चर्चित लेखकों में से एक Anne Frank के जन्मदिन पर विशेष.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आप ऐन फ्रेंक को सर्च करने के लिए गूगल में उनका नाम लिखेंगे, तो उनके नाम के साथ जर्मन डायरिस्ट लिखा हुआ भी आएगा। दोस्तो, जब द्वितीय विश्वयुद्ध हो रहा था, तो नीदरलैंड पर नाजियों के कब्जे के कारण छोटी बच्ची एन फ्रैंक और उनके परिवार को छिपकर रहना पड़ता था। उस समय पिता ओटो फ्रेंक ने उन्हें जन्मदिन पर उपहार में एक डायरी दी थी, जिसमें 15 वर्षीय एन अपनी दिनचर्या के साथ-साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजियों द्वारा यहूदियों पर किए अत्याचारों और जनसंहार का आंखों-देखा हाल भी दर्ज करती जातीं।
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद यह डायरी इतिहास बन गई। ‘द डायरी आफ ए यंग गर्ल’ नाम से किताब की शक्ल में प्रकाशित यह डायरी पहली बार 1947 में प्रकाशित हुई। अब तक 70 से अधिक भाषाओं में अनूदित इस किताब की साढ़े तीन करोड़ से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इसके दुनिया की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताब में से एक होने की वजह यह है कि इसमें दुश्मनों से छिपती फिर रही एक लड़की ने अपने जीवन की मुश्किलों और उनसे संघर्ष की सच्ची बात लिखी है। फ्रेंक के जीवन की प्रेरणादायी कहानी दसवीं के सिलेबस में भी पढ़ायी जा रही है।
लेखन का जुनून: कुछ दिनों पहले अमेजन बेस्टसेलर चार्ट पर नंबर वन पर थी किताब ‘ब्लिस्टर्स आफ़ द बैटल’। इसमें 19 वर्षीय लेखक यश तिवारी ने युद्ध के दौरान असहाय मां-पिता, अबोध बच्ची और वृद्ध लोगों की जिंदगी की कहानी कही है। उन्होंने कहानी के माध्यम से लोगों को चेताया है कि युद्ध के कारण संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो सकता है। बदला लेने और घृणा दिखाने मात्र के लिए लड़ा गया युद्ध देश और समाज पर एक बदनुमा दाग बनकर रह जाता है। आपको यह जानकर अच्छा लगेगा कि इस कहानी का खाका यश ने सबसे पहले अपनी डायरी में ही खींचा था। एक रात जब वह सो रहे थे, तो उनके दिमाग में इसका आइडिया आया कि युद्ध के समय एक बच्ची जीवित रहने के लिए लड़ रही है। उन्होंने उसी समय इसे नोट कर लिया।
यश को बचपन से ही डायरी लिखने की आदत रही है। जब वे छह साल के थे, तो उनकी मां ने उन्हें उपहार में डायरी दी थी। तब से लेकर आज तक वे रोज कुछ न कुछ कविताएं, कहानियां या विचार लिखते रहते हैं। यश कहते हैं, ‘डायरी ने ही मुझे उपन्यास लिखने का जुनून दिया। डायरी लेखन के कारण ही मैं अब तक तीन किताबें लिख चुका हूं और कई पुरस्कार जीत चुका हूं।‘ दोस्तो, एशिया बुक आफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके यश तिवारी ने मात्र 16 साल की उम्र में अपनी पहली किताब लिख ली। जब देश में कोरोना महामारी अपने शुरुआती दौर में था, तब ‘पेंडेमिक 2020-राइफ आफ द वायरस’ लिखकर यश कोविड-19 पर फिक्शन नावेल लिखने वाले विश्व के पहले लेखक बन गए। यह किताब भी बेस्टसेलर रही।
