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कभी घनिघना, कभी मुट्ठी भर चना तो कभी वह भी मना

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श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / जी हाँ! कुछ ऐसा ही सिलसिला बन चुका है काली घटाओं का। सावन में तरसाने के बाद भादो में झूम के तो बरस रहे बादल। मग़र सभी जगह पर नहीं। माने कि बादल भी भेदभाव कर रहे हैं। जैसे कलयुग के विकारों को चरितार्थ कर रहे हो। कुछ इलाकों में ऐसे झूम के बरसते हैं बदरा कि सड़कें ताल-तलैया बन जा रही हैं। तो दूसरी ओर के इलाको में या तो एकदम सूखा या फिर कुछ बूंद छिड़क कर शांत हो जा रहे हैं।

रविवार को भी यही हाल रहा।मध्याह्न के बाद पहले तो तेज़ ठंडी हवाओं ने भीषण उमस से राहत देते हुए सुखद एहसास दिलाया फिर तेज़ हवाओं के साथ मैदानी, ग्रामीण व शहर के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश होने लगी। जिससे लोगों के रोम-कुपेसू खिल गए। ग्रामीण क्षेत्र में बारिश से किसानों के चेहरे खिल गए। क्योंकि यह बारिश धान की खेती के लिए फायदेमंद है। वहीं सब्जी उगाने वालों के चेहरे मुरझाए रहे क्योंकि यह बारिश मौसमी सब्जियों के लिए नुकसानदेह है। वहीं कुछ इलाकों में बूंदाबांदी करके ही बादल ठिठक गए। जिससे लोगों को घोर निराशा हुई।

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