उत्तर प्रदेश चुनाव में भी बह रहा ‘अंडरकरंट ‘ का प्रबल तरंग!
जनता का मूड भांपने में विफल हो रहे सियासी सुरमा
हर आयाम का स्वयं के लिहाज से विश्लेषण कायम कर रहा रहस्य का वातावरण
✍️गणेश दत्त पाठक‚ स्वतंत्र टिप्पणीकार ः
श्रीनारद मीडिया
यूपी में अभी सातवें और अंतिम चरण की वोटिंग चल रही है। आज से एग्जिट पोल की सुनामी भी आएगी। परंतु पिछले एक दशक से देखा जा रहा है कि सियासी विशेषज्ञ चुनाव परिणाम के विश्लेषण में नाकाम हो जा रहे हैं। परिणाम चौंकाने वाले आ रहे हैं। एग्जिट पोल तो एक्जैक्ट पोल की थाह भी नहीं लगा पा रहे हैं। ऐसे में मतदाता के मूड का पता लगाना एक मुश्किल काम हो चला हैं। कुछ लोग इसके लिए चुनावों के दौरान चलने वाले ‘ अंडरकरंट ‘ को जिम्मेवार मान रहे हैं। माना जा रहा है कि यह ‘ अंडर करंट ‘ आने वालों दिनों में सियासी जगत का सबसे विचारणीय सियासी तथ्य होने जा रहा है। यूपी चुनाव में भी जबरदस्त अंडर करेंट बहने की बात कहीं जा रही है। जिसका सही स्वरूप आगामी 10 मार्च को ही सामने आ पाएगा।
जनता का मूड भांपना अब नहीं रहा आसान
विगत कुछ सालों के चुनावों को देखा जाए तो पता चलता है कि जनता का मूड भांपना अब आसान नहीं रहा। चाहे बिहार विधानसभा चुनाव 2020 का चुनाव परिणाम हो या 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की प्रचंड विजय का मामला हो या , राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनाव। ओपिनियन पोल हो या एग्जिट पोल सबके दावे जनता के मूड की हक़ीक़त को बयां करने में गच्चा खा जा रहे हैं । आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यह सवाल हर सियासी पुरोधा को व्यथित करता दिख रहा है?
उत्तर प्रदेश में हर सियासी सुरमा गुणा भाग में जुटा
मसलन यूपी चुनाव को ही देखें तो राजनीतिक विश्लेषक चुनाव की हर पहलू पर विश्लेषण करते नजर आ रहे हैं। चाहे वो भाजपा, सपा, बसपा के कोर वोट बैंक का सियासी गुना भाग हो या मतदान प्रतिशत का मामला या हो महिला मतदाताओं की बढ़ी भागीदारी या हो प्रमुख पार्टियों के सियासी गठबंधन का मामला या हो या हो ओवैसी फैक्टर का तथ्य या हो पोस्टल बैलेट संबंधी तथ्य या हो चुनावी मुद्दों की बात या चुनाव के अंतिम दौर में प्रधानमंत्री मोदी का काशी प्रवास या हो सरकारी मशीनरी से संबंधित सवाल। हर मुद्दे पर सियासी विश्लेषण हो रहा है। हर सियासी पार्टी अपने अपने हिसाब से तथ्यों का विश्लेषण कर रही है। परंतु जनता के मन की सही तस्वीर तो 10 मार्च को ही सामने आएगी
समय के साथ मतदाता हो रहे जागरूक
उत्तर प्रदेश में यह भी देखा जा रहा है कि शहरी क्षेत्रों से ज्यादा मुखरता ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाताओं में देखी जा रही है। साथ ही, वोटिंग प्रतिशत भी ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखा जा रहा है। महिला मतदाताओं की भागीदारी बढ़ रही है। चौक चौराहों पर चर्चा अब आम बातचीत नहीं रही, उसके स्तर में भी इजाफा देखा जा रहा है। यह संकेत निःसंदेह एक मजबूत और परिपक्व लोकतंत्र के लिए सुखद तथ्य है। यह संकेत मतदाता के जागरूकता का संदेश भी दे रहा है। अब जनता को बातों से बरगलाना आसान नहीं रहा।
मतदाता का मन बना अबूझ पहेली
यह यह बात दीगर है कि सोशल मीडिया के दौर में उत्तरप्रदेश की सियासी फिज़ा में बार बार बदलाव चुनाव प्रचार के दौरान ही आता दिखा। निश्चित तौर पर परिणाम चौकाने वाले आ सकते हैं। यह होगा ‘ अंडर करंट ‘ के कारण। मतदाता के मन में जो ‘अंडर करंट ‘ प्रवाहित होता रहता है उसका पता लगाने में कोई भी सियासी सुरमा सफल नहीं हो पा रहा है।