रुचि का काम करने की प्रेरणा: ‘द रोजाबल लाइन’, ‘चाणक्या चांट’, ’13 स्टेप्स टू ब्लडी गुड मार्क्स’ और ’13 स्टेप्स टू ब्लडी गुड लक’ जैसी बेस्टसेलर किताबों के लेखक अश्विन सांघी को भी बचपन से अपनी बातों को डायरी में नोट करने की आदत है। जब अश्विन कई वर्ष बाद कश्मीर में घूमते हुए एक मकबरे के पास गए, तो स्थानीय लोगों ने बताया कि इस जगह पर ईसा मसीह ठहरे थे।
वह उस विषय पर लगातार रिसर्च करने लगे और डायरी में जानकारियां नोट करने लगे। इसी के आधार पर उन्होंने तय किया वह बिजनेसमैन नहीं, बल्कि अपनी रुचि का काम लेखन करेंगे और फिर वह मशहूर राइटर बन गए। थियेटर आर्टिस्ट मास्टर इशान भारद्वाज भी अक्सर अपने मन की बात डायरी में नोट करते हैं। वह कहते हैं, ‘डायरी में नोट की गई बातों को मैं जब बाद में पढ़ता हूं, तो मुझे अपनी रुचि का काम करने की प्रेरणा मिलती है। वे डायरी राइटिंग पर टिप्स देते हैं, सच्चे भाव से यदि डायरी में बातें लिखी जाती हैं, तो यह आपको अपनी क्षमता और ताकत का एहसास करा देता है।‘
मुश्किलों से मुकाबले की सीख: अनंतिनी मिश्रा पैनोरमा इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेने वाली भारत की सबसे कम उम्र(13 वर्ष) की लेखिका हैं। वह मशहूर टेड-एक्स स्पीकर और पाडकास्टर भी हैं। अनंतिनी को भी डायरी लिखने की आदत है। वह कहती हैं ‘डायरी समस्याओं से मुकाबला करना सिखाती है। क्योंकि अलग-अलग किताबों को पढऩे के बाद मुझे जो कुछ अच्छा लगता या किसी महापुरुष की प्रेरक बातें जानती हूं, उन्हें डायरी में नोट करती जाती।
जब मैं दोबारा पढ़ती, तो मुझे लोगों के जीवन से कई बातें सीखने को मिलतीं। इस तरह मुझे मुश्किलों से मुकाबला करना आ गया। मेरे लिए किसी विषय पर बोलना या लिखना कठिन नहीं रहा। मैं कह सकती हूं कि मेरा पर्सनैल्टी डेवलपमेंट हो गया।‘ मशहूर लेखिका मालती जोशी पिछले 40-45 वर्षों से डायरी लिख रही हैं। वह रोजमर्रा के जीवन के साथ-साथ खास घटनाओं को भी डायरी में दर्ज करती जाती हैं। कई कहानियां उनकी डायरी से निकली हैं।
निरंतरता है जरूरी: लेखक यश तिवारी ने बताया कि जिस समय दिमाग में आइडिया आए, उसी समय डायरी में अंकित कर लें। पूरे दिन में कम से कम एक विचार सोने से पहले या जागने के बाद डायरी में जरूर लिखें। निरंतरता बनाए रखें।
लेखक बनने में सहायक बनी डायरी: लेखक अश्विन सांघी ने बताया कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि लेखक बनूंगा। मुंबई में मेरे पिता का ओटोमोबाइल का बहुत बड़ा व्यवसाय है। तेरह साल की उम्र से ही पढ़ाई के अलावा पिताजी के साथ दफ्तर और कारखाने जाना मेरी दिनचर्या में शामिल था। मेरे नानाजी हर हफ्ते कानपुर से अपनी लाइब्रेरी से एक किताब चुनकर मुझे पढऩे के लिए भेजते। किताबों में जो बातें मुझे अच्छी लगतीं, उन्हें मैं डायरी में नोट करता जाता। मेरे लेखक बनने में सहायक बनी डायरी।
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