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पराली प्रबंधन:कृषि के लिये प्रौद्योगिकी का विकास - श्रीनारद मीडिया

पराली प्रबंधन:कृषि के लिये प्रौद्योगिकी का विकास

पराली प्रबंधन:कृषि के लिये प्रौद्योगिकी का विकास

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वनाग्नि की समस्या को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए जाने के साथ ही बेलर मशीन जो एक्स-सीटू (ऑफ-साइट) पराली प्रबंधन की सुविधा प्रदान करती है, की मांग पंजाब और आस-पास के क्षेत्रों में देखी जा रही है।

  • बेलर मशीनें लगभग एक दशक से अस्तित्व में हैं तथा वर्तमान में लगभग 2,000 का उपयोग पंजाब में किया जा रहा है। इनमें से 1,268 को केंद्र की फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management- CRM) योजना के तहत अत्यधिक सब्सिडी (50-80%) दी जाती है।

फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) योजना:

  • परिचय: 
    • यह किसानों और संबंधित संगठनों की सहायता करके पराली दहन की समस्या का समाधान करने के लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • योजना के तहत वित्तीय सहायता:
    • इसके अंतर्गत  फसल अवशेष प्रबंधन के तहत मशीनरी की खरीद के लिये किसानों को 50% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • सहकारी समितियोंकिसान उत्पादक संगठनों (FPO) और पंचायतों को कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) की स्थापना के लिये 80% की दर से वित्तीय सहायता मिलती है।
  • योजना के तहत समर्थित मशीनें:
    • सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, ज़ीरो टिल सीड कम फर्टिलाइज़र ड्रिल, मल्चर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, हाइड्रॉलिकली रिवर्सेबल मोल्ड बोर्ड प्लो, क्रॉप रीपर, रीपर बाइंडर्स, बेलर और रेक।

बेलर मशीन क्या है?

  • परिचय: 
    • बेलर पराली के संपीड़न में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो फसल अवशेषों को घने, प्रबंधनीय पैकेजों में जमा करने के लिये हाइड्रोलिक प्रेस के रूप में कार्य करती हैं। इन संपीड़ित पराली को सुतली, तार अथवा स्ट्रैपिंग का उपयोग करके सुरक्षित रूप से बाँधा जाता है।
      • बेलर मशीन का उपयोग करने से पहले किसान फसल अवशेषों को ट्रैक्टर पर लगे कटर से काटते हैं। ट्रैक्टर पर लगी बेलर मशीन जाल का उपयोग करके पराली को कॉम्पैक्ट गाँठों में संपीड़ित करती है।

  • महत्त्व:
    • पर्यावरण संरक्षण: इससे फसल के डंठल जलाने की आवश्यकता नहीं होती है, जो वायु प्रदूषण एवं मृदा के क्षरण को कम करने में योगदान देता है।
      • किसान कटाई के बाद पराली को जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषण होता है। बेलर पराली को संपीड़ित करके उसे गाँठो में तब्दील करके जलाने का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करती है।
    • संसाधन दक्षता: यह पराली को कुशलतापूर्वक संपीड़ित करती है, जिससे प्रबंधन, परिवहन और भंडारण करना आसान हो जाता है।
      • यह किसानों को तुरंत खेत की जुताई करने और अगली फसल बोने में सक्षम बनाती  है।
    • आर्थिक लाभ: एक मूल्यवान संसाधन के रूप में संपीड़ित पराली की बिक्री के माध्यम से राजस्व सृजन के रास्ते खुलते हैं।
  • पराली दहन के विकल्प:
    • पराली का स्व-स्थानिक उपचार: उदाहरण के लिये ज़ीरो-टिलर मशीन द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन और जैव-अपघटकों (जैसे- पूसा बायो-डीकंपोज़र) का उपयोग
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन, जो पराली को उखाड़ कर साफ किये गए क्षेत्र में बीजों की बुवाई भी कर सकती है। फिर पराली को खेत में गीली घास के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

बेलर्स से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • उच्च इनपुट लागत: एक बेलर की लागत बिना सब्सिडी के लगभग 14.5 लाख रुपए है। वर्तमान में पंजाब में लगभग 700 गैर-सब्सिडी वाले बेलर कार्य कर रहे हैं।
    • सामर्थ्य का मुद्दा: फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत शामिल किये जाने के बाद पहले दो वर्षों में कोई बेलर इकाइयाँ नहीं बेची गईं।
  • पर्याप्त मशीनों की अनुपलब्धता: पंजाब में लगभग 32 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है, लेकिन राज्य में उपलब्ध बेलर्स द्वारा इस क्षेत्र का केवल 15-18% ही कवर किया जा सकता है। एक बेलर एक दिन में केवल 15-20 एकड़ को ही कवर कर सकता है।

पराली दहन क्या है? 

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