चैत्र नवरात्रि से एक दिन पहले लगेगा सूर्य ग्रहण

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण की घटना बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। मान्यता है कि इस खगोलीय घटना का प्रभाव जनमानस पर भी पड़ता है। दृक पंचांग के अनुसार, इस साल 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है। इससे ठीक 1 दिन पहले यानी 8 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। ज्योतिष में सूतक काल से लेकर ग्रहण तक शुभ कार्यों की मनाही होती है। इस दौरान कुछ कार्यों के अशुभ परिणाम भी मिल सकते हैं। 8 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इसलिए सूतक काल भी मान्य नहीं होगी। लेकिन ग्रहणकाल के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को शतभिषा नक्षत्र का एक साथ योग होने पर एक अत्यंत महान और पावन योग बनता है जिसको वारुणी पर्व के नाम से जानते हैं। माह, नक्षत्र, दिन और योग के द्वारा अलग अलग यह तीन प्रकार से बनता है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को शतभिषा नक्षत्र होने के कारण वारुणी योग बनता है।

। शतभिषा नक्षत्र होने के कारण यह महान पर्व प्राप्त हुआ है। इस पर्व में जो भी भक्त गंगा स्नान करते हैं उनके तीन करोड़ पीढ़ी का उद्धार हो जाता है। वहीं एक करोड़ सूर्य ग्रहण में स्नान करने का पुण्य फल प्राप्त होता है। वारुणी पर्व के मुहूर्त और महत्त्व के विषय में उन्होंने बताया कि वारुणी योग एक अत्यंत ही शुभ एवं उत्तम गति प्रदान करने वाला समय होता है।

यह अत्यंत पावन शुभ मुहूर्त भी है जो अबूझ मुहूर्त में भी गिना जाता है। इस योग के प्रत्येक क्षण पवित्रता से भरपूर और शुभ दायक माना गया है। धर्म सिंधु, काशी आदि ग्रंथों में भी इस पर्व का वर्णन देखने को मिलता है। इस दिन पवित्र नदियों में किया गया स्नान, दान एवं श्राद्ध कार्य अक्षय फल देने वाला होता है। मान्यताओं के अनुसार सृष्टि चक्र अपने शुभ स्तर पर होता है। इसलिए इसे देवताओं के लिए भी असाध्य और कठिन बताया गया है क्योंकि उन्हें भी इस स्नान का फल लेने के लिए पृथ्वी पर आना पड़ता है।

गंगा जल करें स्नान फिर दान

वारुणी योग में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी, घाट या सरोवर इत्यादि में स्नान करना चाहिए। यदि संभव नही हो तो घर पर ही स्नान वाले जल में गंगा जल मिलाकर समस्त नक्षत्रों को स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए। उसके बाद भगवान शिव और विष्णु का पूजन करना चाहिए। तुलसी के समक्ष दीपक जलाकर धार्मिक ग्रंथों गीता, भागवत, रामायण इत्यादि का पाठ करना चाहिए। साथ ही इस दिन व्रत करके रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करने की परंपरा भी है। दीप दान, हवन, यज्ञ और विभिन्न अनुष्ठान आदि करने से पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किए जाने वाला अन्न, धन और वस्त्र दान का शुभता देने वाला है।

अन्न-जल न ग्रहण करें : सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन या पानी का सेवन करने से बचना चाहिए। सूतक काल शुरू होने से पहले ही पके हुए खाने में तुलसी का पत्ता डाल दें।

शुभ कार्यों की न करें शुरुआत : सूर्यग्रहण के दौरान ब्राह्मांड में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।

बालों में कंघी न करें : मान्यता है कि ग्रहण काल के दौरान बालों में कंघी नहीं करना चाहि और न ही नाखून काटना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं रखें खास ध्यान : ग्रहण के दौरान प्रेग्नेंट लेडीज को अपना खास ख्याल रखना चाहिए। इस दौरान सुई, चाकू समेत किसी भी नुकीली वस्तु का स्पर्श न करें। साथ ही यात्रा करने से बचें।

इन पौधों को न करें स्पर्श : मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान पीपल और तुलसी का पेड़ नहीं स्पर्श करना चाहिए और न ही इस समय तुलसी का पत्ता तोड़ना चाहिए।

पूजा-पाठ न करें : सूर्य ग्रहण के समय देवी-देवताओं को स्पर्श नहीं करना चाहिए और न ही पूजा करना चाहिए। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

सूर्य ग्रहण में क्या करें?

इस दौरान पानी और पके हुए भोजन में तुलसी का पत्ता डाल दें।
सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद सबसे पहले पानी में तुलसी का पत्ता डालकर स्नान करें।
सूर्य ग्रहण के बाद अन्न, धन, दूध, दही, शक्कर और कपड़े दान कर सकते हैं।
ग्रहण समाप्त होने के बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करें।

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