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 सीवान की  प्रिदर्शनी यूक्रेन से सकुशल घर पहुंची, सरकार, जिला प्रशासन को दिया धन्‍यवाद - श्रीनारद मीडिया
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 सीवान की  प्रिदर्शनी यूक्रेन से सकुशल घर पहुंची, सरकार, जिला प्रशासन को दिया धन्‍यवाद

सीवान की  प्रिदर्शनी यूक्रेन से सकुशल घर पहुंची, सरकार, जिला प्रशासन को दिया धन्‍यवाद

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डीएवी पीजी कॉलेज सीवान के  डा0 सुधीर कुमार राय की पुत्री है प्रियदर्शनी

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध में देश के हजारों एमबीबीएस के छात्र यूक्रेन  में फंसे हुए है। इनमें बिहार ही नहीं सीवान के भी एक दर्जन से अधिक छात्र मेडिकल की पढ़ाई वहां कर रहे थे, लेकिन युद्ध की भयावह स्थिति देखते हुए वें वहां से स्‍वदेश आने के लिए बेचैन थे, वहीं उनके परिजन अपने बच्‍चों के लिए परेशान थे।

इनमें सीवान नगर के पंचमंदिरा निवासी व डीएवी पीजी कॉलेज सीवान के हिन्‍दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा0 सुधीर कुमार राय की पुत्री प्रियदर्शनी राय भी यूक्रेन में रहकर मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। जिसकी पढ़ाई वर्ष 2023 में पूरी होने वाली है।

केन्‍द्र सरकाकर के सार्थक पहल के कारण सकुशल घर आयी – प्रियदर्शनी ने श्रीनारद मीडिया से बात करते हुए बताया कि यूक्रेन के ओडिसा मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करती है। वहां सब कुछ ठीक था लेकिन 25 फरवरी के बाद से  माहौल बिगड गया और सभी बच्‍चेंं वहां से निकलने लगे।

लेकिन वह धैर्य से काम किया और 28 फरवरी को वहां से निकली और 3 मार्च को दिल्‍ली एयरपोर्ट पहुंची और वहां से पटना और पटना से बिहार सरकार अपनी गाड़ी से सुरक्षित घर पहुंचाया। उसने बताया कि घर तक आने के लिए सरकार द्वारा किसी भी तरह का पैसा नहीं लिया गया। इसके लिए उसने केन्‍द्र की मोदी सरकार, बिहार के नितीश सरकार और सीवान के जिलाधिकारी अमित  पांडेय को धन्‍यवाद दिया। घर आने से परिवार ही नहीं सगे संबंधियों शुभचिंतकों में खुशियांंआ गयी है।

प्रियदर्शनी को अपने कान्‍हा पर था विश्‍वास –  बातचीत के क्रम में प्रियदर्शनी ने बताया कि वह हजारों किमी दूर यूक्रेन में जब गयी तभी अपने साथ कान्‍हा ( भगवानश्रीकृष्‍ण) मूर्ति लेकर गयी। उसने बताया कि वहां किराये की मकान में अकेले रहती है , लेकिन उसके साथ कान्‍हा हमेशा रहते हैं। उसको विश्‍वास था कि कान्‍हा उसे सुरक्षित अपने देश पहुंचाएंगे। उसने बताया कि हमसे चार पांच रोज पहले कॉलेज के साथ स्‍वदेश आने के लिए एजेंट के माध्‍यम से निकले, लेकिन वह नहीं निकली। लेकिन 28 फरवरी को उसके मन में विचार आया कि हमे भी चलना चाहिए और अपने कान्‍हा को लेकर निकल गयी और यूक्रेन के पड़ोसी देश  से होते वह दिल्‍ली पहुंची।

इस संकट में इंडिया का धाक देखने को मिला – प्रियदर्शनी ने बताया कि यूक्रेन से बाहर निकलने के दौरान बार्डर पर केवल इंडियन कह देने मात्र से उन लोगों की कोई परेशानी या दिक्‍कत नहीं होती थी। उसने बताया कि पाकिस्‍तान के बच्‍चों को तो बार्डर तर क्रास नहीं करने देते थे। लेकिन पाकिस्‍तान के बच्‍चें भी हाथ में तिरंगा लेकर हमलोगों के साथ इंडियन कह कर निकले। यह देखने के बाद काफी गर्व महसूस हुुआ।

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