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श्री गुरु अर्जन देव जी को गर्म तवे पर बिठाकर शहीद किया गया,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

श्री गुरु अर्जन देव जी को गर्म तवे पर बिठाकर शहीद किया गया,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

शहादत की महान परंपरा पंजाब के इतिहास की शान रही है। पंजाब की धरती बेशुमार कुर्बानियों व शहीदियों की प्रत्यक्ष गवाह बनी है।सचमुच इन शहादतों ने हिंद के इतिहाास में कभी न मिटने वाला असर छोड़ा है। अगर हम गहराई से चिंतन करेंगे, तो पाएँगे कि कुर्बानियों की इस रीति के सिरताज कोई और नहीं अपितु श्री गुरू अर्जुन देव जी महाराज थे। जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु स्वयं को कुर्बान कर दिया।

उस समय के कट्टर मुगल बादशाह जहाँगीर की ज़ालिम नीतियों ने श्री गुरू अर्जुन देव जी पर बेहद कहर बरपाया। बेशक दीवान चंदू व पृथी चंद का भी श्री गुरूदेव जी को शहीद करवाने में बड़ा हाथ था। परंतु ज्यादा दोष जहाँगीर का ही प्रकट होता है। क्योंकि संसार में गुरू घर की महिमा का प्रचार-प्रसार होता देख, जहाँगीर के अंदर ईर्ष्या की लपटें पैदा हो गईं थीं। जिनसे वो अंदर से बुरी तरह जल उठा।

उसने अपने नापाक मनसूबे सिद्ध करने हेतु, एक महान व पवित्र आत्मा को शरेआम बेरहमी से शहीद किया। वो इस बात से अनभिज्ञ था, कि शहीद प्रत्येक कौम की अमूल्य धरोहर हुआ करते हैं। क्योंकि जब इस धरा की गोद में शहीदों का खून गिरता है तो कौमें और ज्यादा बलवान बनती हैं। और शहीद सदैव ही जिंदा रहते हैं। अज्ञानी व अहंकारी लोग सोचते हैं कि हमने उन्हें समाप्त कर दिया है। यद्यपि श्हादत अत्याचार के विरुद्ध एक लड़ाई है, यह अमानवीयता के खिलाफ सहनशीलता की जीत है। शहीदी किसी मजबूरी का नाम नहीं अपितु यह तो किसी के सिदक व सबूरी की परीक्षा होती है। ईश्वर के प्रति उसकी दृढ़ता की कसौटी की परख होती है।

श्री गुरू अर्जुन देव जी को ‘यासा व सियासत’ कानून के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद किया गया। इस कानून के अनुसार शहीद का खून बहाए बिना उसे अमानवीय यातनाएँ व कष्ट देकर शहीद किया जाता है। अहंकारी जालिमों द्वारा श्री गुरूदेव जी को तवी पर बिठाकर उसके नीचे भीषण अग्नि जलाई गई। जब उनके पावन शीश मंडल पर उबलती रेत डाली गई, तो उनके नाक से खून बह निकला। यह देख जालिमों ने उन्हें उबलते पानी की देग में बिठा दिया गया।

जब सांई मियां मीर जी को इस दुखद घटना के बारे में पता चला तो वे गुरू जी के पास दौडे़ आए एवं कहने लगे कि मैं देख रहा हूँ कि धरती, आकाश व त्रिलोकी का नाथ तपती तवी पर बैठा है। सच्चे पातशाह मेरे पास जुल्म की यह इंहतिहा देखने की शक्ति नहीं है कि मेरा सर्व समर्थ पिता यह अमानवीय कष्ट सहन करे। आप मुझे एक बार आज्ञा दें, मैं दिल्ली व लाहौर की ईंट से ईंट बजा दूँगा। आप जैसी परम पवित्र आत्मा पर यह अत्याचार मैं नहीं सहार पाऊँगा। सच्चे पातशाह मेरा कलेजा फट रहा है, मेरा मन विद्रोही हो रहा है।

गुरू जी ने सांई मियां मीर को समझाते हुए कहा-जिस प्रकार एक पौधे को कलम करने से ही वह बढ़ता फूलता है। इसी प्रकार से कुर्बानियों से ही कौमें बढ़ती फूलती हैं। पवित्र उद्देश्य के लिए की गई कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती, यह अपना असर जरूर दिखाती है। एवं आप उस इंकलाब को अपनी आँखों से घटते अवश्य देखेंगे। शहादत अत्याचार के खिलाफ एक लड़ाई है, शहीदी किसी मजबूरी का नाम नहीं। अपितु इस समय इसकी महती आवश्यकता है।

जब गुरू जी की दिव्य पावन देह आग से बुरी तरह झुलस गई तो उसे जालिम दरिंदों द्वारा रावी दरिया में स्नान हेतु भेजा गया। जहाँ पाँच दिनों तक गुरू जी पर, मानवता को शर्मसार करने वाले अमानवीय अत्याचार किए गए। छठे दिन गुरू जी का दिव्य शरीर रावी में ही अलोप हो गया। आगे चलकर श्री गुरू अर्जुन देव जी की इस शहीदी ने धर्म की नींव को पक्का कर दिया। वे इतने अमानवीय कष्ट सहकर भी तेरा कीया मीठा लागे पर दृढ रहे। वे सच्चे धर्म रक्षक, परोपकार इत्यादि दैविक गुणों से परिपूर्ण थे। आप जी महान लोक नायक हैं, आप जी द्वारा रचित वाणी दुख निवृति से लेकर आनंद प्राप्ति तक की यात्र करवाती है। आप जी का व्यक्तित्व एक ऐसा विशाल सागर है जिसका किनारा ढूंढना मुश्किल ही नहीं असंभव है। और भारत देश सदैव आप पर गर्व करता रहेगा।

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