राज्य विश्वविद्यालय बनेंगे कौशल-आधारित शिक्षा के केंद्र,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 की कौशल-आधारित शिक्षा और व्यावहारिक शिक्षा पर ज़ोर देने के लिये सराहना की गई है।
- हालाँकि बड़ी संख्या में विज्ञान स्नातकों के बावजूद प्रदान की गई शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर है।
STEM के लिये भारत में उच्च शिक्षा का परिदृश्य:
- 1,113 भारतीय विश्वविद्यालयों में से 422 सार्वजनिक हैं तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित हैं, प्रत्येक में कई राज्य-संबद्ध कॉलेज हैं जो नामांकन के एक बड़े हिस्से को पूरा करते हैं।
- ये विश्वविद्यालय स्नातकों को वैज्ञानिक कार्यबल के रूप में तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics- STEM) स्नातकों के मामले में BSc पाठ्यक्रमों में छात्रों का कुल नामांकन 50 लाख के करीब है, अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार, प्रत्येक वर्ष 11 लाख से अधिक छात्र अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करते हैं।
- हालाँकि मास्टर स्तर पर विज्ञान स्नातकों की संख्या घटकर 2.9 लाख (BSc स्नातकों का 25%) रह जाती है तथा डॉक्टरेट स्तर पर इससे और अधिक कम, हर साल विज्ञान में केवल 6,000 को PhD प्रदान की जाती है।
- PhD या चयनित पात्रता परीक्षणों के साथ मास्टर डिग्री, विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय संस्थानों में प्रवेश स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधान या शिक्षण पदों के लिये पहली आवश्यकता है।
- इसे देखते हुए बड़ी संख्या में (लगभग 8 लाख प्रतिवर्ष) स्नातक (भारत में विज्ञान स्नातक समकक्ष), कार्यबल में तुरंत या निकट भविष्य में प्रवेश करने वाले मानव संसाधनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भारत में स्नातक स्तर पर अधिकांश विज्ञान स्नातक राज्य-संबद्ध कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से अपनी प्राथमिक डिग्री अर्जित करते हैं।
उच्च शिक्षा के संबंध में राज्य संबद्ध विश्वविद्यालयों के मुद्दे:
- पुराना पाठ्यक्रम: कई राज्य संबद्ध संस्थान ऐसे पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री प्रदान करते हैं जो पुरानी है और समकालीन प्रौद्योगिकियों एवं प्रगति के अनुरूप नहीं है। इससे प्रासंगिक तथा अद्यतन ज्ञान और कौशल प्राप्त करने की छात्रों की क्षमता बाधित होती है।
- व्यावहारिक प्रशिक्षण का अभाव: विज्ञान पाठ्यक्रमों में अक्सर व्यावहारिक प्रशिक्षण के पर्याप्त अवसरों का अभाव होता है और प्रयोगशाला सुविधाएँ अक्सर अपर्याप्त या उनका खराब रखरखाव होता है। यह छात्रों के व्यावहारिक अनुभव और कौशल विकास को सीमित करता है, जो कि वैज्ञानिक प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सीमित अनुसंधान: राज्य-संबद्ध संस्थानों को संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है और इनमें अधिकांशतः प्रतिष्ठित संस्थानों एवं निजी विश्वविद्यालयों जैसे अनुसंधान-गहन वातावरण नहीं होता है। यह छात्रों तथा संबद्ध संकाय के लिये अनुसंधान के अवसरों एवं वैज्ञानिक प्रगति में योगदान करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है।
- अस्तित्व संबंधी संकट: उच्च विज्ञान शिक्षा में इन संस्थानों की विशिष्ट भूमिका का अभाव भी चिंता का अन्य विषय है। IoE (उत्कृष्टता संस्थान) अथवा निजी विश्वविद्यालयों के विपरीत राज्य संबद्ध महाविद्यालय में छात्रों की संख्या काफी अधिक होती है, लेकिन अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संसाधनों की कमी भी होती है। अनुसंधान और कौशल उन्नयन की आवश्यकता के साथ शिक्षण भूमिका को संतुलित करना एक चुनौती है।
- रोज़गार और कौशल में अंतर: विज्ञान स्नातकों के एक बड़े समूह के बावजूद कई उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल वाले प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है। यह राज्य संबद्ध संस्थानों द्वारा प्रदान किये गए कौशल और रोज़गार बाज़ार की मांगों के बीच सामंजस्य की कमी को इंगित करता है।
राज्य विश्वविद्यालयों को कौशल-आधारित शिक्षा केंद्र में बदलने की प्रक्रिया:
- पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना:
- प्रोग्रामिंग, डेटा विश्लेषण, इंस्ट्रूमेंटेशन, गुणवत्ता आश्वासन और बेंचमार्किंग सहित उद्योग-प्रासंगिक कौशल एवं प्रमाणन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये B.Sc तथा एकीकृत पाठ्यक्रम में सुधार किया जा सकता है।
- उद्योगों के साथ साझेदारी:
- वास्तविकता का अनुभव प्रदान करने और व्यावहारिक प्रशिक्षण को बढ़ाने के लिये सेमिनार, विशेषज्ञ से बातचीत, प्रशिक्षुता, रोज़गार मेलों तथा वित्तपोषण सहायता के माध्यम से विभिन्न उद्योगों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी स्थापित करना।
- नौकरी हेतु आवेदन कौशल:
- यह सुनिश्चित करना कि स्नातक नौकरी के लिये तैयार हैं, पदों के लिये आवेदन करने, साक्षात्कार तकनीक एवं वेतन चर्चा सहित नौकरी हेतु आवेदन कौशल सिखाकर पाठ्यक्रम-प्रशिक्षण बढ़ाना।
- अंतर्राष्ट्रीय मॉडल अपनाना:
- अमेरिकी तथा यूरोपीय सामुदायिक कॉलेज एवं तकनीकी विश्वविद्यालय मॉडल से प्रेरणा लेना जो क्षेत्रीय शिक्षा और कार्यबल की तैयारी को प्राथमिकता देते हैं।
- नीति के एकीकरण का उद्देश्य:
- राज्य-संबद्ध संस्थान राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं प्रस्तावित राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के साथ तालमेल बिठाकर कुशल वैज्ञानिक कर्मियों की भारत की आवश्यकता के साथ स्नातक स्तर की रोजगार संबंधी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
निष्कर्ष
- राज्य-संबद्ध विश्वविद्यालयों को कौशल-आधारित विज्ञान शिक्षा केंद्रों में बदलने से विज्ञान शिक्षा एवं उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर को कम किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि स्नातक, कार्यबल के लिये बेहतर ढंग से तैयार हों। यह NEP के व्यापक लक्ष्यों को संरेखित करने के साथ देश की वैज्ञानिक क्षमताओं को बढ़ाता है।
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