क्या हमें म्यांमार में लोकतंत्र का समर्थन करना चाहिए?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

म्याँमार फरवरी, 2021 से संकटग्रस्त है जब सेना ने सैन्य तख्तापलट कर देश पर नियंत्रण कर लिया और आंग सान सू की एवं उनकी पार्टी ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ (NLD) के अन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया।

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते यह भारत के लिये चिंता का विषय होना चाहिये कि उसके निकटस्थ पड़ोस में लोकतंत्र को ऐसा खतरा उत्पन्न हुआ है। लेकिन इसके साथ ही म्याँमार में भारत के महत्त्वपूर्ण हित भी निहित हैं और इसलिये वह उनकी रक्षा और अभिवृद्धि की भी इच्छा रखेगा।

जबकि पश्चिम ने लोकतंत्र को अपनी म्याँमार नीति के एकमात्र उपकरण के रूप में रखा है, भारत के पास यह आसान विकल्प उपलब्ध नहीं है।

अधिकांश अन्य निकटतम पड़ोसियों की तरह भारत म्याँमार की सेना की सत्तावादी प्रवृत्तियों के विरुद्ध दबाव बनाए रखने का इच्छुक रहा है। इसके अपने विभिन्न हितों को देखते हुए भारत को सभी हितधारकों के साथ संवाद के अपने माध्यमों को खुला रखने की भी आवश्यकता है।

भारत और म्याँमार

  • भारत के लिये म्याँमार का महत्त्व:
    • म्याँमार भारत के लिये भू-राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत-दक्षिण पूर्व एशिया भूभाग के केंद्र में स्थित है।
    • म्याँमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जो पूर्वोत्तर भारत के साथ भूमि सीमा साझा करता है।
    • म्याँमार एकमात्र ऐसा भी देश है जो भारत की ‘नेवरहुड फर्स्ट’ नीति और एक्ट ईस्ट नीति के केंद्र में स्थित है।
    • भारत के सागर विज़न (SAGAR Vision) के एक अंग के रूप में भारत ने म्याँमार के रखाइन राज्य में सित्वे (Sittwe) बंदरगाह का विकास किया है।
      • यह बंदरगाह चीन-उन्मुख ‘क्याऊकप्यू’ (Kyaukpyu) बंदरगाह, जो रखाइन क्षेत्र में चीन की भू-रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करने का उद्देश्य रखता है, का मुकाबला कर सकने का भारत का प्रयास है।
  • म्याँमार के प्रति भारत की प्रतिक्रिया: भारत आरंभ से ही यह स्पष्ट रुख प्रकट करता रहा है कि म्याँमार द्वारा पिछले दशकों में लोकतंत्र की राह पर जो लाभ अर्जित किया गया है, उसे कमज़ोर नहीं किया जाना चाहिये।
    • आंग सान सू की को 2 वर्ष की कैद (हाल ही में इस सजा की घोषणा की गई) पर भी भारत ने गहरी चिंता व्यक्त की है क्योंकि इस तरह के घटनाक्रम मतभेदों को बढ़ाएंगे।
      • इसने सुझाव दिया है कि सभी पक्ष अपने देश के भविष्य के लिये संवाद को आगे बढ़ाने के प्रयास करें।
  • सैन्य तख्तापलट पर वैश्विक प्रतिक्रिया: पश्चिमी देशों द्वारा इसकी निंदा और म्याँमार पर प्रतिबंध लगाया जाना जारी है।
    • अमेरिका द्वारा और अधिक प्रतिबंधों की पुरानी घिसी-पिटी धमकी लगातार दी जा रही है, हालाँकि इसका अधिक लाभ नहीं मिला है।
      • ऐसा प्रकट होता है कि म्याँमार की सेना ने पश्चिम की धमकियों को प्रभावपूर्ण तरीके से लेना बंद कर दिया है।
    • चीन अपना निवेश बढ़ाते हुए म्याँमार को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
    • जापान एवं दक्षिण कोरिया जैसे देश और अधिकांश आसियान देश म्याँमार की सैन्य सरकार के साथ संलग्नता के लिये आगे बढ़ रहे हैं।
    • कंबोडिया के प्रधानमंत्री का जनवरी 2022 में म्याँमार का दौरा प्रस्तावित है और इससे संलग्नता की नई शर्तों का तय होना संभावित है।

भारत के लिये चुनौतियाँ

  • पूर्वोत्तर उग्रवाद पर चीन का प्रभाव: सैन्य तख्तापलट के बाद से चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे (China-Myanmar Economic Corridor) के लिये महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ म्याँमार पर चीन की आर्थिक पकड़ मज़बूत हो रही है।
    • इसके अलावा, म्याँमार सीमा के पास असम राइफल्स के काफिले पर हालिया घातक हमला पूर्वोत्तर भारत में संकट उत्पन्न करने की चीन की बदनीयती का संकेत देती है।
  • रोहिंग्या मुद्दा: म्याँमार में रोहिंग्या संकट पर आंग सान सू की की चुप्पी ने असहाय रोहिंग्याओं की दुर्दशा की अनदेखी ही की। यह पूर्वोत्तर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हित के अनुकूल नहीं है।
  • भारत-म्याँमार सीमा की पारगम्यता: 1643 किलोमीटर लंबी भारत-म्याँमार सीमा अत्यंत पारगम्य है जो उग्रवादियों, अवैध हथियारों और ड्रग्स की सीमापार आवाज़ाही को सुगम बनाती है।
    • यह सीमा क्षेत्र पहाड़ी और दुर्गम इलाकों के साथ विस्तृत है और विभिन्न भारतीय विद्रोही समूहों (IIGs) की गतिविधियों को आश्रय प्रदान करता है।

आगे की राह

  • सेना की प्रधानता को स्वीकार करना: म्याँमार में किसी लोकतांत्रिक संक्रमण या रूपांतरण के लिये वहाँ की सेना की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी और इसलिये म्याँमार की सेना के साथ भारत की सक्रिय संलग्नता आवश्यक है।
    • भले ही भारत लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का लगातार आह्वान कर रहा हो, भारतीय चिंताओं को दूर करने के लिये म्याँमार की सेना के साथ संलग्नता आवश्यक है। म्याँमार की सैन्य सरकार की अनदेखी करना उसे चीन की ओर अधिक धकेलेगा।
  • सांस्कृतिक कूटनीति: म्याँमार के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत को सांस्कृतिक कूटनीति का लाभ उठाना चाहिये जहाँ बौद्ध धर्म एक साझा सूत्र का निर्माण करता है।
    • भारत की ‘‘बुद्धिस्ट सर्किट’’ (Buddhist Circuit) पहल, जो भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित प्राचीन बौद्ध विरासत स्थलों को एक साथ जोड़कर विदेशी पर्यटकों के आगमन को दोगुना करने का लक्ष्य रखती है, बौद्ध-बहुल म्याँमार के साथ संबंधों में प्रतिध्वनित होनी चाहिये।
    • यह म्याँमार जैसे बौद्ध-बहुल देशों के साथ भारत के सद्भावना और विश्वास के राजनयिक कोश का निर्माण कर सकता है।
  • रोहिंग्या संकट का समाधान: रोहिंग्या संकट को जितनी जल्दी सुलझाया जाएगा, भारत के लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करना उतना ही आसान होगा एवं इस विषय के बजाय द्विपक्षीय और उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।

निष्कर्ष

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