीं होंगे. गुंडे आकर आपके थिएटर को तोड़ेंगे, तो हम आपको बचाएंगे नहीं, तो इस किस्म का इललीगल बैन अब भी दोनों राज्यों में चल रहा है. डेमोक्रेसी की दुहाई देने वाले लोग इस इललीगल बैन को बढ़ावा दे रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को भी नहीं मान रहे हैं, तो इन दोनों प्रदेशों की जनता को तय करना है कि क्या वे ऐसे राजनेताओं को अपने लिए चुनेंगे, जो उनकी बेटियों के खिलाफ है. हमने वहां के दर्शकों को अपनी फ़िल्म दिखाने के लिए क़ानून के दायरे में रखकर जो भी करना था. हमने सब कर लिया. अब वहां के दर्शकों पर सबकुछ निर्भर है कि वह किस तरह से इस फ़िल्म को दिखाने के लिए वहां की सरकार को मजबूर कर दें.
फ़िल्म ने 250 करोड़ कमा लिए हैं. इस क़ामयाबी पर आपका क्या कहना है?
कामयाबी के दो पैमाने हैं. एक तो फाइनेंसियल नंबर, जो इस फ़िल्म के लिए मायने नहीं रखती है, लेकिन जो जागरूकता इस फ़िल्म को लेकर देश में फैली. इस विषय पर जितनी चर्चा हुई. लोगों का जो जुड़ाव हुआ. वो मेरे लिए सबसे बड़ी क़ामयाबी है. इसके लिए हमने बहुत मेहनत की है और लोगों ने बहुत साथ भी दिया है.
पीछे मुड़कर देखते हैं, तो फ़िल्म से जुड़ी जर्नी में सबसे मुश्किल क्या था ?
फ़िल्म की जर्नी बहुत मुश्किल थी. हमें केरल में शूट करने नहीं दिया गया. हमने गुरिल्ला यूनिट भेजकर कैसे कैसे करके वहां के सीन शूट किए हैं. शूटिंग से लेकर फ़िल्म की रिलीज तक कई दिक्क़ते आयी. हमने इस फ़िल्म को हमने एक ड्यूटी समझकर बनायीं है. राष्ट्र और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस फ़िल्म को पूरी सच्चाई के साथ बोल्ड तरीके से भी रखें। हमने वही किया है।इस फ़िल्म को बनने में साढ़े तीन साल का लम्बा वक़्त गया।
क़ामयाबी के साथ विवाद से भी फ़िल्म अछूती नहीं है. यह फ़िल्म समाज के सेक्युलर फैब्रिक को नुकसान पंहुचा रही है, ये भी चर्चा आम है?
केरल स्टोरी के रिलीज होने के बाद जो लोग समाज के सेक्युलर फैब्रिक को तहस – नहस करने वाली फ़िल्म इसे बता रहे हैं. उनसे मैं सिर्फ एक ही सवाल पूछना चाहता हूं कि अगर किसी समाज में कोई बुराई है तो उसे एक्सपोज़ कर जड़ से मिटाना चाहिए या नहीं. क्या सेकुलरिज्म के नाम पर हम लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद होने दें. हिन्दू समाज में सती प्रथा और बाल विवाह था क्या उसे खत्म नहीं किया गया. समाज की बुराइयों को सामने लाकर उसे खत्म करने से ही समाज सही मायनों में सेक्युलर हो सकता है. हम हर समाज को सेकुलरिज्म के बकवास ढकोसले से बाहर आकर अपनी बुराई को स्वीकार करना चाहिए और ईमानदारी से तभी सही मायनों में सेकुलरिज्म को बढ़ावा दे सकते हैं. जिन लोगों को सच स्वीकारना नहीं होता है, तो वह उसे प्रॉपगैंडा का नाम दे देते हैं.
फ़िल्म रिलीज के बाद कई जगहों पर हिंसा की भी घटनाएं हुई है, महाराष्ट्र का अकोला इसका उदाहरण है?
सबसे पहली बात इसको हिन्दू और मुस्लिम में ना बांटा जाए. कुछ लोग हैं, जो लोग आतंकियों के साथ हैं. उन्हें लगता है कि बहुत आसान है. कुछ दंगा कर दो. मारपीट कर दो, तो पुलिस और प्रशासन फ़िल्म को बैन कर देगी. आम लोगों तक फ़िल्म नहीं पहुंच पहुंच पाएगी और वे अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे. किसी की मौत नहीं होनी चाहिए. हिंसा नहीं होनी चाहिए. हमें इसका बहुत दुख है. हम सबसे अपील करेंगे, किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा मत दें. डेमोक्रेसी में आप चर्चा कर सकते हैं. किसी के मत से भेद होकर खुले मन से इस पर अपना पक्ष रख सकते हैं. आपकी किसी बात या काम से आहत होकर मैं आप पर अटैक कर दूं, तो फिर डेमोक्रेसी रहेगी कहां. यह बात उनपर भी लागू होती है, जिन्होंने अकोला में हिंसा की. इससे डेमोक्रेसी का कोई भला नहीं हो सकता है.
कश्मीर फाइल्स से आपकी फ़िल्म की तुलना पर आपका क्या कहना है?
कश्मीर फाइल्स अपनी जगह बहुत शानदार फिल्म्स रही है और ये अपनी जगह एक शानदार फ़िल्म है. लोगों के लिए सबसे आसान तुलना करना है. चीज़ों को सरल करने के लिए वह तुलना करने लगते हैं. हमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन हमने बहुत ही अलग फ़िल्म वनायीं है. मुझे लगता है कि आज तक आतंकी नेटवर्क को इस तरह से एक्सपोज करती हुई, कोई फ़िल्म नहीं बनी है. जब इतना नया विषय हमने लोगों के सामने एक्सपोज किया है, तो उसकी तुलना करना ठीक नहीं है.