सोशल मीडिया की साजिश ने भाजपा के पचास सीट कम किए
स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी पड़ी भारी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अबकी बार 400 पार का सपना संजोए चल रही भारतीय जनता पार्टी ने कुछ ऐसे तथ्यों की भरपूर अनदेखी कि जो उसे स्वयं के स्तर पर बहुमत के आंकड़े से दूर करने में कामयाब रहे। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सोशल मीडिया के कुछ मठाधीशों की बड़ी भूमिका रही। सोशल मीडिया के इन मठाधीशों ने अपनी जबरदस्त प्रसार संख्या का उपयोग करके एंटी बीजेपी माहौल को बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जुड़ी सोशल मीडिया को तवज्जो ही नहीं दिया गया। साथ ही कुछ भाजपा के प्रत्याशियों द्वारा जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया गया। अनुमानतः इसके कारण भाजपा को तकरीबन 50 सीटों पर मात खानी पड़ी।
देश विदेश में बैठे दर्जनों विचारकों और धनपतियों ने आपके दस वर्षों के शासन के विरुद्ध रवीश कुमार, ध्रुव राठी, अभिसार शर्मा, अजीत अंजुम, बरखा दत्त, करण थापर, पुण्य प्रसून बाजपेयी, दीपक शर्मा, दी प्रिंट, वायर जैसे सोशल ब्लॉगर को खड़ा करके भाजपा की 50 सीटों को कम कर दिया। इस मुद्दे पर भाजपा ने ध्यान नहीं दिया। कस्बों के नुक्कड़ पर इन विरोधियों की वीडियो चलाकर युवाओं को भ्रमित किया गया। इसका तोड़ भाजपा के पास नहीं था।
भाजपा की अपनी विचारधारा वाली मीडिया को स्थानीय प्रशासन भाव नहीं देता, उन्हें प्रशासन से जुड़ी बैठकों, आगमन एवं योजना की जानकारी साझा नहीं करता। तर्क दिया जाता है कि आप प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार नहीं है। वह मन मसोड़ कर समय का इंतजार करता है। आप सोशल मीडिया का गला घोंट रहे है। आप उक्त महानुभावों का जवाब ढूंढने वालों को पनपना नहीं देना चाहते।
सौ बात की एक बात है कि आपने केरल में खाता खोली, कर्नाटक में साख बचाई, उड़ीसा में धमाल किया और मध्य प्रदेश में जीत की प्रतिष्ठा स्थापित किया। जबकि पंजाब में एक, लद्दाख में एक, राजस्थान में 10, उत्तर प्रदेश में 30, हरियाणा में पांच, महाराष्ट्र में 13, पश्चिम बंगाल में 6, बिहार में पांच, झारखंड में तीन, कर्नाटक में आठ, चंडीगढ़,गुजरात और गोवा जैसे राज्यों में अपने एक-एक सीट गवांई है।
बिहार में वर्षों से कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं की इतनी उपेक्षा हुई कि वह दूसरे संगठन में चले गए या निष्क्रिय हो गए। नाम ऊपर से थोपने की प्रक्रिया ने कार्यकर्ताओं को पैदा नहीं किया बल्कि अपने कई कार्यकर्ता टूट गए। केवल प्रदेश द्वारा निर्देशित किए गए कार्यक्रम ही किए जाते हैं, वह भी कार्यक्रम के नाम पर खानापूर्ति होती है। आप अपने सांगठनिक विस्तार के लिए स्थानीय स्तर पर कुछ नहीं करते। इस पर मंथन होना आवश्यक है क्योंकि जिस स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया उसके पीए सहायक किशोरी लाल शर्मा से आप लाखों वोटों से हार गई। यह इस बात का प्रमाण है कि आपकी रणनीति में बहुत भारी चूक है।
भारतीय जनता पार्टी में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा हो गया है जो मूल विचार के कार्यकर्ताओं का उपहास करता है। कहता है कि अरे इनका यही काम है, वह कहां जाएंगे, झोला उठाकर प्रवास पर चल दिए। सिटिंग, मीटिंग और ईटिंग यही इनका काम है। इससे थोड़े ना चुनाव जीता जाता है, उसके लिए तो साम-दाम-दंड-भेद-अर्थ सब तरह की रणनीति चाहिए। जिसका परिणाम यह है कि आप 303 से गिरते हुए 240 पर आ गए है। ऐसे में सोशल मीडिया पर जो नौटंकी हो रही है उसका तोड़ जल्द से जल्द निकलना पड़ेगा, क्योंकि इनकी पहुंच एवं कमाई लाखों में है। सोशल मीडिया को स्थानीय स्तर पर तरजीह देनी होगी।
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