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श्रीराम समस्त जीव-जगत को प्रकाश से भर देते है-गिरीश्वर मिश्र. - श्रीनारद मीडिया

श्रीराम समस्त जीव-जगत को प्रकाश से भर देते है–गिरीश्वर मिश्र.

श्रीराम समस्त जीव-जगत को प्रकाश से भर देते है–गिरीश्वर मिश्र.

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श्रीराम का स्नेह समस्त जीव मात्र तक विस्तृत है। 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भगवान श्रीराम ऐतिहासिक अतीत नहीं, वरन भारतीय संस्कृति के वर्तमान हैं। एक सतत विद्यमान, कभी न बीतने वाले वर्तमान। लोक मन उनके साथ अभी भी संवादरत है। उसकी भावनाओं के जीवन में श्रीराम जीवंत हैं। वाचिक परंपरा में राम-कथा की अभिव्यक्ति अभी भी प्रभावी बनी हुई है। जन्म, उपनयन, विवाह सभी मांगलिक अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों में राम का स्मरण अनिवार्य सा है। वैसे भी दुख, आश्चर्य, आह्लाद सभी भावनाओं की हर छटा को व्यक्त करने में राम का नाम स्मरण हो आता है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त नामों में भी राम का प्रचुर उपयोग मिलता है। इस मामले में उत्तर भारत भी राममय है तो दक्षिण भारत भी। यह राम की महिमा का प्रताप है कि धारावाहिक रामायण का जब भी टीवी पर प्रसारण होता है, वह देश को राममय कर देता है। इसी तरह रामलीलाओं के मंचन के समय राम नाम की महिमा सर्वत्र व्याप्त हो जाती है। सदियों से राम कथा, रामलीला, रामायण और रामचरित मानस की लोकप्रियता यही बताती है कि राम इस देश की आत्मा में रचे-बसे हैैं। इसी कारण अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संपन्न होने की प्रतीक्षा हो रही है।

श्रीराम का नाम ऊर्जा और विश्रांति देने वाला मंत्र है। बहुतों का अनुभव है कि राममय होना कल्याणप्रद है। आज भारत और विदेश में राम-कथा के अनेकानेक भाषाओं में कई-कई संस्करण उपलब्ध हैं। दुनिया में अनेक रामायण हैं। उन सबमें गोस्वामी तुलसीदास का लोक भाषा अवधी में रचित ‘रामचरितमानसÓ कई दृष्टियों से अप्रतिम है। पिछले पांच सौ वर्षों से यह सरस संगीतमय रचना भक्तजनों और साहित्य प्रेमियों के हृदय में समाई हुई है। तुलसीदास जी के शब्दों में राम से ही सभी रिश्ते-नाते बनते हैं।

उनसे जुड़कर सारी संकीर्णताएं दूर होती हैैं और दूरियां मिट जाती हैं। इस कथा धारा में आज भी भक्त, भगवान और आमजनों का लोक, सभी परस्पर जुड़ जाते हैं। राम लौकिक राजा से अधिक आध्यात्मिक राजा हैं। राम-राज्य एक उदात्त प्रेरक कल्पना है, जो समाज के लिए दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त भरे-पूरे गुणवत्तापूर्ण जीवन का मार्ग दिखाती है। यह याद रहना चाहिए कि रामचरितमानस एक लीला काव्य है, जो तरह-तरह के प्रसंगों से मनुष्य को उस राम-भाव से भावित बनाता है, जो एक ओर सहज रूप से सर्वजनसुलभ है तो दूसरी ओर ऐश्वर्य की पराकाष्ठा है। इन सबके बीच जीवन में अतिक्रमण करने वाली बड़ी-बड़ी मर्यादाओं की प्रतिष्ठा के लिए प्रेरित करता है।

‘राम’ का शाब्दिक अर्थ है हर्षदायक, सुंदर, मनोहर और सुहावना। भारतीय परंपरा में तीन राम प्रसिद्ध हैं-जमदग्नि पुत्र परशुराम, वसुदेव पुत्र बलराम और दशरथ नंदन श्रीराम। श्रीराम इसी परंपरा में विष्णु के सातवें अवतार के रूप में जाने जाते हैं। चैत महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अयोध्या में उनका जन्म हुआ। मानव रूप में बालक, युवा, प्रौढ़, राजा, योद्धा, वनचारी, पुत्र, मित्र, पति, भाई आदि के रूप में राम का चरित जन-जन तक पहुंचा है। उसकी गूंज अनेक काव्यों, लोक रचनाओं और अब मीडिया के माध्यम से चारों ओर व्याप्त है।

राम की अनेक छवियां है और वे हर भूमिका की मर्यादा को निभाने की कसौटी के रूप में लोक-स्मृति में बस गए हैं। सबसे प्रखर और लोकप्रिय छवि नील कमल जैसी श्याम आभा और कोमल अंग वाले, पीतांबरधारी, विशाल नेत्रों वाले धनुर्धारी राम की है, जिनका मुखारविंद दुख और सुख में अविचल रहता है। गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्दों में राम जगदीश्वर हैं, पर शांत, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, ज्ञानगम्य, योगीश्वर, अजेय, माया से परे, निर्विकार, मोक्षरूप, भव (जन्म-मृत्यु) के भय को हरने वाले, परम शांति देने वाले हैं।

वे ब्रह्मा, शंभु और शेषनाग द्वारा निरंतर सेवित हैं और वेदांत द्वारा जानने योग्य हैं। वे सर्वव्यापी, देवताओं में सबसे बड़े, समस्त पापों को हराने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ और राजाओं के शिरोमणि हैं। माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले विष्णु हैं। इस तरह परब्रह्म ही नर रूप में देह धरे हैं। उन तक पहुंचाने के ज्ञान और भक्ति के मार्ग बने हैं, पर वस्तुत: उनमें कोई अंतर नहीं है और दोनों से ही सांसारिक कष्ट दूर होते हैं।

मानव शरीर धारण कर प्रभु श्रीराम मानव स्वभाव की सभी गुत्थियों के बीच रमते हुए हर तरह की आपदा को सहते हैं और अविचल भाव से सुख-दुख, दोनों के प्रति वीतराग रहते हैं। राम जन्मोत्सव श्रीराम के भाव या विचार-प्रवाह से जुडऩा है। उनकी प्रतिष्ठा अपने में धारण करना तभी संभव होगा जब हम सहजता, सीधापन अपनाते हुए सहज जीवन की ओर अग्रसर हो सकें। यह भी उल्लेखनीय है कि बोलचाल की सहज जन-भाषा की रचना (रामचरितमानस) साहित्य का सिरमौर हो गई और घर-घर में हर व्यक्ति की निजी संपदा बन गई। यह सब यही दर्शाता है कि छोटा होकर भी विशाल भाव अपनाते हुए राम का हुआ जा सकता है।

श्रीराम के स्पर्श से उपजी आत्मीयता संक्रामक है। तेजस्विता, शील, धर्म का विग्रह, आदर्श प्रजा पालन, एकनिष्ठ पति, मानव संबंधों का निर्वाह, कृतज्ञता, सत्यसंध होना, करुणा, लोक कल्याण, मृदुता और कठोरता, धैर्य, क्षमा जैसे गुणों के साथ श्रीराम एक देवोत्तर मानवीय चरित्र उपस्थित करते हैं। उनका नाम वह दीपक है, जो हर क्षण जब चाहे अंदर-बाहर प्रकाश से भर देता है।

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