पारंपरिक राजनीति में बदलाव के संकेत!
विधानसभा चुनाव 2022 के पांच राज्यों के परिणाम ने दिए संदेश
सियासी दलों को इन संकेतों को समझना होगा वरना अप्रासंगिक होने का खतरा सदैव रहेगा मौजूद
✍️ गणेश दत्त पाठक‚ स्वतंत्र टिप्पणीकार ः
श्रीनारद मीडिया ः
समाज के हर आयाम में बदलाव का दौर चल रहा है। डिजिटल क्रांति के दौर में बदलाव की दर अत्यधिक तीव्र हो गई है। यह बदलाव राजनीति के क्षेत्र में भी देखी जा रही है। विधानसभा चुनाव 2022 में सामने आए जनादेश कई संदेश देते दिख रहे हैं। जिसे समझना सियासत के लिए जरूरी है, अन्यथा अप्रासंगिक होने का खतरा तो हमेशा मौजूद रहेगा। जनता की सोच में आमूल चूल परिवर्तन आ रहा है। हर हाथ में मोबाइल जागरूकता और चिंतन के स्तर पर क्रांतिकारी परिवर्तन लाता दिख रहा है।
समस्या नहीं समाधान का प्रयास लुभा रही है जनता को
विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम स्पष्ट संदेश देते दिख रहे हैं कि इस चुनाव में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे मतदाताओं को बहुत प्रभावित करते नहीं दिखे। गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दे परंपरागत तौर पर बड़े सियासी मुद्दे रहे हैं। लेकिन वर्तमान दौर में राशन की सुलभता मतदाताओं को विशेष तौर पर लुभा रही है। समस्याओं के समाधान पर सजगता से मतदाता प्रभावित होते दिख रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान हर दिन एक नए समाधान के तरीके लोगों को व्यथित नहीं, प्रभावित करते दिखे। यह जनमत के सोच में आए क्रांतिकारी परिवर्तन को ही इंगित करता है। यह नया दौर भी है, जब जनता शासन की चुनौतियों को समझने को आतुर भी दिखाई पड़ रही है। इसलिए शायद वो नारों की भुलभुलैया में फंसने से परहेज भी करती दिख रही है।
अब भीड़ नहीं रही वोट की गारंटी
परंपरागत तौर पर भारतीय सियासत के संदर्भ में विशेषकर चुनाव के दौरान भीड़ एक आवश्यक जरूरत रही है। परंतु विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम इस तथ्य की जोरदार तस्दीक करते दिख रहे हैं कि भीड़ अब वोट की गारंटी नहीं रही। भीड़ से अलग एक बड़ी संख्या अपने अलग अलग मंसूबों को सजा रही हैं। भीड़ तो कुछ उत्साही समर्थकों के भावों को उजागर करती है न कि आम जनता के मनोभाव को। इसलिए अब सियासी दलों को भीड़ से परे जा कर पूरी जनता के विषय में चिंतन मनन की अनिवार्यता परिलक्षित हो रही है।
सुरक्षा और कानून व्यवस्था अब बड़े मुद्दे
आज समाज में कई अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। उन अवसरों का लाभ उठाने के लिए समाज में शांति और सुरक्षा का होना जरूरी है। नारी सशक्तिकरण के प्रयास भी बेटियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने का संदेश दे रहे हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश की जनता ने सुरक्षा और शांति व्यवस्था के बड़े मुद्दे होने की बात पर मुहर लगा कर भविष्य के लिए सियासत को बड़ा संदेश दिया है। पिछले कई चुनाव में दिख रहा है कि गवर्नेंस एक बड़ा मसला बन चुका है। योगी मॉडल में भी गवर्नेंस पर ज्यादा जोर दिख रहा है। योगी के नेतृत्व में भाजपा सरकार का उत्तर प्रदेश में फिर सत्ता में आ जाना, गवर्नेस के मुद्दे की सार्थकता को ही साबित करता दिख रहा है।
वैकल्पिक राजनीति के नए दौर की शुरुआत
देश की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत देखी जा रही है। सत्ताधारी भाजपा के विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी का उभार एक बड़ा संकेत है। पंजाब और गोवा के चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में विशेष मायने रखता है। जनता के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मसलों पर अच्छा काम दिखाकर भी खासा प्रभाव डाला जा सकता है। इसे आम आदमी पार्टी की सफलता स्पष्ट करती दिख रही है। केवल क्षेत्रीयता को उभार कर वोटों की फसल काटने की हसरत अब पूरी होती नहीं दिख रही है। अब यह तो भविष्य बताएगा कि आम आदमी पार्टी जनता के भरोसे को 2024 के चुनाव तक फिर कैसे संजो पाती है?
जातीय नेता भी नहीं रहे वोट की गारंटी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम खुलकर यह जाहिर कर रहे कि जातीय नेता भी वोट की गारंटी नहीं रहे। विशेषकर विधानसभा चुनाव में देखा जाता रहा है कि जातीय आधार पर गठबंधन होते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य आदि नेताओं का हश्र साबित कर रहा है कि केवल जातीय नेता के अनुसार वोट नहीं डालने जा रहे। इस सियासी संकेत के मायने गंभीर हैं जिसे समझे जाने की आवश्यकता है।
सरोकार की राजनीति की पकड़ बन रही मजबूत
धीरे धीरे ही सही परंतु भारत में अब सरोकार की राजनीति की पकड़ मजबूत बनती जा रही है। आपदा के समय सरकार के सजग और सचेत रहने तथा निरंतर प्रयास के आधार पर जनता भी अपने मंतव्य को निर्धारित करती दिख रही है। कोरोना महामारी हो या प्रयागराज का कुंभ जनता सरकार से अपना ध्यान रखने के प्रति ख्वाहिश मंद दिखाई देती है। सियासत के लिए भविष्य का संदेश स्पष्ट है कि सरोकार के संदर्भ में सक्रियता सियासी जगत की अनिवार्यता बनती दिख रही है।
5 जी के दौर में सोशल मीडिया का असर और भी बढ़ेगा
सोशल मीडिया तो सियासी संग्राम की हकीकत बन चुका है ही। भविष्य में भी सोशल मीडिया की सियासी प्रासंगिकता में और इजाफा होने जा रहा है। तर्कों को नए कलेवर में सजाने और संजोने की अनिवार्यता भी बढ़ती दिखाई दे रही है क्योंकि जागरूकता के स्तर में प्रतिदिन वृद्धि होती दिखाई दे रही है। ‘ये पब्लिक है सब जानती है’ का फलसफा अब एक यथार्थ स्वरूप धारण करता दिख रहा है। आनेवाले 5 जी के दौर में यह सोशल मीडिया का असर और भी बढ़नेवाला है। सतर्कता की आवश्यकता सियासत और चुनाव प्रबंधन के स्तर पर भी होगी।
विधानसभा चुनाव 2022 ने भारत में लोकतंत्र के उत्सव के संदर्भ में नए फलसफे गढ़े हैं। सियासत को समय की जरूरत को समझना होगा। जनता की हसरतों को समझने का प्रयास ही लोकतंत्र की खूबसूरती और परिपक्वता को बढ़ाएगा।
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