सीवान के लाल दानवीर फ़कीर मौलाना मजहरूल हक
सदाकत एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है “सत्य और आश्रम”
मौलाना मज़हरुल हक़ ने इंग्लैंड में ‘अंजुमन-ए-इस्लामिया’ की शुरुआत की
1917 और 1924 में बिहार राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान, उन्होंने पूरे राज्य का दौरा किया
मौलाना मज़हरुल हक को ‘हिंदू-मुस्लिम एकता के पैगम्बर’ की उपाधि मिली
जन्म दिवस पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हम हिन्दू हों या मुसलमान, हम एक ही नाव पर सवार हैं। हम उबरेंगे तो साथ, डूबेंगे तो साथ !- मौलाना मज़हरुल हक
मौलाना मज़हरुल हक का जन्म 22 दिसम्बर 1869 को पटना जिले के मानेर थाना के ब्रह्मपुर में हुआ था। उनके पिता शेख अहमदुल्ली साहब थे, जो एक छोटे-से जमींदार और बहुत भले आदमी थे। वह अपने पिता के इकलौते बेटे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में हुई। वह 1876 में पटना कालिजिएट में दाखिल हुए और 1886 में मैट्रिक पास करके पटना कॉलेज में नाम लिखाया। मगर 1887 में केनिंग कॉलेज में दाखिला लेने के लिए लखनऊ चले गए।
मौलाना साहब के बलिदान और त्याग को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर हिन्दू-मुस्लिम एकता को एक नई ताकत दी थी। वर्तमान समय में प्रदेश कांग्रेस का कार्यालय हक साहब की जमीन थी, जिन्हें उन्होंने दान में दे दी थी। उन्होंने अखंड भारत की कल्पना की थी। जैसे-जैसे भारत में राजनीतिक व क्रांतिकारी गतिविधियां बढ़ने लगी इनका भी रुझान इसमें होने लगा। यह कांग्रेस संगठन से जुड़ गए सक्रिय कार्यकर्ता की तरह इन्होंने कांग्रेस का तन-मन-धन से हमेशा सहयोग किया।
इन्होंने बंगाल से अलग पृथक बिहार के मांग का समर्थन किया एवं 1906 में बिहार कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष चुना गया। गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह में भी डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ मौलाना मजहरूल हक ने भी भाग लिया एवं इसके लिए उन्हें 3 महीने के कारावास की सजा भी हुई थी।
मौलाना मजहरूल हक ने प्रदेश में शिक्षा के अवसरों और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए लंबे अरसे तक संघर्ष किया था। उन्होंने अपनी जन्मभूमी को स्कूल और मदरसे के संचालन के लिए दान दे दी थी. देश की स्वाधीनता और सामाजिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ जनचेतना जगाने का भी प्रयास किया था।
लोकप्रिय राजनेता थे दानवीर मौलाना मजहरूल हक। उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपनी सारी संपत्ति दान कर दी। इन्होंने ही पटना में कांग्रेस मुख्यालय के लिए सदाकत आश्रम बनाने के लिए जमीन दान की थी। बिहार स्कूल आफ इंजीनियरिंग के विद्यार्थी, जिन्होंने असहयोग आंदोलन के जमाने में कॉलेज छोड़ दिया था, एक दिन मौलाना साहब के पास पहुंचे और उनसे कहा कि उनके लिए कोई समुचित व्यवस्था की जाए। हक साहब ऐसे नेताओं में नहीं थे, जो सिर्फ जबानी भाषण देते हैं और कागजी सुझाव देते हैं।
वह सच्चे अर्थों में एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वह केवल कार्य करने पर विश्वास करते थे। उन्होंने फौरन अपनी सजी-सजाई कोठी सिकंदर मंजिल छोड़ दी और उन विद्यार्थियों के साथ पटना-दानापुर रोड पर मजहरुल हक ने स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए दरगाह की 16 बीघा जमीन दान कर दिये। वही दरगाह की एक बाड़ में शरण ली। उन्होंने कुछ झोंपड़ियां खडी की और देखते-ही-देखते एक आश्रम बन गया। इस तरह सिकंदर मंजिल की ठाठ-बाट का जीवन गुजारने वाला व्यक्ति बाग में बनी हुई झोंपड़ी का वासी बन गया। यह मौलाना मजहरुल हक ने इस स्थान का नाम “सदाकत आश्रम” रखा।
सदाकत आश्रम की स्थापना मौलाना मजहरूल हक ने असहयोग आंदोलन के दौरान 1921 में की थी। सदाकत एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है “सत्य और आश्रम”। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 28 फरवरी 1963 को इसी आश्रम में अंतिम सांसे ली थी। मौलाना मजहरूल हक और डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने मिलकर इसका नामकरण किया था। इस आश्रम में स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में आंदोलनात्मक कार्यक्रम की पृष्ठभूमि तैयार की जाती थी।
1900 में मौलाना मजहरूल हक साहब ने सिवान को अपना कर्मभूमि बनाई। वहीं सिवान से करीब 12 किलोमीटर दूर हुसैनगंज प्रखंड के छोटे से गांव फरीदपुर में मौलाना साहब ने अपने लिए एक शानदार घर बनाया था, जिसका नाम उन्होंने आशियाना रखा। आशियाना में 1926 में पंडित मोतीलाल नेहरू, 1927 में सरोजनी नायडू व 1928 में मदन मोहन मालवीय, केएफ नरीमन व मौलाना अबुल कलाम आए थे। मौलाना मजहरूल हक को उनके कार्यों के लिए कौमी एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
आशियाना में 27 दिसंबर 1929 को उन पर पक्षाघात का हमला हुआ और 2 जनवरी 1930 को वह परलोक सिधार गए और अपने मकान के बगीचे के एक कोने में उन्हे दफन किया गया।
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