जंगे आजादी में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु के संगी रहे थे सीवान के क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला
सीवान के अमर क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ल ने फिरंगियों को दी थी जबरदस्त चुनौती, दिल्ली षड्यंत्र केस में आया था नाम
तुम भूल न जाना उनको…
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
स्वामी दयानंद सरस्वती के “सत्यार्थ प्रकाश” ने उनकी आत्म चेतना को जागृत किया था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के राष्ट्रवादी माहौल ने उनके राष्ट्रीय भावनाओं को संपोषित किया था। महान क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु के साथ ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ उनके रगों में क्रांति की ज्वाला को धधकाया था। सीवान के क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला को फिरंगी हुकूमत ने दिल्ली के चांदनी चौक स्थित गड़ोडिया डकैती कांड में गिरफ्तार किया, प्रताड़ित भी किया लेकिन उनके मां भारती के प्रति असीम स्नेह को कम नहीं कर पाई।
सीवान में सेवारत रहे एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर प्रभुनारायण विद्यार्थी, जो कालांतर में हजारीबाग के उपायुक्त भी बने, श्री मुरलीधर शुक्ला द्वारा संपादित सीवान के गौरव ग्रंथ ” सोनालिका” में प्रकाशित एक आलेख में सीवान के इस महान क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला की कहानी को बताया है। सीवान के महान क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही देश के राष्ट्रीय स्तर के क्रांतिकारियों के संसर्ग में आ गए थे। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के भाषण सुनकर उनका राष्ट्रवादी उत्साह जागृत हुआ। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु के साथ कभी कभी वे झांसी, ग्वालियर, कानपुर के दुर्गम जंगलों में वे शूटिंग का अभ्यास करते थे। 1629 में जब महान क्रांतिकारी स्वर्गीय यतींद्रनाथ दास की मृत्यु के बाद विशेष ट्रेन से अस्थि अवशेषों को लाहौर से कलकत्ता ले जाया जा रहा था तो मुगलसराय स्टेशन पर दर्शन करने पहुंचे शारीरिक रुप से बलिष्ठ युवा विद्याभूषण शुक्ला फिरंगी हुकूमत की नजर में पहली बार चढ़े। लेकिन तब तक वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की केंद्रीय समिति के सदस्य बना लिए गए थे। वे उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी दल के संगठनकर्ता भी थे।
सीवान के महान क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला क्रांतिकारियों की मदद के लिए पूंजीपतियों के यहां सशस्त्र डकैतियां डालने में भी हिचकते नहीं थे। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के अंगरक्षक रहे विश्वनाथ वैशंपायन ने अपनी पुस्तक “अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद” में विद्याभूषण शुक्ला द्वारा गाड़ोदिया डकैती कांड का उल्लेख करते हुए बताया है कि रात्रि करीब 9 बजे जब साथी डकैती के बाद कोठे से उतर रहे थे तब नीचे की दुकान में एक बहुत बलिष्ठ आदमी ने उनलोगों को पकड़ना चाहा किंतु विद्याभूषण के हाथ में चमकता रिवॉल्वर देखकर वहां से दुम दबाकर भाग गया। जिससे सभी साथी वहां से अपने निरापद स्थान पर पहुंच गए। प्रोफेसर एन के निगम की पुस्तक “बलिदान” से भी पता चलता है कि विद्याभूषण शुक्ल इस तरह की क्रांतिकारी गतिविधियों में बहुत ज्यादा संलग्न रहने लगे थे।
सीवान के महान क्रांतिकारी विद्याभूषण शुक्ला पर दिल्ली षड्यंत्र केस और दिल्ली के चांदनी चौक स्थित गाड़ोदिया डकैती कांड के सिलसिले में दोषारोपण था। फिरंगी हुकूमत के गुप्तचर विभाग ने 16 नवंबर, 1930 को दिल्ली षड्यंत्र केस में विद्याभूषण शुक्ल को गिरफ्तार कर लिया था। सीआईडी के सुपरिटेंडेंट मान सिंह ने उन्हें गिरफ्तार किया। हालांकि दिल्ली षड्यंत्र केस सरकार के आदेश से वापस ले लिया गया था। लेकिन फिरंगी हुकूमत उनके क्रांतिकारी कलेवर से दहशत में थी। उन्हें 1918 के रेगुलेशन 3 के अंतर्गत नजरबंद कर लिया गया। बाद में समय समय पर दिल्ली, नैनी, पंजाब के मुज्जफरगढ़ सब जेल में नजरबंद रखा गया था।
दिल्ली असेंबली में विद्याभूषण शुक्ला की अनापराधिता और नजरबंदी को लेकर काफी हो हल्ला मचा। सरकार ने उन्हें मुक्त करने का प्रस्ताव मानकर 16 सितंबर 1935 को मुजफ्फर गढ़ से छपरा कारा भेज दिया। 18 सितंबर 1935 को उन्हें सीवान लाया गया।
फिरंगी हुकूमत उनसे दहशत खाती थी। फिरंगियों को आशंका थी कि वे अतिवादी राष्ट्रीय गतिविधियों में फिर से शामिल हो जायेंगे। इसलिए उनपर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया। सीवान नगरपालिका क्षेत्र से उन्हें बिना सरकारी अनुमति बाहर निकलने पर प्रतिबंध था।उन्हें प्रतिदिन सीवान थाना में हाजिरी लगानी होती थी। नगर के बाहर का कोई भी व्यक्ति उनसे मिलता था तो उन्हें सूचना अंग्रेजी पुलिस को देनी होती थी। नजरबंदी के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह और पूर…
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