Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या भारत को चीन से जनसंख्या नियंत्रण सीखना चाहिये? - श्रीनारद मीडिया

क्या भारत को चीन से जनसंख्या नियंत्रण सीखना चाहिये?

क्या भारत को चीन से जनसंख्या नियंत्रण सीखना चाहिये?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महान ग्रीक साहित्यकार अरिस्टोफैनिस के मुताबिक, ‘बुद्धिमान लोग बहुत कुछ अपने शत्रुओं से सीखते हैं.’ यह कहावत भारत के लिए उपयोगी एवं प्रासंगिक हो सकती है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने 31 मई को ‘तीन बच्चों की नीति‘ अपनाने का फैसला किया. बूढ़ों की बढ़ती संख्या से परेशान चीन को यह एहसास हुआ है कि बच्चे पैदा करने की रफ्तार अगर नहीं बढ़ायी गयी, तो भविष्य की चुनौतियों से निपटने में बहुत मुश्किल होगी.

आज पूरे विश्व में जब जनसंख्या नियंत्रण की नीति अपनायी जा रही है, चीन का यह फैसला बहुत अहमियत रखता है. चीन में जनसंख्या नियंत्रण की समस्या पिछले पांच-छह दशकों से सरकार की पहली प्राथमिकता रहती थी. सत्तर के दशक में जब खाद्यान्न एवं पेयजल की कमी होने लगी, तो सरकार ने मजबूरन जनसंख्या नियंत्रण की सख्त नीति अपनायी. साल 1979 में एक बच्चा पैदा करने की नीति लागू हुई. यह नीति काफी हद तक सफल रही, पर इसके कुछ दुष्परिणाम भी दिखने लगे.

बेटा पैदा करने की चाह में लोगों में भ्रूणहत्या का प्रचलन बढ़ा और इस कारण लैंगिक असंतुलन भी बढ़ने लगा, लेकिन उसी समय से चीनी नागरिकों की मानसिकता में अधिक बच्चा पैदा नहीं करने की प्रवृत्ति राष्ट्रहित में मजबूत होती गयी. बीते दशक में चीन जनसंख्या वृद्धि दर के एकदम निचले स्तर पर पहुंच गया. बढ़ते सामाजिक असंतुलन के परिप्रेक्ष्य में 2016 में जनसंख्या नीति में परिवर्तन करते हुए ‘दो बच्चे‘ के पैदा करने की नीति अपनायी गयी.

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस नीति को अपनाने में कम-से-कम पांच साल की देरी हुई, जिसके कारण जनसंख्या में लैंगिक एवं आयु वर्ग का संतुलन बिगड़ गया. चीन की जनगणना के ताजा आंकड़े के मुताबिक, 2020 में जनसंख्या वृद्धि की दर मात्र 0.5 प्रतिशत रही है और केवल 1.2 करोड़ बच्चे ही पैदा हुए. देश की कुल आबादी 141.2 करोड़ है, जबकि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 26.4 करोड़ लोग हैं, पर श्रमजीवी आबादी (15-59 वर्ष के काम करनेवाले लोग) अब 63.3 प्रतिशत ही हैं, जो 2010 से 6.7 प्रतिशत कम है. छह दशकों में सबसे धीमी गति से चीन की आबादी बढ़ने की दर पिछले वर्ष रही. जनसंख्या नियंत्रण की सख्त नीति के प्रतिफल और जनसंख्यिकीय लाभांश पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के कारण ही चीन तीन बच्चों की नीति अपनाने पर मजबूर हुआ है.

भारत के लिए चीन की जनगणना के आंकड़ों का विशेष महत्व है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, मात्र पांच वर्षों में हम दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी के देश बन जायेंगे. हम जनसंख्या नियंत्रण के मोर्चे पर बहुत अधिक सफल नहीं हो पाये हैं और सही मायने में जनसंख्या विस्फोट ही इस देश के सारी समस्याओं का मूल है. खतरनाक गति से बढ़ती जनसंख्या हमारे संसाधन पर दबाव बनाती है और पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है. नतीजतन, सभी लोगों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के गरीब एवं वंचित लोगों तक मूलभूत सुविधाएं कारगर ढंग से पहुंचाने में सरकार के पसीने छूट जाते हैं.

जनसंख्या अनियंत्रित रहने से शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह भ्रष्टाचार, अपराध, अराजकता तथा हिंसा का भी कारक बनता है. इसका कुप्रभाव पर्यावरण पर भी पड़ता है. यह सही है कि जनसंख्या नियंत्रण की नीति से भारत में भी जनसंख्या वृद्धि में काफी कमी आयी है और लगभग पांच दशकों में वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत से घटकर 1.13 प्रतिशत तक आ चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक, 2020 में जनसंख्या वृद्धि की दर लगभग 0.97 प्रतिशत रही है, जो सुधार का संकेत है. पर इस मोर्चे पर अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है.

जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए सबसे अधिक जनजागरण की आवश्यकता है. चीन में हुए जनसंख्या नियंत्रण का श्रेय सरकार की नीतियों से अधिक आम नागरिकों के संकल्प को जाता है. चीनी नागरिक सरकारी नीतियों के सफल क्रियान्वयन में जिम्मेदार भूमिका निभाना अपना कर्तव्य समझते हैं. यह अलग बात है कि इन चीजों का श्रेय बहुत लोग तानाशाही व्यवस्था एवं सरकार के भयादोहन की नीतियों को देते हैं.

चीन की आक्रामक साम्राज्यवादी विदेश नीति से सभी परिचित हैं. अपनी नकारात्मक बातों को छिपाने एवं तरक्की की शेखी बघारने के साथ पड़ोसियों पर धौंस जमाने की उसकी प्रवृत्ति जगजाहिर है. फिलहाल कोरोना वायरस की उत्पत्ति एवं इसकी जांच के मामले में चीन का व्यवहार गैरजिम्मेदाराना ही नहीं, आपराधिक उपेक्षा का रहा. लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर इस उल्लेखनीय उपलब्धि की अहमियत को नकारना मुश्किल है.

हमारे धर्मशास्त्र भी कहते हैं कि दुश्मनों से भी सकारात्मक बातें सीखनी चाहिए. आज समय है कि चीन की जनता के संकल्प से सीख लेकर हम भारतवासी जनसंख्या नियंत्रण को सफल बनाने के लिए अपने को आहूत करें. सरकार द्वारा सख्त नीतियां बनाने का सुझाव या विकल्प अव्यवहारिक है.

आपातकाल के दौरान जनसंख्या नियंत्रण में सरकारी सख्ती के खिलाफ जनाक्रोश सर्वविदित है. चीन की जनगणना रिपोर्ट से हमारी आंखें खुलनी चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण को जन अभियान के रूप में स्वीकार कर देश के सुनहरे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए. सरकार की प्रोत्साहन नीतियों के अलावा इसमें बुद्धिजीवियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, मीडिया, जन-प्रतिनिधियों एवं सामाजिक संगठनों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.

ये भी पढ़े….

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!