*विश्व जल दिवस पर विशेष “हे गंगा तुम बहती हो क्यों”*
*श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी*
*वाराणसी* / देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकार एवं कवि भूपेन हजारिका ने गंगा पर जब यह लाइन लिखी होगी तब आप कल्पना कीजिए उनके दिल में गंगा के प्रति कितना दर्द होगा जब उन्होंने यह कविता आज से 35 वर्ष पूर्व लिखा था और तब से अब तक में गंगा कितनी प्रदूषित हो गई है यह कल्पना करने से ही मन मे सिरहन हो जती है। राजा भागीरथ अपने पूर्वजों को तारने के लिए कठिन तपस्या करने के बाद मां गंगा को धरती पर लेकर आये, वह भी मां गंगा सीधे धरती पर ना आकर भगवान शिव के जटा से होते हुए हैं धरती पर आयी। भागीरथ ने अपने पूर्वजों को तो तार दिया लेकिन मां गंगा इस पाप पुण्य के चक्रव्यूह में फस कर रह गई । तब से लेकर मां गंगा सबको कार ही रही है लेकिन खुद प्रदूषित हो कर अंतिम सांसे गिन रही है । तब से लेकर अब तक गंगा की सफाई को लेकर बहुत ही योजनाएं बनी। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान बनाया और इसकी शुरुआत 1984 में काशी के राजेंद्र प्रसाद घाट से की उसके बाद से लगभग 45 वर्ष से अधिक हो गया इस बीच राजीव गांधी की सरकार, नरसिम्हा राव की सरकार,अटल बिहारी वाजपेई की सरकार, 10 साल मनमोहन सिंह की सरकार और वर्तमान में मोदी की सरकार ने गंगा के सफाई के नाम पर खूब लंबा चौड़ा कार्य करने का दावा किया लेकिन गंगा आज भी जस की तस है क्या कारण है कि गंगा प्रदूषण मुक्त हो नहीं रही है । आज गंगा की स्थिति अत्यंत ही खराब है। मां गंगा को लेकर कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है, मां गंगा को लेकर सिर्फ पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने एक गंभीर प्रयास किया जब अंग्रेज हरिद्वार के पास मां गंगा पर बांध बना रहे थे तो उन्होंने लंबी लड़ाई लड़के अंग्रेजों को काम करने नहीं दिया। उसके बाद किसी भी राजनीतिक दल, समाजसेवी या देश के किसी भी आम नागरिक ने मां गंगा के प्रति गंभीरता से नहीं सोचा हम मां गंगा को मात्र अपना पाप धोने का साधन मान बैठे। गंगा से हमें बिजली भी चाहिए, गंगा से हमें पुण्य भी चाहिए, गंगा से हमें खेती-बाड़ी के लिए पानी भी चाहिए, लेकिन हमारा मां गंगा के प्रति कोई दायित्व नहीं है । मां गंगा के प्रति जो श्रद्धा दिखाई जा रही है क्या यह श्रद्धा मात्र चुनाव तक ही सीमित रह जाएगी । राजनीतिक दल के लोग कब यह समझेंगे कि गंगा मात्र एक नदी नहीं है यह देश के लोगों की जीवन रेखा है अगर मां गंगा नहीं बची तो जीवन की कल्पना भी करना कठिन है। हम इन्हें मात्र राजनीतिक फायदा के लिए इस्तेमाल ना करें बल्कि यह माने की मेरी मां है आखिर क्यों गंगा नदी को मां की संज्ञा दी गई कभी इस बात को राजनीतिक दल के लोग बैठकर गंभीरता से सोचे मां गंगा को सिर्फ अपने सत्ता के लिए साधन ना बनाएं।