आपके आस पास भी दिख जायेगा कोई विकास, प्लीज उसके दिए ले लीजिए!

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सनातनी परंपरा में सामाजिकता का संदर्भ ही त्योहारों के उमंग को बढ़ाता है

हमारा छोटा सा प्रयास कई परिवारों में भी त्योहारी उमंग ला देगा

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुबह सुबह की नींद बेहद मधुर होती है। भैया जी, दिए ले लीजिए, की आवाज ने मुझे उठाया। आंखों को मीजतें मैं बाहर निकला। लुहसी कलां गांव का विकास दिए लाया था। वह दिए तो हर साल लाता रहा है। साथ में, उसके दादाजी भी आते थे। लेकिन इस बार वह अकेले ही दिख रहा था। मैंने पूछा, इस बार अकेले तुम्हारे दादा जी नहीं आए। उसने बेहद मायूस होकर जवाब दिया कि दादा अब कभी नहीं आयेंगे। उसकी मायूसी ने उसके उत्तर को समझा दिया था। इसलिए मैंने ज्यादा कुछ नहीं पूछा।

दिए की गिनती करते वक्त उसकी व्यथा उभर आई और बोला सर, अब सब लोग बिजली वाला झालर लगा रहे हैं। आप जैसे कुछ लोग ही दिए ढेर सारा खरीदते हैं। पहले तो जब दादा के साथ दिए लेकर आते थे तो अच्छी संख्या में दिए बिक जाते थे। हमारी दिवाली भी शानदार ढंग से मन जाती थी। लेकिन अब… उसका मौन होना उसकी व्यथा को दर्शा रहा था।

हमारे सनातनी परंपरा में त्योहारों में सामाजिकता के भाव को संजोने के हर जतन दिखते हैं। हर संस्कार कर्म में हमारे समाज के हर अंग को सहेजने की परंपरा प्राचीनकाल से चलती आ रही है। लेकिन आज के उपभोक्तावाद के दौर में तार्किक मान्यताओं और आर्थिक संदर्भ हमारे त्योहारों के सामाजिक आयाम को तोड़ते नजर आते हैं।

गांव में मौजूद कुम्हार परिवार सालोभर इस आस में रहते हैं कि दीवाली पर दियों की बिक्री से कुछ खुशहाली उनके घर भी आ जायेगी। पहले शादी और अन्य पारिवारिक आयोजनों पर कुल्हड़ की भारी मांग होती थी लेकिन आज के दौर में कुछ दिन पहले प्लास्टिक और अब कागज के गिलास जरूरत को पूरी कर दे रहे हैं। इससे कुम्हार परिवारों की आय घटी है। परिणाम स्वरूप कई कुम्हार परिवार परंपरागत पेशे को छोड़ कर जीविको पार्जन के लिए अन्य उपायों पर परिश्रम कर रहे हैं। लेकिन कुल्हड़ के पानी और चाय का स्वाद, जिन्हें याद है वह याद आज भी आनंद दे जाती है।

मिट्टी के दियों का धार्मिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण रहा है। पंचभूतों से सृष्टि को सृजित माना जाता रहा है। इन्हीं पंच भूतों से दिए का निर्माण भी होता है। जल, मिट्टी, वायु, आकाश, अग्नि से निर्मित दीपक का प्रज्जवलन जिंदगी में सुख समृद्धि को लानेवाला माना जाता रहा है।

एक अन्य धार्मिक मान्यता यह भी रही है कि मिट्टी को मंगल का प्रतीक माना जाता है और सरसों के तेल को शनि का। माना जाता रहा है कि यदि मिट्टी के दिए में सरसो के तेल का दीपक जलेगा, तो मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होगी।

वास्तु शास्त्र बताता है कि अखंड दीपक जलाने से घर के वास्तु दोष समाप्त होते हैं। एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार दीपक जलाकर माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। दीपक रातभर जलाकर माता लक्ष्मी को आमंत्रित किया जाता है ताकि घर परिवार में सुख समृद्धि बरकरार रह सके।

दीपक के धार्मिक और सांस्कृतिक महता से परिचित हम सभी है फिर भी जलाएंगे बिजली के झालर ही। हम तैयार नहीं हो तो बच्चों के दवाब के सामने झुकना तो पड़ेगा ही। क्यों नहीं हम बच्चों को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की बात समझा पाते हैं? क्यों नहीं हम मिट्टी के दियों के महत्व पर मंथन कर पाते हैं? क्यों नहीं हम दियों के सामाजिकता के संदर्भ पर विचार करते हैं? क्यों नहीं हम विकास जैसे कुम्हार परिवारों के सहयोग के संदर्भ में कुछ कर पाते हैं?

हमारा हर सनातनी त्योहार सामाजिकता का संदेश देता है। हमारी हर सनातनी परंपरा खुशहाली का संदेश देती है। हम खुश होना चाहते हैं तो हमारा समाज भी खुश रहे इस बात का ध्यान तो कम से कम रख सके। विकास से खरीदे दिए केवल हमारे घर को रौशन ही नहीं करेंगे। विकास जैसे कुम्हार परिवार के घर में भी उत्सव की उमंग को सजाएंगे। इसलिए आपके आस पास विकास दिखे तो दिए जरूर खरीदें। दिवाली का उत्सव हम सबका है। उत्सव का उमंग भी हम सबका है।

शुभ दीपावली

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