स्कर्ट की लंबाई, लिपस्टिक की बिक्री, डायपर बदलने में लगने वाले समय से भी मंदी की आहट को सुन लेता है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आप जंगल के भ्रमण पर निकले हैं और आपको यदि कहीं खरगोश फुदकता हुआ दिखाई दे जाता है, तो यह तय है कि उस जंगल में आसपास कहीं कोई हिंसक प्राणी नहीं है। यह एक संकेत है, क्योंकि खरगोश वहीं स्वयं को सुरक्षित समझता है, जहां कोई हिंसक प्राणी नहीं है। इसी तरह जीवन के भी कई संकेतक होते हैं, जिन पर लोगों की नजर होती है।
एक कहावत है- करसे पाणी तप उठे, चिड़िया न्हावे धूर, अंडा ले चींटी चलै, बरखा हे भरपूर। अर्थात जब कलश में रखा पानी अपने आप गर्म होने लगे, चिड़ियां धूल में स्नान करने लगें और चीटियां अपने बिलों से अंडों को लेकर ऊंचे स्थानों की ओर जाने लगें तो समझ लो कि भरपूर बरसात होगी। इसके विपरीत कुछ और संकेत हैं, जो गाहे-बगाहे हमारे सामने आते हैं। जैसे देश में जब मंदी का माहौल होता है, तब कार, ट्रैक्टर, फ्लैट आदि की बिक्री घट जाती है। लोन देने में बैंक छूट देना शुरू कर देते हैं। इस दौरान क्रेडिट कार्ड के बकाए में बढ़ोतरी हो जाती है। सरकार अधिक रोजगार देने की घोषणा करने लगती है।
स्टील के उपयोग में भी कमी देखी जाती है। लोग शापिंग माल में जाकर जरूरी चीजें खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाते, बार-बार पैकेट पर कम से कम रिटेल प्राइज देखकर खरीदने की इच्छा नहीं रखते हैं। बिलिंग के दौरान कई लोग खरीदी हुई चीजों को अलग कर देते हैं। कई चीजें चाहकर भी नहीं लेते।
मंदी के संकेतों को समझने में अमेरिका सबसे आगे है। उसके मापदंड भी अजीब हैं। वह कहता है जब लोग अंडर वियर खरीदना कम कर देते हैं, तब समझ लो कि मंदी आ रही है। इसे अंडर वियर इंडेक्स कहते हैं। इसी तरह शैंपेन इंडेक्स होता है। लोग जब बहुत खुश होते हैं तो शैंपेन की खरीदी बढ़ जाती है। यह तेजी का संकेत है। 1980 में वहां काफी शैंपेन खरीदी गई थी। इसके अलावा वहां लिपस्टिक इंडेक्स भी होता है।
वर्ष 2000 में अमेरिकी महिलाओं ने लिपस्टिक का प्रयोग कम कर दिया था। इससे लिपस्टिक की बिक्री घट गई थी। इसी तरह हेमल इंडेक्स युवतियों के स्कर्ट की लंबाई पर आधारित होता है। जब मंदी आने को होती है, तब महिलाएं अधिक लंबाई की स्कर्ट पहनने लगती हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी अमेरिकी महिलाओं की स्कर्ट की लंबाई बढ़ गई थी। कोरोना काल में भी वहां स्कर्ट की लंबाई बढ़ गई थी। स्कर्ट की लंबाई सरकार तय नहीं करती, पर लोगों की मानसिकता के आधार पर आर्थिक मंदी की पदचाप सुनाई देती है।
इसी तरह वहां डायपर इंडेक्स भी दिलचस्प है। इसमें बच्चे का डायपर बदलते समय पालक अधिक वक्त लगाते हैं। इस दौरान वे इस चिंता में होते हैं कि आर्थिक मंदी उन पर क्या असर डालेगी? जब वे इसका विचार करते हुए डायपर बदलते हैं तो इसमें काफी वक्त लगता है। इस प्रकार हर देश के समाज के अपने-अपने मापदंड और संकेतक हैं।
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