22 नवम्बर ?  वीर शिरोमणि ‘दुर्गादास राठौड़’ // पुण्यतिथि  पर विशेष

22 नवम्बर ?  वीर शिरोमणि ‘दुर्गादास राठौड़’ // पुण्यतिथि  पर विशेष

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ का नाम मेवाड़ ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण हिन्दुस्तान के इतिहास में त्याग, बलिदान, देश-भक्ति व स्वामिभक्ति के लिये स्वर्ण अक्षरों में अमर है। आगरा में ताजमहल के निकट पुरानी मंडी चौराहे पर वीर दुर्गादास राठौड़ की घोड़े पर सवार प्रतिमा स्थापित है।

मारवाड़ की स्वतन्त्रता के लिये वर्षों तक संघर्ष करने वाले वीर पुरुष दुर्गा दास राठौड़ का जन्म जोधपुर के एक छोटे से गाँव सलवां कलां में आसकरन जी राठौड़ के घर 13 अगस्त, सन् 1638 (श्रावण शुक्ला चतुर्दशी सम्वत् 1695) में हुआ था।

इनके पिता आसकरन जी जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह की सेना में थे। अपने पिता की भाँति बालक दुर्गादास में भी वीरता के गुण कूट-कूट कर भरे थे।

एक बार जोधपुर राज्य की सेना के कुछ ऊँट चरते हुये आकरन के खेत में घुस गये। बालक दुर्गादास के विरोध करने पर चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास आग-बबूला हो गये और तलवार निकालकर एक ही पल में ऊँट की गर्दन उड़ा दी।

बालक की इस वीरता की सूचना जब जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह को मिली, तो वे उस वीर बालक को देखने के लिये उतावले हो उठे। उन्होंने अपने सैनिकों को दुर्गादास को दरबार में लाने का आदेश दिया।

अपने दरबार में उस वीर बालक की निडरता एवं निर्भीकता देखकर महाराजा अचंभित रह गये। स्वयं आसकरन जी ने जब अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे भी दाँतों तले उँगली दबाने लगे।

परिचय पूछने पर महाराजा को मालूम हुआ कि यह वीर बालक आसकरन का पुत्र है, तो महाराजा ने दुर्गादास राठौड़ को अपने पास बुलाकर पीठ थपथपाई और इनाम के रूप में तलवार भेंट कर उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया।

उस समय महाराजा जसवन्त सिंह दिल्ली के मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे। फिर भी औरंगजेब की नीयत जोधपुर राज्य के लिये ठीक नहीं थी और वे हमेशा जोधपुर राज्य को हड़पने के लिये मौके की तलाश में रहते थे।

सम्वत् 1731 में गुजरात में मुगल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवन्त सिंह जी को भेजा गया। इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवन्त सिह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिये, और वीर दुर्गादास राठौड़ की सहायता से पठानों का विद्रोह शान्त करने के साथ ही महाराजा वीरगति को प्राप्त हो गये।

वीरगति प्राप्त करने से पूर्व महाराजा जसवन्त सिंह जी ने वीर दुर्गादास राठौड़ से अपनी पत्नी के होने वाली सन्तान की रक्षा का वचन लिया था। उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों पत्नियाँ गर्भवती थीं। दोनों पत्नियों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया। एक पुत्र जन्म के तुरन्त बाद परलोक सिधार गया। वहीं दूसरे पुत्र अजीत सिंह को रास्ते का कांटा समझकर औरंगजेब ने हत्या की ठान ली।

औरंगजेब की इस कुनीयत को स्वामिभक्त वीर दुर्गादास राठौर ने भांप लिया और योजनाबद्ध तरीके से अजीत सिंह को दिल्ली से निकाल लाये। वीर दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह की गोपनीय तरीके से पूर्ण पालन-पोषण की समुचित व्यवस्था की।

अजीत सिंह के बड़े होकर गद्दी पर बैठाने तक की लम्बी अवधि में उन्होंने जोधपुर की गद्दी को बचाने के लिये औरंगजेब के द्वारा संचालित तमाम षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते हुये कई लड़ाईयाँ लड़ी।

इस बीच करीब 25 वर्षों के संघर्ष के दौरान औरंगजेब का बल या अपार धन का लालच वीर दुर्गादास राठौड़ को नहीं डिगा सका और अपनी वीरता के बल पर जोधपुर की गद्दी को सुरक्षित रखने में वीर दुर्गादास राठौर सफल रहे।

पच्चीस वर्ष की अवस्था में सन् 1708 में अजीत सिंह को जोधपुर की गद्दी पर बिठाकर ही उन्होंने न केवल चैन की सांस ली बल्कि राजा जसवन्त सिंह को दिया गया वचन पूर्ण किया।

जीवन के अन्तिम दिनों में वे स्वेच्छा से मारवाड़ छोड़कर उज्जैन चले गये। वहीं क्षिप्रा नदी के किनारे उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे।

दिनांक 22 नवम्बर सन् 1718 (माघशीर्ष शुक्ल एकादशी सम्वत् 1775) में उनका निधन हो गया। उनका अन्तिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार क्षिप्रा नदी के तट पर ही किया गया।

 

यह भी पढ़े

दाम्पत्य जीवन की शुरुआत पौधा लगाकर करें- डॉ प्रकाश

अररिया में पत्रकार को सीने में मारी गोली

Raghunathpur:बिन रेलिंग वाले पुलिया में कार पर सवार सपरिवार गिरते गिरते बचा

पटना में दूल्‍हे की वजह से बुरे फंसे झारखंड से आए बाराती

एक ऐसा मंदिर जहां होती है महिला के स्तनों की पूजा, वजह  जान हो जाएंगे हैरान  

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!