चुनाव सुधार बिल से जुड़ी छोटी-बड़ी जानकारी और विवाद?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज के इस विश्लेषण में बात आपकी और मेरी करेंगे यानी सीधे-सीधे कहे तो हमारी करेंगे। अगर आपकी उम्र भी 18 बरस या उससे अधिक है तो फिर से विश्लेषण विशेषकार आपके लिए ही है। लोकसभा के बाद भारी हंगामे के बीच चुनाव सुधार बिल राज्यसभा से भी पास हो गया। विपक्ष लगातार इस बिल का विरोध कर रहा था लेकिन लोकसभा के बाद राज्यसभा से सरकार ने इसे पास करा दिया। अब इसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया।
विपक्ष को बिल के जिस प्रावधान पर ऐतराज है वो है आधार कार्ड को वोटर आईडी कार्ड से लिंक करने का। इस बिल के मुताबिक मतदाता सूची में दोहराव को रोकने के लिए वोटर आईडी को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रावधान है। हालांकि आधार कार्ड को वोटर आईडी कार्ड से जोड़ना जरूरी नहीं होगा। विपक्ष इस बिल को लेकर कई आरोप लगाता है। तो सरकार इसके फायदे गिनाती है।
देश के लोकतंत्र में आपकी भागीदारी से संबंधित इस कानून पर माननियों ने कितनी बहस की और इसका फायदा कितना हुआ इसका मूल्यांकन आप खुद करें। हम अपने हिस्से की मेहनत आपको ये समझाने में करेंगे की इस कानून का मकसद क्या था? क्या है इस बिल में और इसके लागू होने के बाद चुनावों पर क्या असर होगा। एक आम व्यक्ति यानी आपके और हमारे जैसे लोगों को क्या इस बात का खतरा होना चाहिए कि उसका आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड एक हो रहा है। उसकी जानकारियां सार्वजनिक हो सकती हैं?
1.) नए बिल में क्या है?
आधार कार्ड और वोटर कार्ड को जोड़ना- मौजूदा कानून के हिसाब से आवेदक को वोटर कार्ड बनवाने के लिए निर्वाचन अधिकारी के पास जाना होता है। नई प्रक्रिया के तहत अब रजिस्ट्रेशन अधिकारी आपकी पहचान स्थापित करने के लिए आपका आधार कार्ड मांग सकता है।
निर्वाचन सूची में नाम शामिल करने की तारीख- इस बिल में प्रावधान है कि 18 साल के युवा अब साल में चार बार वोटर के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। एक जनवरी के साथ 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को भी नौजवान खुद को वोटर के रूप में रजिस्टर करा सकेंगे। इसलिए युवाओं के वोटर आईडी कार्ड जल्द बन पाएंगे।
निर्वाचन प्रक्रिया के लिए जगह- चुनावी प्रक्रिया जैसे ईवीएम मशीन, मतदान सामग्री रखने और सुरक्षा बलों के रहने के लिए इस्तेमाल होने वाली जगहें सुनिश्चित करने के लिए तय प्रक्रिया का दायरा बड़ा किया गया
सैन्य मतदाताओं की बराबरी सुधार- चुनाव संबंधी कानून में सैन्य मतदाताओं की बराबरी को लेकर है। अब इसे लिंग निरपेक्ष बनाया जा रहा है। वर्तमान कानून के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका हकदार नहीं है। सैन्य मतदाताओं को पोस्टल बैलेट के जरिए मतदान करने की सुविधा दी जाती है और महिला सैन्यकर्मी के पति अपना वोट नहीं दे पाते हैं।
2.) वोटर कार्ड के आधार से लिंक होने पर क्या होगा?
कितनी दफा आपने देखा या सुना होगा कि कोई व्यक्ति का उसके शहर की वोटर लिस्ट में नाम है और वो लंबे समय से दूसरे शहर में रह रहा है। जिसकी वजह से वो दूसरे शहर की वोटर लिस्ट में भी नाम जुड़वा लेता है। ऐसे में दोनों जगहों पर उसका नाम वोटर लिस्ट में रहता है। आधार से लिंक होते ही एक वोटर का नाम केवल एक ही जगह वोटर लिस्ट में हो सकेगा। यावनी वो एक जगह ही अपना वोट दे पाएगा।
3.) क्या आधार से वोटर आईडी से जोड़ना अनिवार्य होगा?
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ना स्वैच्छिक है क्योंकि संशोधन विधेयक कहता है कि अगर किसी के पास आधार कार्ड नहीं है तो उसे मतदाता सूची में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
4.) क्यों आधार से वोटर आईडी को जोड़ना जरूरी?
फर्जी वोटिंग को रोकने के लिए
वोटर आईडी की डुप्लीकेसी को खत्म करने के लिए
इलेक्शन डेटाबेस को मजबूत करने के लिए
एक की व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर पंजीकरण के झंझट को खत्म करने के लिए
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की दिशा में अहम कदम
प्रवासी मतदाताओं को कही से भी वोट करने का मौका
5.) क्यों की गई सिफारिश
पिछले साल मार्च में पूर्व केंद्रीय कानून मंत्रालय ने संसद को बताया था कि चुनाव आयोग ने आधार डेटाबेस के साथ वोटर लिस्ट को जोड़ने का प्रस्ताव दिया है, ताकि “एक ही व्यक्ति के कई नामांकन के खतरे को रोका जा सके। उन्होंने बताया था कि इसके लिए चुनावी कानूनों में संसोधन की जरूरत होगी। अगस्त 2019 में चुनाव आयोग ने एक प्रस्ताव भेजा था
जिसमें जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और आधार अधिनियम में संशोधन के लिए प्रस्ताव लाने की मांग की गई थी। आयोग का कहना था कि इससे वोटर लिस्ट में होने वाली गड़बड़ियों से बचा जा सकेगा। कहा जाता है कि पोल पैनल ने दावा किया था कि उसके द्वारा संचालित पायलट परियोजनाओं के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जिसमें दोहराव को खत्म करने और मतदाता सूची को मजबूत करने के कदम हैं।
6.) वोटर आईडी-आधार लिंक को लेकर क्या हैं मुद्दे?
