संसद के नये भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए या प्रधानमंत्री को?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व सांसद राहुल गांधी ने संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के हाथों कराए जाने की मांग की है। कांग्रेस का कहना है कि संसद भारतीय गणराज्य की सर्वोच्च विधायी संस्था है और राष्ट्रपति सर्वोच्च संवैधानिक पद है इसलिए उनसे उद्घाटन करवाया जाना चाहिए। कांग्रेस नेताओं ने तर्क दिया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का प्रतिनिधित्व करती हैं और वह भारत की प्रथम नागरिक हैं,
इसलिए संसद के नये भवन का उद्घाटन उनसे करवाना चाहिए। कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया है कि अगर संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति करती हैं तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करेगा। साथ ही कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया है कि मोदी सरकार संवैधानिक मर्यादा का बार-बार अनादर करती है और भाजपा-आरएसएस की सरकार के तहत भारत के राष्ट्रपति पद को प्रतीकात्मक बना दिया गया है।
कांग्रेस नेताओं के इस बयान के बाद इस मुद्दे पर बहस चल पड़ी है कि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए या प्रधानमंत्री को? लेकिन यह सवाल करने से पहले कांग्रेस को बताना चाहिए कि उसके कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्रियों ने अपनी कितनी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाया था? इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है और उनकी उपस्थिति से किसी भी कार्यक्रम की गरिमा बढ़ जाती है लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सीधे जनता के मतों से निर्वाचित हुई किसी भी सरकार को अपनी परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन करने का अधिकार होता है और उसे यह करना भी चाहिए क्योंकि चुनावों के दौरान उसे ही जनता के बीच जाकर अपनी उपलब्धियां बतानी है और अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करना है।
क्या विपक्ष इन सवालों का जवाब देगा?
देखा जाये तो राष्ट्रपति से नये संसद भवन का उद्घाटन कराने का सुझाव कांग्रेस ने इसलिए नहीं दिया है कि देश के संवैधानिक प्रमुख के लिए उसके मन में बहुत सम्मान है। देश को कांग्रेस नेताओं के वह अमर्यादित बयान याद हैं जो उन्होंने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाये जाने पर और उनके निर्वाचन के बाद दिये थे।
कांग्रेस यदि राष्ट्रपति और संविधान का बहुत सम्मान करती है तो वह बताये कि क्यों साल 2021 में संसद के सेंट्रल हॉल में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संबोधित किए जाने वाले संविधान दिवस समारोह का बहिष्कार किया था? कांग्रेस के अलावा जो अन्य दल नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने का सुझाव देते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह देश के संवैधानिक प्रमुख के प्रति असम्मान व्यक्त कर रही है वह दल जरा बताएं कि क्यों उन्होंने इस साल संसद के बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था?
लोकतंत्र के मंदिर पर विवाद क्यों?
संसद का नया भवन कांग्रेस को शिलान्यास के समय से ही नहीं पच रहा था और अब जब उद्घाटन तारीख आ गयी है तो कांग्रेस की असहजता बढ़ना स्वाभाविक है। संसद के नये भवन के उद्घाटन की तारीख सामने आते ही कांग्रेस ने जो पहली प्रतिक्रिया दी उसके तहत उसने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा वाली परियोजना’ बताया। फिर कांग्रेस ने सवाल किया कि ऐसी इमारत की जरूरत ही क्या है,
जब विपक्ष के ‘माइक’ बंद कर दिये गये हैं। यही नहीं, देश को बुनियादी से लेकर आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नया संसद भवन देने को प्रतिबद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय-समय पर निर्माण कार्यों की समीक्षा करते रहे और श्रमिकों तथा इंजीनियरों से निर्माण स्थल पर मुलाकात कर उनका हौसला बढ़ाते रहे तो यह भी कांग्रेस को नहीं भाया इसलिए उसके एक बड़े नेता ने प्रधानमंत्री की एक तस्वीर साझा करते हुए ट्वीट किया, ‘‘28 मई को उद्घाटन किये जाने वाले नये संसद भवन के एकमात्र वास्तुकार, डिजाइनर और श्रमिक। तस्वीर सबकुछ बयां करती है…
व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा वाली परियोजना।’’ इसके बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने नया विवाद खड़ा करते हुए विनायक दामोदर सावरकर की जयंती के दिन 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करने के फैसले को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए इसे राष्ट्र निर्माताओं का अपमान करार दे दिया। यही नहीं, जब लगभग एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया था तब भी विपक्ष ने तमाम तरह के विवाद खड़े करने के प्रयास किये थे। उस समय राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप के अलावा प्रधानमंत्री के पूजा पाठ करने पर सवाल उठाये गये थे।
गर्व करने का समय
बहरहाल, नया संसद भवन बनकर तैयार होना देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण अवसर है क्योंकि गुलामी की जंजीरें तोड़ने के बरसों बाद भारत अपने बल पर नया मुकाम और नयी पहचान बना रहा है। वर्तमान संसद भवन 1927 में अंग्रेज शासनकाल में बना था यानि लगभग सौ सालों बाद देश को नयी संसद मिल रही है। यह बात सही है कि वर्तमान संसद अंग्रेजों के अत्याचार, भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष, भारत की आजादी के पलों की और भारत के लोकतंत्र के फलने फूलने की गवाह थी लेकिन यह भी सही है कि आजादी के अमृत काल में बनी नयी संसद भारत के आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ने की गवाह रहेगी। यह महत्वाकांक्षी परियोजना पूरा होना यह भी दर्शाता है कि देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठते ही खुद को प्रधान सेवक के रूप में प्रस्तुत करने वाले नरेंद्र मोदी जिस काम को पूरा करने की ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। वाकई संकल्प को सिद्ध कैसे किया जाता है इसकी प्रेरणा लेनी है तो प्रधानमंत्री से लेनी चाहिए।
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