क्या है यह ‘ अंडर करंट ‘
आखिर यह ‘अंडर करंट ‘क्या है? यह कैसे बनता है ? इन सवालों का उठना लाजिमी है। सामान्य तौर पर यह ‘अंदर करंट ‘ जन विचारों की वह धारा हैं, जो समय के साथ विकसित होती रहती है। यह मुखर तौर पर दिखाई तो नहीं देती है लेकिन अंदर ही अंदर विचारों , भावनाओं को एक विशेष आकार देती रहती है। यह एक मानसिक अवधारणा है जिसका अंदाजा लगाना किसी के लिए आसान नहीं होता है। शायद इसी कारण सियासी विशेषज्ञ अनुमानों में गच्चा खा जा रहे हैं।
हर हाथ में मोबाइल का असर
अभी हाल के दिनों में मोबाइल हर हाथ में आ चुका है तथा इंटरनेट तक पहुंच आसान हो चुकी है। हर आदमी सोशल मीडिया पर अच्छा समय व्यतीत कर रहा हैं। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब पर सूचनाओं के अपार समुद्र से उसका सामना हो रहा है। ऐसे में वह अब केवल चुनावी बातों के भरोसे ही नहीं रहता हैं बल्कि समय के साथ उसकी अपनी धारणा इंटरनेट से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर बनती रहती है। यही धारणा ‘ अंडर करंट’ का आधार बनती है ।
अब जनता को भ्रमित करना आसान बात नहीं
अभी हाल में अस्तित्व में आए राजनीतिक दलों के वार रूम द्वारा प्रसारित सूचनाएं सिर्फ थोड़ी बहुत हलचल मचा देती है। लेकिन जनता के भरोसे और निर्णय का आधार जाहिर तौर पर उसके मानस में जमा हो रही जानकारियां होती है। एक समय कहा जाता था कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है लेकिन अब वहीं जनता सूचनाओं से लबरेज होकर सर्वज्ञ बनती जा रही है। उसकी जानकारी अब सिर्फ चुनावी हलचलों की मोहताज नहीं रही। अब जनता को छलावा देना आसान बात नहीं रहा। अब जनता हर चीज को परखना, तुलनात्मक तौर पर टटोलना जान चुकी है। इसी से जनित यह ‘ अंडर करंट’ सियासी सूरमाओं की नींद हराम करनेवाला बन चुका है। इस ‘ अंदर करंट’ की धारा बहाने में चुनाव आयोग के स्वीप आदि मतदाता जागरूकता अभियान , सी विजिल आदि अत्याधुनिक ऐप्स की भी भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
जनप्रतिनिधियो को रहना होगा सचेत, बरगलाने के दिन गए
हालांकि यह भी सत्य है कि फेक न्यूज, पेड न्यूज आदि तथ्य इस अंदर करंट को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कराने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। परन्तु जानकारी के अथाह सागर में डुबकी लगाते लोगो के लिए तथ्यों का सत्यापन कोई दुरूह काम नहीं रहा। हालांकि चुनाव आयोग तथा सोशल मीडिया के प्रोवाइडर फेक न्यूज आदि पर अंकुश लगाने के प्रयास कर रहे हैं जिसके सकारात्मक परिणाम कुछ दिनों में दिखाई देने लगेंगे।
इस ‘अंडर करंट ‘ का असर यह हो रहा हैं कि जनता का मूड भांपना अब आसान नहीं रहा। साथ ही, जनप्रतिनिधियों को अब सचेत रहना होगा क्योंकि ये पब्लिक है यह सब जानती है। इस ‘अंदर करंट ‘ की वजह से सिविल सोसायटी को भी एक नई ऊर्जा मिलेगी तथा सियासतदां अब अपने हिसाब से मनमानी नहीं कर पाएंगे तथा जनता के जनार्दन स्वरूप का साक्षात्कार कर पाएंगे। निश्चित तौर पर यह ‘ अंडर करंट’ लोकतंत्र में नए ऊर्जा का संचार कर सकेगा। अब जनप्रतिनिधियों को हर समय तंत्र के द्वारा लोक का विशेष ख्याल रखना होगा। इसके अलावा इससे सहभागी लोकतंत्र की अवधारणा को एक नया मुकाम भी हासिल होगा।
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