स्वविवेक और बदलाव से सशक्त होता समाज,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
किसी राष्ट्र की सफलता और समृद्धि में समरसता, सद्भाव और स्वविवेक के प्रयोग की प्रवृत्ति वाले समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब स्वतंत्रता मिली तो हम पुरातन सोच, रूढ़िवादिता में किसी हद तक जकड़े थे, लेकिन बीते सात दशक से अधिक के समय में समाज ने बहुत सुखद बदलाव देखे हैं। जाति के बंधनों से निकलकर अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों, प्रांतों के होकर भी भारतीयता की भावना को कायम रख हमने तमाम आशंकाओं को निर्मूल साबित किया है।
नये सोच के परिचायक बनते अंतरजातीय विवाह
- भारत में बीते कुछ वर्षों में अंतरजातीय विवाह की संख्या और स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है
- 1970 और 2010 के बीच प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित 10,000 से अधिक वैवाहिक विज्ञापनों के अध्ययन के अनुसार, समजातीय विवाह की मांग में बड़ी कमी देखी गई
- 1970-80 के कालखंड में समजातीय विवाह का प्रतिशत 30 था जो 2000 से 2010 की अवधि में 19 प्रतिशत रह गया
- एक सर्वे के अनुसार वर की मां की शिक्षा के स्तर से अंतरजातीय विवाह की संभावना करीब 36 प्रतिशत बढ़ जाती है
बदलते अफसर, बदलता तरीका
- समाज का संचालन करने के लिए सरकार द्वारा प्रशासनिक अमले की तैनाती की जाती है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष में अफसरों का सोच और तरीका भी धीरे-धीरे बदला है
- कभी लाट साहब वाली छवि थी। अब तहसील दिवस जैसे कार्यक्रमों से शिकायतों का निबटारा किया जाता है
- अधिकारियों को गांवों में रात्रि कैंप को कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के एक युवा भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी ने तो बाकायदा बस तैयार कराई है जिससे पूरा प्रशासनिक अमला गांव में ही ग्रामीणों की समस्याएं सुलझाता है
- तकनीक ने भी समाज में बहुत कुछ बदला है। कभी जहां टीवी भी नहीं था, वहां अब मोबाइल पर इंटरनेट है और कंप्यूटर भी सर्वसुलभ हैं। नतीजा, लोगों के काम तेजी से बन रहे हैं सेवाएं एप आधरित हो गई हैं। तकनीक की सहायता से डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से भ्रष्टाचार पर नकेल कसी गई है
नारी सशक्तीकरण
- सरकारी सुविधाओं और योजनाओं ने नारी शक्ति को मजबूत किया है। कामकाजी महिलाओं के छात्रावास, पेड मैटरनिटी लीव और बच्चों की देखभाल के लिए शिशु केंद्र (क्रेच) ने तस्वीर सुंदर की है
- 2011 जनसंख्या के अनुसार शहरो में 25 और गांवोंम में 89 प्रतिशत से अधिक महिलाएं कामकाजी हैं
चुनौतियां और लक्ष्य
- दंगों की संख्या घटी है, लेकिन पुलिस सुधार से आंतरिक सुरक्षा को और सुदृढ़ करना होगा
- सामाजिक समरसता के लिए नागरिकों को लगातार सचेत और प्रेरित करने के प्रयास जरूरी हैं
- विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में समन्वय की संस्कृति का प्रचार प्रसार हो
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