सीवान के लाल का शोध यूरोपियन रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित
कोरोना वैक्सीन के प्रभावी होने से संबंधित विशेष शोध में बीएचयू की टीम में शामिल रहे सिवान के डॉक्टर ईशान कुमार
कोरोना वैक्सीन से संबंधित गलतफामियों को दूर करने में विशेष मददगार साबित हुआ शोध
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया :
जरा याद कीजिए कोरोना महामारी का प्रथम और द्वितीय दौर। दहशत का मंजर। आशा की किरण थी टीका की आमद। हजारों वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम का सुफल। फिर जब टीका लगाना शुरू हुआ तो अफवाहों की बयार बहने लगी। ठीक उसी समय बीएचयू के कुछ वैज्ञानिक टीके की प्रभावी होने के तथ्य पर शोध में जुट गए।
परिणाम आया कि दोनों टीके अगर लगे हैं तो संक्रमण नहीं होगा घातक। गलतफहमियों के दौर में यह शोध विशेष महत्वपूर्ण रहा। शोध की गुणवत्ता की तस्दीक कर गई, इस शोध रिपोर्ट के सुप्रतिष्ठित यूरोपियन रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशन ने। इस शोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले में बीएचयू के डॉक्टर ईशान भी शामिल हैं, जिनका सिवान से विशेष जुड़ाव रहा है।
सीवान के महादेवा के निवासी
डॉक्टर ईशान वर्तमान में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। सीवान शहर के महादेवा में उनके परिजन रहते हैं। उनके पिता डॉक्टर ए के अनिल सिवान के प्रख्यात ईएनटी सर्जन हैं और माता डॉक्टर सरिता कुमारी शहर की ख्यात स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं। डॉक्टर ईशान नियमित तौर पर सिवान आते रहते हैं। उनके बचपन का दौर सिवान में ही गुजरा है।
संक्रमित मरीजों के सीटी स्कैन पर आधारित रहा अध्ययन
बीएचयू के प्रोफेसर आशीष शर्मा, डॉक्टर ईशान कुमार के नेतृत्व में कोरोना संक्रमितों के सीटी स्कैन रिपोर्ट के आधार पर अध्ययन किया गया। प्रोफेसर आशीष शर्मा ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि टीका प्राप्त मरीजों में सामान्य प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गई तथा संक्रमण के बावजूद उन्हें ज्यादा खतरा नहीं रहा। इस अध्ययन में प्रोफेसर रामचंद्र शुक्ला, डॉक्टर प्रमोद कुमार सिंह, डॉक्टर रितु ओझा की भी भूमिका रही। अध्ययन में मरीजों को तीन ग्रुप में बांट कर अध्ययन किया गया था।
बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ अध्ययन
कोरोना महामारी की विभीषिका के दौर में टीके के बारे में भ्रम का फैलना एक बेहद गंभीर तथ्य था। लेकिन बीएचयू में हुए इस अध्ययन का महत्व टीके के प्रभावी होने के बारे में गलतफहमियों को दूर करने के संदर्भ में काफी ज्यादा है। इस अध्ययन के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की प्रतिष्ठित जर्नल यूरोपियन रेडियोलॉजी में इसका प्रकाशन हुआ है।
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