जिंदगी को ऊर्जस्वित कर गए शिवमंगल सिंह ‘ सुमन’
प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की जयंती पर सादर श्रद्धांजलि
✍️गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।
उपर्युक्त पंक्तियां साहित्य के उस संवेदनशील साधक की है, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य में नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार किया। उपनिवेशवाद के दौर में जब चारों ओर निराशा व्याप्त थी उस समय ओजस्वी कवि, समर्पित अध्यापक, कुशल प्रशासक शिवमंगल सिंह ‘ सुमन’ ने अपनी काव्य प्रतिभा से आम जनता के बीच सकारात्मकता और सद्प्रेरणा का प्रसार किया।
सुमन जी का स्वालंबन का संदेश आज के भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में भी बेहद प्रासंगिक दिखता है। आज हम आत्मनिर्भर होने का जतन कर रहे हैं तो शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में ही युवाओं को स्वावलंबन का संदेश देकर उन्हें ऊर्जस्वित और प्रेरित करने के महान दायित्व को निभाया था।
आज हम जलवायु परिवर्तन की विभीषिका का सामना कर रहे हैं। भविष्य की चिंता सता रही है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी असंवेदनशील प्रतिक्रिया अब हमें डरा रही है। लेकिन शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने अपनी हर रचना में प्रकृति के प्रति असीम अनुराग को जाहिर किया था और प्रकृति को सहेजने और संवारने का अमूल्य संदेश दिया था।
आज के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव हर व्यक्तित्व की पहचान बन चुकी है। हर पल आशा निराशा का चलता दौर व्यथित करता दिखता है लेकिन शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने अपनी कविताओं के माध्यम से जिंदगी के बहुआयामी स्वरूप को बेहद सरल और सहज अंदाज में समझाया। हार और जीत को सुमन जी महज एक प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि यहीं तो जिंदगी का चलायमान तथ्य है, भला इससे क्या भयभीत होना?
आज के उपभोक्तावादी दौर और डिजिटल क्रांति के दौर में शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ का हार और जीत के प्रति निरपेक्ष भाव का यह संदेश बेहद महत्वपूर्ण हो जाता हैं।
शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में मानवीय गरिमा और मर्यादा को विशिष्ट महत्व दिया। उन्होंने मानव को स्वावलंबी बनने का विशेष संदेश दिया। उन्होंने बेचारगी के भाव को हटाने और किसी के सहारे की बाट जोहने को मानवीय गरिमा के खिलाफ बताया। सुमन ने मानव को अपने आप पर विश्वास करने और अपनी सृजनात्मकता, रचनात्मकता के माध्यम से एक नई कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया । आज के दौर में समाज में कई ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो पर्याप्त योग्य होते हुए भी किसी के सहारे की उम्मीद करते दिख जाएंगे। ऐसे लोगों का मार्गदर्शन करने में सुमन जी की निम्न कविता बेहद सहायक होगी….
है भूल करना प्यार भी,
है भूल यह मनुहार भी,
पर भूल है सबसे बड़ी,
करना किसी का आसरा,
मानव बनो, मानव जरा|
अब अश्रु दिखलाओ नहीं,
अब हाथ फैलाओ नहीं,
हुंकार कर दो एक जिससे,
थरथरा जाए धरा,
मानव बनो,मानव जरा|
प्रगतिवादी कवि के तौर पर ख्यात शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने मानव के कर्तव्य पथ पर निरंतर चलायमान रहने का संदेश दिया। उन्होंने ने जिंदगी में मंजिल पाने के लिए अनवरत प्रयत्नशील रहने का संदेश दिया। सुमन जी की निम्न कविता युवाओं को एक बड़ा संदेश देती दिख रही है….
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूं,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
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