किसी को मिट्टी देनी थी, तो किसी को देखना था मिट्टी में मिलते
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दो दृश्य थे, दो तस्वीरें थीं, दो चेहरे, दो सोच और दो बातें थीं मुहम्मदाबाद यूसुफपुर के उस कालीबाग के कब्रिस्तान में जहां माफिया मुख्तार अंसारी सदा के लिए दफन कर दिया गया। उमड़ी भीड़ में दो तरह के लोग भी थे। किसी को मिट्टी देनी थी तो किसी को उस माफिया को मिट्टी में मिलते देखना था जिसकी जरायम की दुनिया में तूती बोलती थी। किसी को माफिया की कचोट थी तो किसी को मसीहा शब्द चुभ रहा था।
कस्बा निवासी जलील को मुख्तार पिता की तरह प्यारे थे तो कठवां मोड़ से पहुंचे करीब दो दर्जन लोगों के समूह को यह देखना था कि अपराध की इंतिहा पार करने वाला वाला माफिया मिट्टी में कैसे मिलता है। उमड़ी भीड़ में उस वर्ग की संख्या सर्वाधिक थी जो उन्हें माफिया कहने से भले चिढ़ती हो, लेकिन मुख्तार में रॉबिन हुड की छवि दिखती रही, कट्टरता वाली छवि उन्हें भाती रही है। दूसरे वह तबका भी रहा जो कभी न कभी किसी न किसी रूप में मुख्तार से उपकृत रहा हो।
किसी के लिए था मसीहा, तो किसी के लिए आताताई
मुहम्मदाबाद की रामदुलारी बेटी के साथ इसलिए पहुंची थी कि कभी मुख्तार ने उसकी मदद की थी। रामदुलारी का कहना रहा कि दो बेटियों की शादी में पांच-पांच हजार रुपये की मदद इस परिवार से हुई है। इसे कैसे भूल सकती हूं। आगे कहा कि वह तो गरीबों के मसीहा थे।
कासिमाबाद निवासी राजेश की नजर में उसकी पहचान एक आताताई से अधिक कुछ नहीं। राजेश ने कहा कि जिसने मानवता कुचलने में संकोच नहीं किया, जिसके रग-रग कानून को चोट पहंचाने वाले हों, मनवता को बेधने का काम किया हो वह किसी का हितैषी कैसे हो सकता है।
हमेशा नाम सुना था इसलिए…
हालांकि अष्ट शहीद इंटर कॉलेज में कक्षा 12 के छात्र अदीलाबाद निवासी अरुण कुमार इन दोनों विचारों से परे होकर साथियों संग पहुंचे थे। अरुण ने कहा कि मुझे नहीं पता कि आखिर उनका कौन सा रूप वास्तविक रहा, लेकिन सच्चाई है कि सदा से उनका नाम सुनता आया, लिहाजा जिज्ञासा हुई कि पहुंचना चाहिए, देखना चाहिए कि आखिर वह कैसा रहा। मुहम्मदाबाद कस्बा निवासी वीरेंद्र मौर्य की नजर में वह लोगों के मददगार थे।
न सुन पाए माफिया न कह सके मसीहा
परिवार के लोगों को एतराज था मीडिया के माफिया कहे-लिखे जाने वाले शब्द से तो इसी सवाल पर सपा के पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी तो आपा ही खो दिए। ‘आपकी नजर में मुख्तार माफिया या मसीहा’ के प्रश्न पर चैनल के पत्रकार की ओर बढ़े उनके हाथ माइक तक जा पहुंचे। कैमरा आन था, लिहाजा मौके की नजाकत को भांपने में देर न लगी और बोले कि आप को खुद समझना चाहिए कि इतनी भीड़ जुटी है जनाजे में तो उसे क्या कहना चाहिए। हालांकि तमाम कोशिश के बाद भी न वह माफिया कह पाए न ही मसीहा।
हार्ट अटैक से मौत की खबर पर रही आपत्ति
उधर, मुहम्मदाबाद से विधायक भतीजे सुहेब अंसारी को इस बात पर घोर आपत्ति रही कि मीडिया हार्ट अटैक से मौत की खबर चला रहा है, जबकि मौत का कारण जहर है। समर्थकों के निशाने पर मीडिया इसलिए भी रहा कि मुख्तार के प्रति आदर सूचक शब्द का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इसे लेकर कई बार असहजता की भी स्थिति बनी।
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