Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
तो क्या भारत अगले 49 सालों में बंद कर देगा पेट्रोलियम उत्‍पादों के साथ कोयले का उपयोग? - श्रीनारद मीडिया

तो क्या भारत अगले 49 सालों में बंद कर देगा पेट्रोलियम उत्‍पादों के साथ कोयले का उपयोग?

तो क्या भारत अगले 49 सालों में बंद कर देगा पेट्रोलियम उत्‍पादों के साथ कोयले का उपयोग?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जलवायु परिवर्तन रोकने के उद्देश्य से ग्लासगो में आयोजित सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह साहसिक कदम उठाने की घोषणा की, उससे भारत एक ऐसे देश के रूप में उभर आया, जो पर्यावरण रक्षा के मामले में अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के लिए संकल्पबद्ध है। भारतीय प्रधानमंत्री ने न केवल 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन उत्सर्जन की हिस्सेदारी 45 फीसद कम करने और स्वच्छ ऊर्जा स्नोतों से पांच लाख मेगावट बिजली का उत्पादन करने की घोषणा की, बल्कि 2070 तक भारत का कुल उत्सर्जन शून्य करने की भी प्रतिबद्धता जताई।

यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पूरा करने का मतलब है कि अगले 49 वर्षों में भारत पेट्रोलियम उत्पादों और कोयला जैसे प्रदूषणकारी ऊर्जा संसाधनों का उपयोग बंद कर देगा। यह एक कठिन काम है, लेकिन इसे अपने हाथ में लेने की घोषणा कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने को तैयार है।

उनकी यह घोषणा अन्य देशों और विशेषरूप से विकसित एवं विकासशील देशों को उनकी जिम्मदारी का आभास कराने वाली और साथ ही उन्हें सीख देने वाली भी है। इसलिए और भी, क्योंकि भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन कुल उत्सर्जन में उसकी हिस्सेदारी महज पांच प्रतिशत है। यदि इसके बाद भी भारत अपने लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य रख सकता है तो विकसित देश ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

भारत के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन में कहीं अधिक हिस्सेदारी रखने वाले देशों के लिए न केवल यह आवश्यक है कि वे अपने-अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आगे आएं, बल्कि यह भी कि पर्यावरण अनुकूल तकनीक के हस्तांतरण के साथ वित्तीय सहायता देने में भी उदारता का परिचय दें। यह विचित्र है कि वे ऐसा करने में आनाकानी कर रहे और फिर भी भारत से यह अपेक्षा कर रहे कि वह शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य 2050 तक ही हासिल करे। यह अपेक्षा न केवल अनुचित है, बल्कि भारत की उस जनता के खिलाफ भी, जिसे अभी गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालना है।

यह तभी संभव होगा, जब भारत तेज गति से विकास करेगा। ऐसा विकास अधिक ऊर्जा की मांग करता है। यदि विकसित देश यह चाहते हैं कि भारत स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों का इस्तेमाल करे तो उन्हें उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें भारत की मदद इसलिए खासतौर पर करनी चाहिए, क्योंकि वही पेरिस समझौते के तहत किए गए वादों को पूरा करने में ईमानदारी से जुटा है। अब जब यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने में देर हो गई है, तब फिर हीलाहवाली करने का कोई मतलब नहीं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!