गमहरिया में शहीदे आजम भगत सिंह,राजगुरु एवं सुखदेव की शहादत दिवस सह सम्मान समारोह आयोजित

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श्रीनारद मीडिया‚ मनोज तिवारी‚ छपरा (बिहार)

छपरा । सारण जिले के जलालपुर प्रखंड के गम्हरिया शिव मंदिर परिसर में गुरुवार को शहीदे आजम भगत सिंह व सुखदेव की शहादत दिवस सह प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया । शहादत दिवस की अध्यक्षता भाकेशरी पंचायत के मुखिया पति प्रभात कुमार पाण्डेय ने किया। मौके पर वक्ताओं ने शहीद भगत सिंह , राजगुरु एवं सुखदेव के कृतग्यता पर प्रकाश डाला। बताते चले कि शहीद भगत सिंह का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लायलपुर वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था । जबकि शहीद राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। उनके पिता का नाम श्री हरि नारायण तथा माता का नाम पार्वती बाई था। बताते चले कि वे लोग बचपन से ही वीर और साहसी थे। उनकी शिक्षा वाराणसी में हुई तथा यहीं उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ था। राजगुरु चंद्रशेखर आजाद से बहुत प्रभावित हुए तथा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ गए और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी बेहद प्रभावित थे। वे सबसे अच्छे निशानेबाज माने जाते थेजब पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत हुई तब उनकी मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे। 23 मार्च 1931 को उन्हें भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था।

राजगुरु को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख क्रांतिकारी माना जाता है।सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लायलपुर पाकिस्तान में हुआ था। बचपन से ही सुखदेव के मन में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। अपने बचपन से ही उन्होंने भारत में अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों को देखा और इसी के चलते वह गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार पास-पास ही रहते थे और इन दोनों में गहरी दोस्ती थी। साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था। वे कॉलेज में युवाओं में देशभक्ति की भावना भरते और उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने के लिए प्रेरित करते थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सुखदेव थापर एक ऐसा नाम है जो न सिर्फ अपनी देशभक्ति, साहस और मातृभूमि पर कुर्बान होने के लिए जाना जाता है और शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य मित्र के रूप में उनका नाम इतिहास में दर्ज है।

वे एक कुशल नेता के रूप में वह कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में भी बताया करते थे। सुखदेव ने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर लाहौर में नौजवान भारत सभा शुरू की। यह एक ऐसा संगठन था जो युवकों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करता था। सुखदेव ने युवाओं में न सिर्फ देशभक्ति का जज्बा भरने का काम किया, बल्कि खुद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1928 की उस घटना के लिए सुखदेव का नाम प्रमुखता से जाना जाता है, जब क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए गोरी हुकूमत के कारिंदे पुलिस उपाधीक्षक जेपी सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था और पूरे देश में क्रांतिकारियों की जय-जय कार हुई थी। सांडर्स की हत्या के मामले को ‘लाहौर षड्यंत्र’ के रूप में जाना गया।

अंग्रेजी हुकूमत को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से दहला देने वाले राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई। मात्र 24 साल की उम्र में सुखदेव इस दुनिया से विदा हो गए। 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और देश के युवाओं के मन में आजादी पाने की नई ललक पैदा कर गए। मौके पर नागेंद्र राय,पप्पू कुशवाहा,भिखारी राय,सुरेमन साह,हरेंद्र साह,श्री राम राय,अजय तिवारी,धर्मदेव तिवारी,प्रहलाद प्रसाद,अवधेश सिंह सहित सैकड़ो लोगों शामिल थे। वही धन्यवाद ज्ञापन कामरेड अरुण कुमार तिवारी ने किया।

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