आधार नंबर को वोटर आईडी से जोड़ने के लिए चुनाव आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल लॉ प्यूरीफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम भी शुरू किया था। आयोग ने कहा कि लिंक करने से एक व्यक्ति के नाम पर कई नामांकन खत्म हो जाएंगे।
स्थायी समिति ने कहा कि उस थोड़े समय के दौरान, ECI लगभग 32 करोड़ मतदाताओं द्वारा स्वेच्छा से जमा किए गए आधार नंबरों को एकत्र और फीड कर सकता था। उस समय, इस प्रोग्राम को रोक दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वेल्फेयर योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार का उपयोग वैकल्पिक रहेगा। इसके बाद चुनाव आयोग ने अपने प्रस्ताव में संशोधन किया और कहा कि लिंकिंग वैकल्पिक होगी।
इस फैसले से एक साल पहले 24 अगस्त 2017 को जस्टिस पुट्टास्वामी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसला ये भी सुनाया था कि राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy) यानी निजता का अधिकार, एक मौलिक अधिकार है। यानी उस फैसले के बाद अब लोगों की मर्जी के बगैर उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। तत्कालीन कानून मंत्री ने 2020 में संसद को बताया था कि चुनाव आयोग ने कहा था कि उसने मतदाता सूची डेटा प्लेटफॉर्म की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
7.) 2015 में भी शुरू किया था वोटर ID को आधार से जोड़ने का काम
चुनाव आयोग ने 2015 में अपने राष्ट्रीय मतदाता सूची शोधन और प्रमाणीकरण कार्यक्रम (NERPAP) के हिस्से के रूप में मतदाता कार्ड और आधार संख्या को जोड़ने का काम शुरू किया था। बाद में चुनाव आयोग ने आधार के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए कार्यक्रम को छोड़ने का फैसला किया था। 2012 में हरि शंकर ब्रह्मा ने वोटर आईडी कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव दिया था ताकि डुप्लीकेट और नकली वोटर कार्ड को हटाया जा सके।
8.) विपक्ष को क्यों ऐतराज
विपक्ष का कहना है कि आधार कार्ड को निवास स्थान के प्रूफ के तौर पर लाया गया था ना कि नागरिकता पहचान पत्र के रूप में। अगर आप एक वोटर से आधार कार्ड के बारे में पूछ रहे हैं तो इसमें आपको सिर्फ वोटर के निवास स्थान की जानकारी मिलेगी। इस तरीके से आप उन्हें भी मताधिकार दे रहे हैं जो इस वक्त देश के निवासी नहीं हैं। लोकसभा में विपक्ष ने इस बिल का जबरदस्त विरोध किया।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, बीएसपी जैसे दलों ने इस पर ऐतराज जताया जबकि कांग्रेस ने तो इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की। ओवैसी ने केएस पुट्टुस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए इस बिल को निजता के मूल अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह ऐसा बिल है जिससे पूरा लोकतंत्र खत्म हो गया है। इस बिल पर चर्चा की जरूरत है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने इसकी जरूरत पर सवाल उठाए।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, “आधार का मतलब केवल निवास का प्रमाण होना था, ये नागरिकता का प्रमाण नहीं है। अगर आप वोटर्स के लिए आधार मांगने की स्थिति में हैं, तो आपको केवल एक दस्तावेज मिल रहा है, जो नागरिकता नहीं, बल्कि निवास दर्शाता है. आप संभावित रूप से गैर-नागरिकों को वोट दे रहे हैं।
9.) क्या विपक्ष कर रहा राजनीति
अंग्रेजी अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग की तरफ से 27 अगस्त 2018 को चुनाव सुधारों पर चर्चा के लिए राजनीतिक दलों के साथ बैठक की थी। उस बैठक के बाद चुनाव आयोग ने जो बयान जारी किया था उसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से बेहतर मतदाता सूची प्रबंधन के लिए आधार संख्या को मतदाताओं के विवरण से जोड़ने का आग्रह किया।
विधानसभा चुनावों से पहले, अप्रैल 2018 में मध्य प्रदेश कांग्रेस ने भी मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ बैठक में, फर्जी वोटरों के बारे में बताते हुए मतदाताओं की सूची को फिर से वैरिफाई करने की मांग की थी।
10.) क्या आधार और वोटर ID को आपस में लिंक किया जा सकता है?
चुनाव आयोग के वोटर पोर्टल पर वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ज को लिंक करने का ऑप्शन उपलब्ध है। इसके लिए voterportal.eci.gov.in वेबसाइठ पर अपने फोन नंबर/ईमेल आईडी/वोटर ID नंबप से लॉगिन करना होगा। इसके बाद प्रक्रिया के तहत वोटर ID को आधार से लिंक किया जा सकता है।
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